होली खेले मसाने में... की धुन पर महादेव ने भूतगणों के साथ खेली चिता भस्म की होली

punjabkesari.in Saturday, Mar 07, 2020 - 12:18 PM (IST)

वाराणसीः देश-दुनिया में आस्थावान सनातन धर्मी होली का पर्व एक दूसरे के साथ रंग खेलकर मनाते हैं, लेकिन धर्म की नगरी काशी में सबसे पहले काशीवासी अपने ईष्ट भोले बाबा के साथ महाश्मसान पर चिता भष्म के साथ खेलकर पर्व की शुरूआत होली के पहले ही कर देते हैं। इसके बाद ही काशी में होली की शुरुआत हो जाती है।

वहीं शुक्रवार की सुबह से ही बाबा मशान नाथ की विधि विधान पूर्वक पूजा का दौर शुरू हुआ तो चारों दिशाएं हर-हर महादेव से गूंज उठीं। बजते डमरू, घंट, घड़ियाल और मृदंग और तो और साउंड सिस्टम से निकलती धुनों के बीच जलती चिताएं। फिजाओं में रंग-गुलाल के अलावा उड़ता चिता-भस्म। इस दौरान साउंड सिस्टम होली खेले मसाने की धुन पर शिव शक्तों ने जमकर डांस किया।

मोक्षदायिनी काशी नगरी के मणिकर्णिका महाश्मशान घाट पर कभी चिता की आग ठंडी नहीं पड़ती। चौबीसों घंटें चिताओं के जलने और शवयात्राओं के आने का सिलसिला चलता ही रहता है। चारों ओर पसरे मातम के बीच वर्ष में एक दिन ऐसा आता है जब महाश्मशान पर होली खेली जाती है। वे भी रंगों के अलावा चिता के भस्म से होली।

मान्यता है कि रंगभरी एकादशी एकादशी के दिन माता पार्वती का गौना कराने बाद देवगण एवं भक्तों के साथ बाबा होली खेलते हैं, लेकिन भूत-प्रेत, पिशाच आदि जीव-जंतु उनके साथ नहीं खेल पाते हैं। इसीलिए अगले दिन बाबा मणिकर्णिका तीर्थ पर स्नान करने आते हैं और अपने गणों के साथ चिता भस्म से होली खेलते हैं। नेग में काशीवासियों को होली और हुड़दंग की अनुमति दे जाते हैं। 

काशीवासी पुरे वर्ष भर रंगों की होली खेलने के पहले इस महाश्मसान पर होने वाली चिता भस्म की होली का इंतजार करते हैं। चूकी अंतिम सत्य शव है और काशीवासी शव को शिव के रूप में पूजनीय मानते हैं। इसलिए शिव के साथ होली खेलने के लिए महाश्मशान पर अबीर गुलाल की जगह चिता की राख से बेहतर कुछ और न मानकर काशीवासी महाश्मशान में चिता भस्म की होली खेलने आते हैं। 

Tamanna Bhardwaj