जानिए कुंभ का अतीत और उसकी महत्ता, आखिर क्यों हर 5 साल बाद होता है आयोजन

punjabkesari.in Tuesday, Jan 15, 2019 - 11:05 AM (IST)

प्रयागराजः कुंभ का इतिहास और उसकी महत्ता के बारे में स्कन्द पुराण और बाल्मीकि रामायण में उल्लेख मिलता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार माना जाता है कि पहले कुंभ का आयोजन राजा हर्षवर्धन के राज्यकाल (664 ईसा पूर्व) में आरंभ हुआ था। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेंगसांग ने अपनी भारत यात्रा का उल्लेख करते हुए कुंभ मेले के आयोजन का उल्लेख किया है। साथ ही साथ उसने राजा हर्षवर्धन की दानवीरता का भी जिक्र किया है। ह्वेंगसांग ने कहा है कि राजा हर्षवर्धन हर पांच साल में नदियों के संगम पर एक बड़ा आयोजन करते थे, जिसमें वह अपना पूरा कोष गरीबों और धार्मिक लोगों में दान दे देते थे। 

ग्रंथों के अनुसार इन संयोग में कुंभ का आयोजन होता है। बृहस्पति के कुंभ राशि में तथा सूर्य के मेष राशि में प्रविष्ट होने पर हरिद्वार में गंगा के किनारे पर पर कुंभ का आयोजन होता है। दूसरा जब बृहस्पति के मेष राशि में प्रविष्ट होने तथा सूर्य और चन्द्र के मकर राशि में होने पर अमावस्या के दिन प्रयागराज में त्रिवेणी संगम तट पर कुंभ का आयोजन होता है। तीसरा कुंभ बृहस्पति एवं सूर्य के सिंह राशि में आने पर नासिक में गोदावरी के किनारे पर कुंभ का आयोजन होता है और बृहस्पति के सिंह राशि में तथा सूर्य के मेष राशि में प्रविष्ट होने पर उज्जैन में शिप्रा तट पर कुंभ का आयोजन होता है। 

बाल्मीकि रामायण में कहा गया है कि श्री राम अपने वनवास काल में जब ऋषि भारद्वाज से मिलने गए तो वार्तालाप में ऋषिवर ने कहा कि हे राम गंगा यमुना के संगम का जो स्थान है वह बहुत ही पवित्र है आप वहां भी रह सकते हैं श्रीरामचरितमानस में प्रयागराज की महत्व का वर्णन बहुत रोचक तरीके से और विस्तार पूर्वक किया गया है - माघ मकरगत रवि जब होई । तीरर्थ पतिहिं आव सब कोई।। देव दनुज किन्न्र नर श्रेनी । सादर मज्जहिं सकल त्रिवेणी ।। पूजहिं माधव पद जल जाता । परसि अछैवट हरषहिं गाता ।। भरद्वाज आश्रम अति पावन । परम रंय मुनिवर मन भावन ।। तहां होइ मुनि रिसय समाजा । जाहिं जे मज्जन तीरथ राजा।।

बाल्मीकि रामायण के अनुसार माघ के महीने में त्रिवेणी संगम स्नान का यह रोचक प्रसंग कुंभ के समय साकार होता है। साधु-संत प्रात:काल संगम स्नान करके कथा कहते हुए ईश्वर के विभिन्न स्वरूपों और तत्वों की विस्तार से चर्चा करते हैं। कुंभ भारतीय संस्कृति का महापर्व है और इस पर्व पर स्नान दान ज्ञान मंथन के साथ ही अमृत प्राप्ति की बात भी कही गई है। कुंभ का बौद्धिक पौराणिक ज्योतिषी के साथ-साथ वैज्ञानिक आधार भी है। भारतीय संस्कृति की के आदि ग्रंथ है इसका वर्णन वेदो में भी मिलता है। 

प्रयागराज की महत्ता वेदों और पुराणों में विस्तार बताई गई है। एक बार शेषनाग से की ऋषिवर ने भी यही प्रश्न किया था कि प्रयागराज को तीर्थराज क्यों कहा जाता है। इस पर शेषनाग ने उत्तर दिया कि एक ऐसा अवसर आया जब सभी तीर्थों की श्रेष्ठता की तुलना की जाने लगी उस समय भारत में समस्त तीर्थो को तुला के एक पलड़े पर रखा गया और प्रयागराज को दूसरे पलड़े पर फिर भी प्रयागराज का पलड़ा भारी पड़ गया । दूसरी बार सप्तपुरियों को एक पलड़े में रखा गया और प्रयागराज को दूसरे पलड़े पर वहां भी प्रयागराज वाला पलड़ा भारी रहा । इस प्रकार प्रयागराज की प्रधानता सिद्धि और इसे तीर्थों का राजा कहा जाने लगा इस पावन क्षेत्र में दान पुण्य कर्म यज्ञ आदि के साथ-साथ त्रिवेणी संगम का अति महत्वपूर्ण महत्व है।

 

Ruby