Kanwar Yatra 2022: सावन शिवरात्रि पर लाखों श्रद्धालुओं ने किया देवाधिदेव का जलाभिषेक, अब घर को लौटने लगी कांवडियों की अपार भीड़

punjabkesari.in Tuesday, Jul 26, 2022 - 08:45 PM (IST)

अमरोहा: अमरोहा समेत पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अन्य जिलों में 14 जुलाई से शुरू कावंड यात्रा मंगलवार को सावन शिवरात्रि के पावन अवसर पर समाप्त हो गयी। शिवालयों में सुबह से ही शुरू हुआ जलाभिषेक करने का सिलसिला देर शाम तक जारी रहा। अब डाक कांवडियों की अपार भीड़ अपने गंतव्य स्थान को वापस लौटने लगी है।      

सावन का पवित्र महीना चल रहा है। पवित्र सावन माह में भगवान शिव के जलाभिषेक का विशेष महत्व होता है। जिसमें से सावन सोमवार और सावन शिवरात्रि पर भगवान भोलेनाथ के जलाभिषेक करने का विशेष महत्व होता है। इस साल सावन माह की शिवरात्रि 26 जुलाई मंगलवार को मनाई जा रही है। हिंदू पंचांग में हर साल में 12 शिवरात्रि होती हैं, लेकिन इनमें से दो शिवरात्रि का खास महत्व दिया जाता है। इनमें सबसे प्रमुख फाल्गुन मास की शिवरात्रि मानी जाती है, जिसे महाशिवरात्रि भी कहा जाता है। वहीं इसके अतिरिक्त दूसरी महत्वपूर्ण शिवरात्रि सावन की मानी जाती है।       

इस दिन विधि-विधान से शिव जी की पूजा की जाती है। सनातन धर्म में श्रावण मास की महिमा का वर्णन किया गया है। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने और पूजा-अर्चना करने वाले भक्तों पर महादेव जल्दी प्रसन्न होते हैं और उन्हें उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है। शिव जी की कृपा जी लोगों पर होती है, उनके जीवन में कभी भी सुख समृद्धि की कमी नहीं होती। श्रावण मास में शिवरात्रि की पूजा का महत्व है।      

सावन शिवरात्रि के दिन देवों के देव महादेव की पूजा अभिषेक करने के लिए शुभ मुहूर्त 26 जुलाई की शाम सात बजकर 24 मिनट से रात 09 बजकर 28 मिनट तक रहेगा। सावन शिवरात्रि के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर व्रत के संकल्प के साथ शिवालयों में जाकर भगवान शिव की पूजा मे शिवलिंग का रुद्राभिषेक जल, घी, दूध, शक्कर, शहद, दही, शिवलिंग पर बेलपत्र, धतूरा और श्रीफल तथा धूप, दीप,नेवैद्य, फल और फूल आदि से पूजा की जा रही है। शिव पूजा के दौरान शिव पुराण, शिव स्तुति, शिव अष्टक, शिव चालीसा और शिव श्लोक का अखंड पाठ चल रहे हैं। मान्यता है कि इस दिन वृत रखने से सुहागिन महिलाओं को अखंड सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

मान्यता है कि समुद्र मंथन भी श्रावण मास में ही संपन्न हुआ था।समुद्र मंथन से निकले विष की भयावहता को देखते हुए महादेव ने संपूर्ण विश्व को अनिष्ट से बचाने के लिए उसे अपने कंठ में धारण कर लिया था,जिससे वे नीलकंठ कहलाये।विषपान से उत्पन्न ताप को दूर करने के उद्देश्य से मेघराज इंद्र ने घनघोर वर्षा की और देवताओं ने भी उन्हें जल अर्पित किया, तभी से जलाभिषेक की पंरपरा प्रारंभ हुई।शिव प्रकृति के‘सृष्टि के प्रतीक हैं, सृष्टि के संहारक व रचियता और संचालक शिव का अस्तित्व ही प्रकृति पर निर्भर करता है।

श्रावण माह जल की वर्षा से सृष्टि के सभी जीव जंतुओं,प्राणियों व चर अचर, जड चेतन को जीवन दान देता है।अत: इस पवित्र महिने मे सृष्टि के स्वामी भगवान शिव का जलाभिषेक करने का विशेष महत्व स्वत: ही बन जाता है।गंगा नदी के तट पर ही सभ्यता का विकास हुआ, तथा समाज ने आर्थिक प्रगति की।कांवड़िये जल लेकर चढाते हैं उनका मंतव्य सृष्टि को जल से पल्लवित करने का रहता है।


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Content Writer

Mamta Yadav

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