लोकसभा चुनाव 2019: मायावती क्यों चाहती हैं बड़ी भूमिका

punjabkesari.in Sunday, Sep 23, 2018 - 09:03 AM (IST)

लखनऊ:  बिहार में नीतीश कुमार की जद (यू) ने राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के महागठबंधन से अलग होकर भाजपा के साथ गठबंधन किया था तो भाजपा के लिए  यह बड़ी जीत जैसी थी, क्योंकि एनडीए को इससे काफी मजबूती मिली थी और विपक्ष कमजोर हुआ था। लेकिन कुछ समय बाद ही उत्तर प्रदेश में फूलपुर और गोरखपुर के लिए हुए लोकसभा उपचुनाव में बसपा और सपा एक साथ आई और दोनों सीटों पर भाजपा की हार हुई तो फिर से राष्ट्रीय स्तर पर ऐसे महागठबंधन की उम्मीदें बढ़ने लगीं। इसके बाद कर्नाटक में जब कांग्रेस ने जद (एस) को समर्थन देकर उसकी सरकार बनवाई तो उम्मीद और बढ़ी, क्योंकि कर्नाटक चुनाव में जद (एस) और बसपा ने चुनाव पूर्व गठबंधन किया था।

कर्नाटक में कांग्रेस-जद (एस)-बसपा की सरकार बनने के बाद अन्य राज्यों में कांग्रेस-बसपा के बीच गठबंधन के कयास लगाए जाने लगे। ऐसा माना जाने लगा कि राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में होने वाले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस और बसपा के बीच गठबंधन हो सकता है। इसका आधार 2003 के बाद इन तीनों राज्यों में हुए चुनाव के दौरान कांग्रेस और बसपा के वोट शेयर को माना जा रहा था। इन राज्यों में हुए 9 सीटों के उपचुनावों में से 6 सीटों पर दोनों दलों ने भाजपा से ज्यादा वोटें ली थीं, लेकिन मायावती की हालिया घोषणाओं ने इस उम्मीद पर पानी फेर दिया। बसपा सुप्रीमो ने छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी के साथ गठबंधन कर लिया और मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए भी अपने 22 उम्मीदवारों की घोषणा कर दी। मायावती बार-बार कहती रही हैं कि अगर उन्हें सम्मानजनक सीटें नहीं दी गईं तो वह किसी के साथ गठबंधन नहीं करेंगी और अकेले चुनाव लड़ेंगी।

हालांकि, बसपा को अकेले चुनाव लड़ने का नतीजा भुगतना पड़ा है और पिछले लोकसभा चुनाव में उन्हें एक भी सीट नहीं मिली थी। यूपी के विधानसभा चुनाव में न केवल उनकी सीटें कम हुईं, बल्कि उनकी पार्टी का वोट शेयर भी 1989 के बाद से न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया। ऐसे में, यह सवाल जरूर उठता है कि आखिरकार मायावती में इतनी हिम्मत आई कहां से है, जबकि यह स्पष्ट है कि विपक्ष का गठबंधन साल 2014 के चुनाव के समय के गठबंधन से अधिक मजबूत होगा। मायावती विपक्ष के महागठबंधन में शामिल हों या न हों, लेकिन पिछले चुनाव की अपेक्षा इस बार विपक्ष के गठबंधन में ज्यादा पार्टियां होंगी।

दरअसल, भाजपा-कांग्रेस के बाद बसपा अकेली ऐसी पार्टी है, जिसकी पहुंच राष्ट्रीय स्तर पर है। एक आंकड़े के अनुसार साल 2004, 2009 और 2014 के चुनाव में संसदीय क्षेत्र के स्तर पर मिले औसत वोट शेयर में बसपा का तीसरा स्थान रहा है। बसपा को 200 से अधिक सीटों पर 1 प्रतिशत से अधिक वोट मिले थे। यही नहीं, बसपा को सभी संसदीय सीटों पर कुछ न कुछ वोट मिले थे। इसका मतलब स्पष्ट है कि वास्तव में कांग्रेस एवं भाजपा के अलावा बसपा ही अकेली ऐसी पार्टी है जो राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहुंच रखती है। बसपा केवल उत्तर प्रदेश तक सीमित रहने वाली पार्टी नहीं है और मायावती को लगता है कि उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर अधिक सम्मानजनक सीटें मिलनी चाहिए, क्योंकि पार्टी कम से कम 200 संसदीय सीटों पर किसी न किसी स्तर पर प्रभाव डाल सकती है।

Anil Kapoor