जानिए इटावा से जुड़े भीमराव से लेकर मुलायम तक के अन्य दिग्गज नेताओं का राजनीतिक सफर

punjabkesari.in Saturday, Mar 24, 2018 - 12:24 PM (IST)

इटावाः राज्यसभा चुनाव में बसपा उम्मीदवार भीमराव अंबेडकर ने हार कर भी अनचाहे में इतिहास रच दिया।  दरअसल, उत्तर प्रदेश के इटावा से जुड़े हुए जितने भी उम्मीदवार अब तक चुनाव मैदान में उतरे, वह सब के सब राज्यसभा की दहलीज तक निर्विरोध हो करके पहुंचे लेकिन बसपा के भीमराव अंबेडकर ऐसी पहली शख्सियत है जिनकी किस्मत का सितारा आसमान नहीं छू सका और उन्हें भाजपा प्रत्याशी के हाथों हार का सामना करना पडा। 

राज्यसभा पहुंचने के रास्ते में लगा ब्रेक 
संविधान निर्माता के नामाराशि डॉ. अंबेडकर को बसपा सुप्रीमो मायावती ने उम्मीदवार बनाया था। सपा, कांग्रेस और रालोद का उन्हें समर्थन प्राप्त था, लेकिन भाजपा की कड़ी चुनौती के बीच उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा और राज्यसभा पहुंचने के रास्ते में ब्रेक लग गया। 

इटावा से अंबेडकर के अलावा तमाम राजनेताओं की किस्मत खुली 
भीमराव 2007 मे इटावा की लखना सुरक्षित सीट से बसपा एमएलए निर्वाचित रह चुके है । यह बात दीगर है कि इटावा के सरला भदौरिया, प्रोफेसर रामगोपाल यादव और दर्शन सिंह निर्विरोध राज्यसभा पहुंचे जबकि भीमराव अंबेडकर का निर्वाचन हुआ । अगर राज्यसभा मे उत्तर प्रदेश के इटावा से पहुंचने वालो की बात की जाए तो इटावा से अंबेडकर के अलावा तमाम राजनेताओं की किस्मत खुली है जो चुनाव मैदान में उतरे और अपने पूरे कार्यकाल को करने में सफल भी रहे हैं।

सरला भदौरिया यूपी महिला कल्याण बोर्ड की चुनी गई अध्यक्ष 
इटावा से सबसे पहले राज्यसभा में जाने वाली सरला भदौरिया रही है जो 1964 से 70 तक राज्यसभा की सदस्य रही। सरला के पति कमांडर अर्जुन सिंह भदौरिया की 1957,1962 और 1977 में इटावा से समाजवादी सांसद रह चुके हैं। भदौरिया ने आजादी से पहले 1915 में राष्ट्रीयता व समाज सेवा का पाठ महात्मा गांधी के बर्धा आश्रम से सीखा था। आजादी के बाद महिलाओं दलितों का किसानों के अधिकारों को लेकर कच्छरण (गुजरात) की रक्षा और भ्रष्टाचार उन्मूलन आंदोलन बिहार तक बार-बार नेतृत्व करते हुए 13 बार जेल यात्रा की । 1970 से 1980 तक उत्तर प्रदेश महिला कल्याण बोर्ड की अध्यक्ष चुनी गई।  

सपा के महासचिव प्रोफेसर रामगोपाल यादव
इसके बाद समाजवादी पार्टी के प्रमुख महासचिव प्रोफेसर रामगोपाल यादव आते है। 1988 में राजनीति में कदम रखने से पहले रामगोपाल यादव इटावा के के.के. डिग्री कालेज में प्रोफेसर थे। मुलायम सिंह यादव उनकी योग्यता की वजह से ही उन्हें पार्टी में लाए थे। रामगोपाल यादव बताते हैं कि 1987-88 के समय मुलायम राजनीति में आने को लेकर मेरे काफी पीछे पड़े रहे। फिर एक रात वे इटावा में उनके घर आए और आदेश देते हुए बोले बसरेहर ब्लाक प्रमुख चुनाव के लिए कोई भी उम्मीदवार नहीं मिल रहा है तो तुम वहां अपना नामांकन कर आओ। वे कुछ कह पाते इससे पहले मुलायम अपनी जीप में बैठे और चले गए। इस चुनाव को जीतने के बाद उन्हें इटावा से पंचायत अध्यक्ष का चुनाव लड़ाया गया। इसमें मिली जीत के बाद वे सक्रिय राजनीति में आ गए। 


रामगोपाल की अहमियत चाणक्य से कम नहीं 
उन्होंने 1992 में समाजवादी पार्टी के गठन के बाद पार्टी का संविधान बनाने से लेकर तमाम तरह का दस्तावेजी और दिल्ली की राजनीति का सारा काम रामगोपाल को सौंप दिया। इसी साल उन्हें पहली बार सपा की ओर से राज्यसभा भी भेजा गया। उसके बाद कई बार राज्यसभा भेजा गया। 2004 मे संभल से लोकसभा सदस्य निर्वाचित हुए लेकिन जब उनको कार्यकाल पूरा हो गया तो फिर से राज्यसभा भेज दिया गया ।  2012 मे अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री बनने के बाद परिवारिक विवाद के चरम पर आने के बाद रामगोपाल यादव को कभी पार्टी से निकाला गया तो कभी फिर से पार्टी के भीतर लिया गया लेकिन पार्टी के भीतर उनकी अहमियत चाणक्य से कम नहीं मानी जाती है। 

इटावा की सरजमीं से जुड़ कर मुलायम 1989 में बने सीएम 
सपा से दर्शन सिंह यादव भी राज्यसभा के सदस्य है जिनका कार्यकाल 2 अप्रैल 2018 को खत्म हो रहा है। मुलायम सिंह यादव के एक वक्त सबसे करीबी मानें जानें वाले दर्शन सिंह यादव और मुलायम सिंह यादव के बीच इटावा जिला परिषद की अध्यक्षी को लेकर टकराव हुआ था परिणाम स्वरूप दर्शन सिंह मुलायम सिंह के मुकाबले काग्रेंस के उम्मीदवार बन जसवंतनगर सीट से चुनाव लड़े लेकिन जीत नहीं सके। मुलायम सिंह यादव 1989 मे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए तो मुलायम की ताकत बढती ही चली गई लेकिन दर्शन सिंह ने हार नहीं मानी। काग्रेंस,भाजपा होते हुए कई दलों मे जाकर साल 2004 मे दर्शन सिंह यादव फिर मुलायम सिंह यादव के साथ आ गए। नतीजे के तौर पर उनको राज्यसभा भेजा गया ।

Punjab Kesari