जिसके साथ दुष्कर्म हुआ है, वह कभी भी सहयोगी नहीं मानी जा सकती, उसकी गवाही पर संदेह करना नारीत्व का अपमानः हाईकोर्ट

punjabkesari.in Friday, Apr 28, 2023 - 03:21 PM (IST)

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नाबालिग के साथ हुए दुष्कर्म के मामले में महत्वपूर्ण आदेश पारित करते हुए कहा कि एक महिला या लड़की, जिसके साथ दुष्कर्म हुआ है, वह कभी भी सह- अपराधी या सहयोगी नहीं मानी जा सकती है और उसकी गवाही पर संदेह करना नारीत्व का अपमान है। उक्त टिप्पणी न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा की एकल पीठ ने राजे उर्फ राजेश उर्फ संतोष कुमार की याचिका को खारिज करते हुए दिया। कोर्ट ने कहा कि दुष्कर्म पीड़िता की एकमात्र गवाही के आधार पर बिना अन्य साक्ष्यों के भी एक अभियुक्त को दोषी ठहराया जा सकता है।



आरोपी ने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के आदेश को दी थी चुनौती
दरअसल आरोपी ने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, फतेहपुर द्वारा वर्ष 2010 में पारित आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की। याची पर आरोप है कि 15 वर्षीय नाबालिग पीड़िता वर्ष 2001 में सुबह लगभग 6:30 बजे खेत में शौच करने के लिए गई थी, तब आरोपी और उसके सहयोगी चुन्नी लाल शर्मा ने दुष्कर्म किया।



आरोपी व्यक्तियों को दुष्कर्म जैसे अपराध में फंसाने का कोई कारण भी नहीं
चश्मदीद गवाहों के आधार पर निचली अदालत ने पाया था कि दुष्कर्म के आरोप सत्य और प्राकृतिक हैं और पीड़िता तथा उसके भाई के पास आरोपी व्यक्तियों को दुष्कर्म जैसे अपराध में फंसाने का कोई कारण भी नहीं है। याची के अधिवक्ता ने यह तर्क दिया कि मामले की प्राथमिकी घटना के 2 दिन बाद दर्ज की गई। पीड़िता के बयान की मेडिको लीगल जांच रिपोर्ट से पुष्टि भी नहीं होती है। अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि गवाहों के बयान में निरंतरता है। प्राथमिकी दर्ज करने में देरी भी असाधारण नहीं थी, क्योंकि कथित अपराध दुष्कर्म का था।



दुष्कर्म के मामले में पीड़िता की गवाही एक घायल गवाह के समान
सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला देते हुए न्यायालय ने कहा कि दुष्कर्म के मामले में पीड़िता की गवाही एक घायल गवाह के समान है। यौन अपराध की पीड़िता का साक्ष्य अपने आप में महत्वपूर्ण माना जाता है। याची के वकील के इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि पीड़िता के निजी अंगों पर कोई चोट नहीं थी, इसलिए उसके बयान को खारिज किया जाना चाहिए। हाईकोर्ट ने कहा कि जहां पीड़िता के निजी अंगों पर चोट के निशान मेडिकल में नहीं पाए जाते हैं, वहां भी पीड़िता की गवाही को खारिज नहीं किया जा सकता है।

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Ajay kumar