अपना ही गांव बना प्रवासी श्रमिकों के लिए बेरहम, नाव को बनाया आशियाना

punjabkesari.in Wednesday, May 27, 2020 - 03:47 PM (IST)

वाराणसी: नाव पर खाना, पीना, सोना और समय बिताना आम तौर पर ये किसी नाविक की दिनचर्या लगे, लेकिन वाराणसी के जिला मुख्यालय से लगभग 24 किलोमीटर दूर चौबेपुर ग्रामीण क्षेत्र के गंगा किनारे बसे गांव कैथी की ये तस्वीरें हैं। जहां गुजरात के मेहसाणा से आए दो दोस्तों ने हालात के साथ समझौता कर नाव को ही अपना आशियाना बना लिया।

बता दें कि लॉकडाउन में फंसे होने के दौरान लाख दुश्वारियों और मुश्किलों को झेलते हुए गुजरात के मेहसाणा से अपने गांव कैथी पहुंचे दो दोस्तों को परिवार और गांव वालों ने गांव में एंट्री ही नहीं दी। तब से लगभग ढाई हफ्ते का वक्त बीत जाने के बावजूद नाविक परिवार के पप्पू और कुलदीप निषाद गंगा की लहरों पर ही अपने पैतृक नाव पर खुद को क्वारंटाइन कर लिया है।

मछली पकड़कर खाने को मजबूर हुए 2 दोस्त
इस बारे में कुलदीप बतातें है कि वे दोनों मेहसाणा में गन्ना पेराई का काम करते थे। लॉकडाउन की वजह से धंधा बंद हो गया। दोनों ने वापस लौटने का फैसला किया। तमाम कोशिशों के बाद जब मालिक ने भी पैसे नहीं दिए तो अन्य लोगों से मदद मांगकर श्रमिक ट्रेन से गाजीपुर तक आए। फिर वहां थर्मल स्क्रिनिंग और ब्लड चेक कराकर बस से वाराणसी अपने गांव कैथी आ गए। उसके बाद मोहल्ले में बैग रखकर वापस नाव पर आ गए। कुछ दिनों बाद गांव जरूरत का सामान लेने गए तो गांव वालों ने रोक दिया तभी से नाव पर ही रह रहें हैं। चूंकि साग-सब्जी नहीं मिल पा रही है तो गंगा में से मछली पकड़कर उसे पकाकर खा ले रहें हैं।

न सरकार से मिली कोई मदद न घरवालों ने दिया साथ
कुलदीप आगे बताते हैं कि उनके गांव में देश के कोने-कोने से श्रमिक लौटे हैं, लेकिन उन दोनों को छोड़कर कोई और क्वारंटाइन का पालन नहीं कर रहा है। इस घड़ी में कुलदीप के माता-पिता तक ने उनको घर में घुसने से मना कर दिया। तभी से वे नाव पर ही आकर लगभग ढाई हफ्तों से रह रहें हैं। जब तक घर से खाना और पैसा मिला तो ठीक नहीं तो नहीं मिला, लेकिन किसी तरह की सरकारी मदद उन तक नहीं पहुंची।  

गांव वालों ने नहीं दिया प्रवेश: पप्पू निषाद
वहीं कुलदीप के साथ ही गांव लौटे पप्पू निषाद तो और ज्यादा बदकिश्मत हैं। पहली बार बाहर कमाने तीन माह पहले ही मेहसाणा गए थें, लेकिन कुछ दिनों बाद ही लॉकडाउन लग गया। किसी तरह अपने गांव तक आए तो किसी ने गांव में घुसने तक नहीं दिया। 15-16 दिन से नाव पर ही रह रहें हैं। जब कभी कुलदीप के घर से मदद मिल गई तो ठीक नहीं तो मछली मारकर अन्य मल्लाह साथी दे देते हैं तो वहीं खा लेते हैं। 

Edited By

Umakant yadav