इस्लामिक विद्वानों के सबसे बड़े धार्मिक संगठन जमीयत उलमाएं हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गए मौलाना महमूद मदनी

punjabkesari.in Thursday, May 27, 2021 - 06:35 PM (IST)

सहारनपुर:  देवबंदी विचारधारा के इस्लामिक विद्वानों के सबसे बड़े धार्मिक और सामाजिक सबसे बडे संगठन जमीयत उलमाएं हिंद के एक गुट के अध्यक्ष पद के आनॅलाइन हुए चुनाव में एक राय से मौलाना महमूद मदनी का चयन किया गया। गुरूवार को हुए इस चुनाव में जमीयत के सचिव मौलाना हकीमुद्दीन कासमी को महासचिव बनाया गया। गत 21 मई को कारी उस्मान मंसूरपुरी के कोरोना से हुए निधन के बाद अध्यक्ष का पद रिक्त हुआ था। महमूद मदनी राष्ट्रीय महासचिव के पद पर कार्य कर रहे थे।       

बता दें कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्योें की आनॅलाइन बैठक में आज महमूद मदनी को यह बडी जिम्मेदारी दी गई। दारूल उलूम के मोहतमिम मुफ्ति अबुल कासिम नोमानी और एयूडीएफ के लोकसभा सांसद और दारूल उलूम की प्रबंध समिति के सदस्य मौलाना बदरूद्दीन अजमल भी इस महत्वपूर्ण बैठक का हिस्सा रहे। गौरतलब है कि 57 वर्षीय महमूद मदनी ने दारूल उलूम देवबंद से शिक्षा प्राप्त की थी। वह राष्ट्रीय लाकेदल उम्मीदवार के रूप में सपा समर्थन से वर्ष 2006 में उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के सदस्य चुने गए थे। उन्होंने अफगानिस्तान के मदरसा छात्रों के आतंकवाद को इस्लाम धर्म से जोड़कर प्रचारित करने के खिलाफ दारूल उलूम देवबंद से फतवा लिया था। वर्ष 2008 में 25 फरवरी को दारूल उलूम देवबंद में छह हजार मदरसा प्रतिनिधियों के सम्मेलन में दारूल उलूम द्वारा जारी फतवे की घोषणा की गई थी। जिसमें दारूल उलूम के विद्वान मुफ्तियों ने कुरान के पांचवे अध्याय की रोशनी में कहा था कि एक निर्दोष या समूह में हत्या किया जाना या हिंसा या आतंक फैलाना पूरी तरह से गैर इस्लामिक कार्य है। दारूल उलूम और जमीयत ने इस फतवे के समर्थन में देश के 40 बडे शहरों में जलसे किए थे।       

19 नवंबर 1919 को देवबंदी विचारधारा के इस्लामिक विद्वानों ने देश की आजादी को चलाए जा रहे महात्मा गांधी के अहिंसक आंदोलन का समर्थन करने और खिलाफत आंदोलन चलाने जैसे बडे विषयों को लेकर जमीयत उलमाएं हिद का गठन किया था। इसके संस्थापक मौलाना किफायतुल्ला देहलवीं थे। महमूद मदनी के दादा मौलाना हुसैन अहमद मदनी ने 1947 में भारत विभाजन का यह कहते हुए विरोध किया था कि धर्म के आधार पर किसी राष्ट्र की स्थापना नहीं की जा सकती। 

मौलाना असद मदनी कांग्रेस समर्थक थे और उन्हेें कांग्रेस ने तीन बार 1968, 1980 और 1988 में राज्यसभा का सदस्य बनाया था। उनके निधन के बाद वर्ष 2008 में जमीयत उलमाएं हिंद दो गुटों में बंट गई थी। एक गुट की अगुवाई असद मदनी के छोटे भाई एवं दारूल उलूम के प्रिसिपल मौलाना अरशद मदनी कर रहे है जबकि दूसरे गुट पर महमूद मदनी का कब्जा बना रहा। 


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Content Writer

Moulshree Tripathi

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