जानें श्रीकृष्ण के ससुराल कुंडिनपुर के विषय में जिसे आज तक नहीं मिला पौराणिक महत्व

punjabkesari.in Monday, Aug 10, 2020 - 01:47 PM (IST)

औरैया: उत्तर प्रदेश का औरैया जिला जहां क्रांतिकारियों की भूमि के नाम से इतिहास में दर्ज है वही पौराणिक धरोहरों के साथ जिले के गांव कुदरकोट (पूर्व में कुंडिनपुर) का नाम भी इतिहास के पन्नो में दर्ज है। मान्यता है कि यहां भगवान श्रीकृष्ण की ससुराल है । यहां भगवान श्रीकृष्ण द्वारा रुक्मिणी के हरण करने के प्रमाण भी मिलते हैं। भागवत पुराण में उल्लेख है कि कुंदनपुर में पांडु नदी पार करके भगवान कृष्ण रुकमिणी का हरण कर ले गए थे और द्वारका ले जाकर विवाह कर उन्हें अपनी रानी बनाया था।

इसके अलावा देवी के अदृश्य होने का भी तथ्य भागवत पुराण में मिलता हैै। कुदरकोट में अलोपा देवी का मंदिर भी है। हालांकि भगवान श्रीकृष्ण की ससुराल को लेकर लोगों के अलग-अलग तकर् भी हैं। तकर् है कि कुंडिनपुर जिसका अपभ्रंस कुंदनपुर का नाम बाद में कुदरकोट पड़ा है। भगवान कृष्ण की ससुराल होने के बाद भी आज तक न कुदरकोट का न तो विकास हो सका है और न ही इस स्थल को पौराणिक महत्व मिल सका है। श्रीमद् भागवत ग्रंथो के उल्लेख के अनुसार लगभग 5 हजार बर्ष पूर्व कुंडिनपुर (मौजूदा कुदरकोट) के राजा भीष्मक धर्म प्रिय राजा थे। उनकी एक पुत्री रुक्मणि व पांच पुत्र रुक्मी, रुक्मरथ, रुक्मबाहु, रुक्मकेस तथा रुक्ममाली थे। रुक्मी की मित्रता शिशुपाल से थी, इसलिये वह अपनी बहिन रुक्मणि का विवाह शिशुपाल से करना चाहता था। जबकि राजा भीष्मक व उनकी पुत्री रुक्मणि की इच्छा भगवान श्रीकृष्ण से विवाह करने की थी। जब राजा भीष्मक की अपने पुत्र रुक्मी के आगे न चली तो उन्होंने रुकमनी का विवाह शिशुपाल से तय कर दिया। रुक्मणि को शिशुपाल के साथ शादी तय होने नागवार गुजरा तो उन्होंने द्वारका नगरी में भगवान कृष्ण के यहाँ एक दूत भेजकर अपने को हरण करने का आग्रह भिजवा दिया। भगवान श्रीकृष्ण ने रुक्मणि का संदेश स्वीकार कर लिया और रुक्मणि को द्वारका ले जाकर अपनी रानी बनाने की पूरी तैयारी कर ली।

मान्यता है कि कुंडिनपुर महल से कुछ दूरी पर स्थित गौरी माता मंदिर से रुक्मणि के हरण के बाद देवी गौरी अलोप हो गयी। जिसके बाद वहां पर अलोपा देवी मंदिर की स्थापना की गयी और अब इसी मंदिर को अलोपा देवी मंदिर के नाम से जाना जाता है। मंदिर के पश्चिम दिशा में स्थित द्वापर कालीन महाराजा भीष्मक द्वारा स्थापित शिवलिंग है। जहां अब मंदिर बना हुआ है और ये मंदिर अब बाबा भयानक नाथ के नाम से जाना जाता है।

मंदिर के पुजारी सुभाष चौरसिया ने बताया कि यहां पर चैत्र व आषाढ़ माह की नवरात्रि में हर वर्ष मेला का आयोजन होता है। पिछले 116 बर्षो से भव्य रामलीला का आयोजन होता आ रहा है। दशहरा को रावण का वध होता है। माँ अलोपा देवी मंदिर धरती तल से 60 मीटर की ऊंचाई पर खेरे पर बना हुआ है, हर साल फाल्गुनी अमावश्या को चौरासी कोसी परिक्रमा का आयोजन भी होता है। कुंडिनपुर जो बाद में कुंदनपुर के नाम से जाना जाता था।

जब मुगलों का शासन हुआ तभी से इसका नाम कुदरकोट पढ़ गया। आज भी यहां राजा भीष्मक के 50 एकड़ में फैले महल के अवशेष स्पष्ट दिखाई देते है। आज के समय में जहां कुदरकोट में माध्यमिक स्कूल है वहां पर कभी राजा भीष्मक का निवास स्थान होता था और यहां पर रुक्मणि खेला करती थी। मुगलो ने इस नगर पर कब्जे के बाद इसके पूरे इतिहास को तहस नहस करने के लिए भौगोलिक स्थिति बदलने का भरसक प्रयास किया था। लेकिन यहां पर अवशेष व ग्रंथो में कुंडिनपुर का उल्लेख आज भी है। पुरातत्व विभाग की उदासीनता व जागरूकता की कमी के कारण मथुरा बृन्दावन जैसे पूज्य स्थान कुदरकोट को पौराणिक बिश्व प्रख्याति नही मिल सकी। पिछले बर्ष ही खेरे के ऊपर एक मकान में निकली सुरंग इसका उदाहरण है। जिसका आज तक कोई पता न चल सका है।

 

 


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Author

Moulshree Tripathi

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