माघ मेलाः लाखों में बिकने वाले मिट्टी के चूल्हों पर लगा कोरोना ग्रहण, कुम्हारों के चेहरे पर छाई मायूसी

punjabkesari.in Monday, Jan 04, 2021 - 03:34 PM (IST)

प्रयागराजः उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में लगने वाले माघ मेले की तैयारियों ने रफ्तार पकड़ ली है।  संगमनगरी का नजारा कुछ दिनों के बाद एक बार फिर अदभुद होगा। माघ मेला में आने वाले कल्पवासियों के लिए  संगम किनारे रहने वाले लोग जोरों-शोरों से कल्पवास की तैयारियों में जुटे हैं। हालांकि इस बार कोरोना काल के चलते हर साल लाखों में बिकने वाले मिट्टी के चूल्हे पर अब ग्रहण लग चुका है।

कुम्हारों का कहना है कि हर साल संगम के किनारे लाखों चूल्हे बनाए जाते थे क्योंकि यह अनुमान लगाया जाता था कि हजारों की संख्या में श्रद्धालु कल्पवास करेंगे और इन्हीं गोबर और मिट्टी से बने खास चूल्हों में खाना बनाएंगे तो डिमांड को देखते हुए भारी संख्या में चूल्हे बनाए जाते थे। साथ ही आमदनी भी इन मिट्टी के चूल्हों से अच्छी हो जाती थी जिससे पूरे परिवार का पेट पर जाता था। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हो रहा है इस बार कुम्हारों का कहना है कि तकरीबन 80 फ़ीसदी चूल्हे कम बनाए जा रहे हैं।

संगम किनारे रहने वाल कई  ऐसे परिवार भी है जो लाखों की संख्या में चिकनी मिट्टी के चूल्हे बनाते हैं। मिट्टी के चूल्हे और गोबर के उपले बनाकर यह कल्पवासियों को बेचते हैं जिससे इनका गुजर बसर होता है। लेकिन इस बार कोरोना के वजह से इन कुम्हारों के चेहरे पर मायूसी साफ दिखाई दे रही है।

गौरतलब है कि माघ मेले के दौरान पूरी दुनिया से कल्पवासियों का आगमन प्रयागराज में होता है। एक माह संगम की रेती में रहकर यह पूजा पाठ करते हैं. ऐसे में कल्पवासियों के खानपान की व्यवस्था भी बिल्कुल अलग होती है। गंगा के किनारे टेंट में रहकर कल्पवासी पूरे एक माह तक मिट्टी के चूल्हे में खाना बनकर खाते हैं।
 

 


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Moulshree Tripathi

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