गणतंत्र दिवस पर बोलीं मायावती- देश में गरीबों व अमीरों के बीच बढ़ती जा रही दौलत की खाई, ‘गण'' की चिंता करे सरकार

punjabkesari.in Tuesday, Jan 26, 2021 - 06:22 PM (IST)

लखनऊ:  किसान आंदोलन का सीधे तौर जिक्र किये बगैर बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती ने कहा कि गणतंत्र दिवस को केवल रस्म अदायगी के तौर पर मनाने की बजाय गरीब,कमजोर,किसान और मेहनतकश लोगों की जीवन यापन की समीक्षा करनी चाहिये। देशवासियों को गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें देते हुये मायावती ने मंगलवार को कहा कि मेहनतकश लोगों ने पिछले वर्षों में वास्तव में अपने जीवन में क्या पाया व क्या खोया इसके आकलन व समीक्षा की भी जिम्मेदारी निभानी चाहिए क्योंकि देश इन्हीं लोगों से बनता है व इनके बेहतर जीवन से फिर सजता व संवरता है।

उन्होंने कहा कि 26 जनवरी 1950 को बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर का समतामूलक अति-मानवतावादी पवित्र संविधान लागू हुआ तबसे लेकर अब तक का देश का इतिहास यह साबित करता है कि यहाँ पहले चाहे कांग्रेस की सरकार रही हो या फिर अब भाजपा की, दोनों ने ही मुख्य तौर पर अपने असली संवैधानिक दायित्वों से काफी हद तक मुह मोड़ा है वरना देश गरीबी, बेरोजगारी व पिछड़ेपन आदि से इतना ज्यादा पीड़ित व त्रस्त अबतक लगातार क्यों बना रहता।

बसपा अध्यक्ष ने कहा कि इस देश की असली जनता ने लाचार, मजबूर व भूखे रहकर भी देश के लिए हमेशा कमर तोड़ मेहनत की है फिर भी उनका जीवन सुख-समृद्धि से रिक्त है जबकि देश की सारी पूँजी कुछ मुट्ठीभर पूँजीपतियों व धन्नासेठों की तिजोरी में ही लगातार सिमट कर रह गई है, जो ईर्ष्या की बात नहीं है मगर एक प्रकार से गलत व अनुचित मानी जाने वाली बात जरूर होनी चाहिए। देश में करोड़ों गरीबों व चन्द अमीरों के बीच दौलत की खाई लगातार बढ़ती ही जा रही है, जो भारत जैसे महान संविधान वाले देश के लिए अति-चिन्ता के साथ-साथ बड़े दु:ख की भी बात है और आज गणतंत्र दिवस के दिन यह गंभीर चिन्तन का विषय होना ही चाहिये।

पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि सरकार से मेरी लगातार अपील रही है कि वह किसानों की खासकर तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की मांँग को मान ले और फिर किसानों से आवश्यक सलाह-मश्विरा करके नया कानून जरूर ले आए तो बेहतर होता। निश्चय ही राजनीति से परे पूर्ण रूप से देशहित में रखी गई बसपा की यह बात समय से केन्द्र सरकार अगर मान लेती तो आज गणतंत्र दिवस पर जो एक नई परम्परा की शुरूआत हो गई है उसकी नौबत ही नहीं आती। इसे किसानों के प्रति भी सरकार की घोर असंवेदनशीलता नही तो और क्या कहा जाएगा।       

 

 

Moulshree Tripathi