लॉकडाउनः हम मजदूर हैं...मगर इस मजबूरी का दर्द अब नहीं सहा जाता

punjabkesari.in Monday, May 18, 2020 - 12:19 PM (IST)

यूपी डेस्कः कोरोना संकट के बीच सबसे ज्यादा मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है तो वो हैं मजदूरों और प्रवासी श्रमिकों को। अच्छी जिंदगी और पेट पालने की तलाश में अपने घर से हजारों किलोमीटर दूर निकले इन मजदूरों ने कभी नहीं सोचा होगा कि वक्त इतनी बेरहम होकर इम्तहान की सारी हदें पार कर देगी। कभी रेलवे ट्रैक पर बिखरी लाशें तो कभी पैदल चलते पत्थर पैर आज के हालात को देखते हुए इनके दिमाग में ये सवाल तो जरूर कौंधता होगा। इतने में ही हमें कहां रोका गया साहब... हमें तो राजनीति का झुनझुना भी बना दिया गया।
 

यह वास्तविकता है कि एक ही समस्या जब सफर पर निकलती है तो वह गरीब लाचार के पास ज्यादा दिन रूकना पसंद करती है और पैसे वालों को शायद दूर से ही नमस्ते कर देती है। कुछ ऐसा ही सह रहे हैं ये बेबस प्रवासी मजदूर। ऊपर से इन प्रवासियों की जख्म पर अब सियासी रोटी भी पकने लगी है। इधर बीच कुछ ऐसी ही घटनाओं की तस्वीरें सामने आई हैं जिसे देखकर मुंह से यही निकला की क्या मजदूर होना इतना बूरा है?

 

दुर्घटनाओं की कहानी... औरैया हादसा से लेकर पैदल पलायन तक
बता दें कि UP के जालौन में प्रवासी मजदूरों से भरी DCM गाड़ी को किसी अज्ञात वाहन ने टक्कर मार दी थी। इस हादसे में दो लोगों की मौत हो गई जबकि 14 मजदूर घायल हो गए थे। वहीं बहराइच सड़क भीषण सड़क हादसे में 1 की मौत हो गई। मुजफ्फरनगर तेज रफ्तार बस ने 10 मजदूरों को रौंद दिया जिसमें 6 की घटनास्थल पर ही मौत हो गई। वहीं महाराष्ट्र जिले के औरंगाबाद रेलवे लाइन पर विगत दिनों हुए दर्दनाक सड़क हादसे को कौन भूल सकता है। जहां ट्रेन की पटरी पर सो रहे 15 प्रवासी मजदूरों के ऊपर से ट्रेन गुजर गयी, जिसके चलते उनकी मौत हो गयी। महोबा जिले के झांसी-मिर्जापुर हाइवे पर अनियंत्रित होकर ट्रक पलट गया हालांकि सभी 67 मजदूर बाल-बाल बच गए।

 

मासूम बेटे को बिठाया ट्रॉली बैग पर
वहीं ऐसी ही तस्वीर आगरा के एमजी रोड के पास भी देखी दरअसल 13 मई को पंजाब से पैदल आ रहा प्रवासी श्रमिकों का दल यहां से गुजर रहा था। इसमें शामिल एक महिला अपने मासूम बेटे को ट्रॉली बैग पर लिटाकर उसे खींचते हुए ले जा रही थी। जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ।

ये तो बस एक-दो बातें हैं ऐसी घटनाओं और तस्वीरों से लॉकडाउन की पूरी किताब है। जिसके लेखक खुद मजदूर हैं ...फावड़ा उठाते मजदूर।

 

 

Author

Moulshree Tripathi