लखीमपुर हत्याकांड: UP सरकार की अब तक की जांच से संतुष्ट नहीं SC, ‘10 दिन के समय के बावजूद कोई प्रगति नहीं’

punjabkesari.in Monday, Nov 08, 2021 - 01:57 PM (IST)

नई दिल्ली/लखीमपुर: लखीमपुर हिंसा मामले में आज तीसरी बार सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है। CJI एनवी रमना ने कहा कि हमने स्टेटस रिपोर्ट देखी। 10 दिन का समय दिया गया था। कोई प्रगति नहीं हुई। बस कुछ गवाहों के बयान हुए। लैब रिपोर्ट भी नहीं आई। फोन रिकॉर्ड का परीक्षण भी नहीं हुआ इस पर यूपी सरकार के वकील हरीश साल्वे ने कहा कि लैब ने 15 नवंबर तक रिपोर्ट देने को कहा है।

बता दें कि CJI एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ UP सरकार की अब तक की जांच से संतुष्ट नहीं है। आज सुनवाई के बाद दूसरी एजेंसी को जांच सौंपी जा सकती है। मुख्य न्यायाधीश एन वी रमना और न्यायमूर्ति सूर्य कांत एवं न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ के समक्ष जनहित याचिका के तहत सुनवाई के लिए सूचीबद्ध की गई है। गत 26 अक्टूबर को मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली इस पीठ ने मामले की सुनवाई की थी। इस दौरान पीठ ने मामले की जांच में ढीले रवैया पर उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार को फटकार लगाई थी। न्यायालय ने गवाहों की सुरक्षा का आदेश देते हुए सीआरपीसी की धारा 164 के तहत बयान दर्ज कराने में तेजी लाने का आदेश दिया था।

बता दें कि उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में तीन अक्टूबर को प्रदर्शनकारी चार किसानों समेत 8 लोगों की मृत्यु हो गई थी। इस मामले में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री एवं भारतीय जनता पार्टी के नेता अजय मिश्रा के पुत्र आशीष मिश्रा आरोपियों में शामिल है। पुलिस ने आशीष समेत 12 आरोपियों को गिरफ्तार किया है। एक साल से आंदोलनरत किसान तीन अक्टूबर को केंद्रीय राज्य मंत्री के पैतृक गांव में आयोजित एक कार्यक्रम में पहुंचे उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के आगमन का सड़कों पर विरोध कर रहे थे। आरोप है कि प्रदर्शनकारी किसानों को आशीष की कार से कुचल दिया गया। इस कार में अन्य आरोपियों के साथ आशीष भी सवार था। हालांकि आशीष ने उस कार में मौजूद होने से इनकार किया था। कार से कुचलकर चार आंदोलनकारी किसानों की मृत्यु के बाद भड़की हिंसा में चार अन्य लोग मारे गए थे, जिनमें एक कार चालक और एक स्थानीय पत्रकार शामिल हैं। हिंसक भीड़ में ने कई गाड़यिों में आग लगा दी थी।

पीठ ने सुनवाई के दौरान इस घटना को ‘जघन्य हत्या' करार दिया था तथा सरकार को गंभीरता से मामले की जांच के आदेश दिये थे। पिछली सुनवाई के दौरान सरकार ने पीठ को बताया कि जांच में किसी प्रकार की लापरवाही नहीं की जा रही है। सरकार की ओर से कहा गया था कि 68 गवाहों में 30 के बयान सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज की जा चुकी है। शीर्ष न्यायालय ने गवाहों की कम संख्या कम बताते हुए कड़ी टिप्पणियां की थीं और कहा था कि सैकड़ों लोगों की मौजूदगी में हुई घटना में सिफर् 68 गवाह हैं? उच्चतम न्यायालय ने इस मामले में स्वत: संज्ञान लिया था, जिसे दो वकीलों के पत्रों के आधार पर जनहित याचिका में तब्दील कर दिया गया था। वकीलों की ओर से इस मामले की न्यायिक जांच और सीबीआई जांच की मांग की गई है।

गौरतलब है कि कई किसान संगठन केंद्र सरकार के तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ देशव्यापी धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। करीब 40 से अधिक किसान संगठन संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले राजधानी दिल्ली की सीमाओं के अलावा देश के अन्य हिस्सों में लगातार विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं । किसान संगठन- केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीन कृषि कानूनों- कृषक उपज व्यापार (वाणिज्य संवर्धन और सरलीकरण) कानून-2020, कृषक (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार कानून-2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून-2020 का विरोध कर रहे हैं। किसानों के विरोध के मद्देनजर शीर्ष अदालत ने जनवरी में इन कानूनों के लागू किए जाने पर रोक लगा दी थी।

Content Writer

Umakant yadav