KBC-12: बच्चन के प्रश्नोत्तर से गरीब किसान के बेटे ने जीता 50 लाख, IAS बनने का है सपना
punjabkesari.in Saturday, Dec 05, 2020 - 05:01 PM (IST)
बरेली: ‘कौन कहता है आसमान में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तबियत से उछालो तो यारो...’ इस कहावत को बरेली के तेज़ बहादुर ने चरितार्थ किया है। जिन्होंने अपनी पढ़ाई और ज्ञान की बदौलत केबीसी में 50 लाख रुपये जीत कर अपनी किस्मत बदल ली। बेहद गरीबी में संघर्ष पूर्ण जीवन बिताने वाले तेज़ बहादुर आज लखपति बन गए हैं।
कठिन सफर को किसान के बेटे ने बनाया आसान
बता दें कि हौसला और मेहनत आदमी की तकदीर बदल देता है। कुछ ऐसा ही बरेली के बहेड़ी कस्बे के एक गांव में रहने वाले तेज बहादुर के साथ हुआ है। बेहद गरीबी में रहने वाले तेज़ बहादुर ने अपनी बद-किस्मती को हरा कर अपने दुख दूर कर लिये। उन्होंने "कौन बनेगा करोड़पति" में अमिताभ बच्चन के सामने हॉट सीट पर बैठ कर पचास लाख रुपये जीत लिये। उनका ऐपिसोड तीन दिसंबर की रात को आया, लेकिन ये सफर इतना आसान नहीं था।
लॉकडाउन में छूटी पिता की नौकरी
बरेली से पचास किलोमीटर दूर बहेड़ी कस्बे के एक गांव के रहने वाले तेज़ बहादुर सिंह का परिवार बेहद साधारण है, पिता हरचरन सिंह के पास थोड़ी सी खेती की जमीन है जिससे बमुश्किल गुजारा चलता था। बेटे की पढ़ाई के खर्च के लिये वह एक स्कूल में प्राइवेट नौकरी भी करते थे लेकिन लॉकडाउन में वो नौकरी भी छूट गई साथ ही पिता बीमार पड़ गये। अब पढ़ाई के साथ सारी जिमेदारी तेज़ बहादुर पर आ गई।
खेत में काम....पेन किलर खाकर की पढ़ाई
उन्होंने खेती संभालने के साथ-साथ पढ़ाई भी जारी रखी। खेत में काम करने से शरीर में दर्द होता था तो सिविल इंजीनिरिंग की पढ़ाई करने के लिए पेन किलर खा कर दर्द को दबाया। पॉलिटेक्निक फीस के लिये माँ के जेवर तक गिरवी रखने पड़े।
गरीबी इतनी की मां ने गिरवी रखें कुंडल
केबीसी में पचास लाख रुपये जीतने के बाद तेज़ बहादुर सिंह अब सबसे पहले अपनी माँ राजकुमारी के गिरवी पड़े कुंडल छुड़वाएँगे और अपने टूटे हुऐ घर को सही कराएंगे। पढ़ाई को लेकर संजीदा तेज़ सिविल इंजीनियरिंग के डिप्लोमा के बाद आईएएस बनना चाहते हैं ताकि अपने गांव में एक स्कूल खुलवा सके। वहीं उनका परिवार और माँ का बेटे की जीत पर खुशी का ठिकाना नहीं है।
पॉलिटेक्निक के प्रेंसिपल नरेंद्र कुमार ने बताया हुनर
प्रतियोगिता में तेज बहादुर ने जिन लोगों का आभार व्यक्त किया उनमें उनके पॉलिटेक्निक के प्रेन्सिपल नरेंद्र कुमार भी थे। कुमार का कहना है कि ये हमेशा से ही एक शानदार छात्र रहे जिन्होंने अपनी गरीबी को पढ़ाई के बीच नहीं आने दिया। वहीं परिवार को भी अब उम्मीद हो गई है कि उनकी जिंदगी उनका बेटा संवार देगा।
परी कथाओं सी ये कहानी तेज बहादुर जैसे हजारों युवाओं के जीवट (साहस) को दिखाती है जिन्होंने अपनी मेहनत और लगन से ना सिर्फ अपनी तकदीर बदली बल्कि देश की तस्वीरे भी बदलने को तैयार हैं।