अब इस ‘कुप्रथा'' से आजाद होने लगी हैं यूपी की दलित महिलाएं

punjabkesari.in Saturday, Sep 16, 2017 - 03:56 PM (IST)

बुंदेलखंड(उत्तर प्रदेश): यूं तो देश में कई एेसी कुरीतियां और कुप्रथाएं चलना आम बात है, जिसमें महिलाओं के जीवन को नीचा दिखाया जाता है। लेकिन इस सब मायनों से दूर बुंदेलखंड के एक गांव ने अलग ही नजीर पेश की है। जिसके बाद अब महिलाएं जातिवाद से ऊपर उठकर चल रही है। यहां वर्षों से चली आ रही एक कुप्रथा लुप्त होती दिख रही है।

वर्षों से चली आ रही थी परंपरा
बता दें बुंदेलखंड के ललितपुर में दलित महिलाएं घर के बड़े-बुजुर्गों और ऊंची जातियों के लोगों को देखकर चप्पल सर और हाथ में ले लेती थी। इस परंपरा को गांव की महिलाएं वर्षों से निभा रही थी।

बड़े-बुजुर्ग के सामने चप्पल नहीं पहनती थी महिलाएं
वहीं ललितपुर से सटे महरौनी, मड़ावरा ब्लाॅक और रमेशरा गांव की दलित महिलाएं बताती हैं कि 40 से 60 वर्ष की महिलाएं ससुराल में अपने से बड़े पुरुषों जैसे ससुर, ज्येष्ठ, नन्दोई या बड़ी जाति के लोगों के सामने चप्पल पहनकर नहीं जा सकती हैं।

चप्पल पहनना मर्यादा का विषय
अपने ही घर के पुरुषों या ऊंची जाति के लोगों के सामने चप्पल पहनकर किसी महिला का जाना इज्जत और मर्यादा का विषय माना जाता है। सिर्फ महिला ही नहीं बल्कि पुरुष भी ऊंची जाति के सामने चप्पल पहनकर नहीं जाते हैं।

देना पड़ता था जुर्माना
गांवनिवासी रानी देवी ने बताया कि अगर गलती से चप्पल पहनकर बड़े लोगों के सामने चले गए तो वो हमारी गलती के लिए हमपर जुर्माना लगते हैं। जिसमें हमारे घर से कुछ पैसा दिया जाता है। उस पैसे को गांव के मन्दिर में रख देते हैं जरूरत पड़ने पर इसका उपयोग किया जाता है।

2 प्रतिशत महिलाएं ही निभा रहे परंपरा
उधर इस मामले में रमेशरा ग्राम पंचायत के ग्राम प्रधान शैलेन्द्र सिंह ने बताया कि ये परम्परा सदियों से चली आ रही थी, लेकिन अब 2 प्रतिशत ही बड़े-बुजुर्ग महिलाएं और पुरुष बचे हैं जो इस परम्परा को निभा रहे है। बाकि ये प्रथा अब पूरी तरह से समाप्त हो गई है। क्योंकि आज के युग में गांव के काफी नौजवान शिक्षित हो चुके हैं। वहीं ये युवा वर्ग अब इस परम्परा को नहीं मानते है।

बुर्जुग मानते है अब भी इसे
महरौनी गांव की राधा देवी ने बताया कि चाहे जितनी सर्दी हो, तपती धूप हो, हमें बड़ी जाति के लोगों के सामने चप्पल पहनने की अनुमति नहीं थी, लेकिन आज भी प्रधान के पास हमारे बुजुर्ग चप्पल पहनकर नहीं जाते, अगर जाते भी हैं तो हाथ में चप्पल लेकर जाते हैं।

विरोध करने वाली महिलाओं की संख्या कम
ललितपुर गांव की रहने वाली मीरा बताती हैं कि आज हम अपने घर से चप्पल पहनकर निकलते हैं। विरोध करने वाली महिलाओं की संख्या अभी बहुत ज्यादा नहीं है, पर बदलते समय के साथ एक दूसरे के देखा-देखी नई नवेली बहुएं चप्पल पहनकर निकलने लगी हैं। बदलते वक्त के साथ अब इन महिलाओं की चप्पल हाथों की बजाय पैरों की शोभा बढ़ा रही हैं।