मऊ: थर्ड डिग्री मामले में सीओ, कोतवाल समेत आठ पुलिसकर्मियों को समन

punjabkesari.in Wednesday, Jan 15, 2020 - 01:55 PM (IST)

मऊ: उत्तर प्रदेश में मऊ जिले के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट विनोद शर्मा ने हत्या का प्रयास और गलत तरीके से निरुद्ध करने के मामले को संज्ञान में लिया है। वादी मुकदमा की ओर से दाखिल प्रोटेस्ट प्रार्थना पत्र की सुनवाई के बाद आरोपीगण क्षेत्राधिकारी, कोतवाल समेत आठ पुलिस कर्मियों को हत्या का प्रयास, मारपीट और गलत तरीके से निरुद्ध करने के मामले में समन जारी करने का आदेश दिया है। साथ ही सुनवाई के लिए 23 जनवरी 2020 की तिथि नियत की है।

बता दें कि मामला दोहरीघाट थाना क्षेत्र का है। मामले के अनुसार दोहरीघाट थाना क्षेत्र के फरसरा खुर्द गांव निवासी गंगा प्रसाद राय की तहरीर पर उच्च न्यायालय इलाहाबाद के आदेश और एसपी के निर्देश के बाद तीन अक्टूबर 2015 को दोहरीघाट थाने में अपराध संख्या 667/2015 धारा 307, 323, 342 और 120 बी भादवि के तहत मुकदमा दर्ज हुआ। इसमें तत्कालीन क्षेत्राधिकारी घोसी अजय कुमार सिंह, तत्कालीन थानाध्यक्ष दोहरीघाट वर्तमान में कोतवाल घोसी परमानंद मिश्रा, एसओजी प्रभारी आनंद कुमार सिंह, एसआई रामबाबू पांडेय, और आरक्षीगण राजेश सिंह, राजेश पांडेय, जगदंबा पांडेय और प्रदीप राय उर्फ राजू राय को नामजद किया गया।

वादी का आरोप है कि नौ अप्रैल 2015 को थानाध्यक्ष परमानंद मिश्र ने उसके लड़के ज्ञानेश राय (22) को पूछताछ करने के लिए थाने पर बुलाया। वादी अपने लड़के ज्ञानेश राय को लेकर थाने पर गया। वादी का कथन है कि थानाध्यक्ष ने कहा कि ज्ञानेश को छोड़ दीजिए पूछताछ करनी है। पूछताछ करके छोड़ दिया जाएगा। वादी का आरोप है कि इस दौरान पूछताछ के नाम पर आरोपीगण ने उसके लड़के के साथ थर्ड डिग्री, मारपीट और अमानवीय व्यवहार करते हुए बिजली का करंट लगा दिए और मुंह में तार डाल दिया जिससे उसकी हालत बिगड़ गई। वहीं डॉक्टर ने उसके पेट से तार बरामद किया।

वादी उच्च न्यायालय में एक याचिका दाखिल किया। उच्च न्यायालय ने पुलिस अधीक्षक मऊ को मामले में रिपोर्ट दर्ज कर सीओ स्तर के अधिकारी से विवेचना कराए जाने का निर्देश दिया। उच्च न्यायालय के आदेश और पुलिस अधीक्षक के निर्देश पर दोहरीघाट थाने में रिपोर्ट दर्ज हुई। पुलिस ने विवेचना के बाद मामले में अंतिम रिपोर्ट लगा दिया। जिस पर वादी गंगा प्रसाद राय ने कोर्ट में प्रार्थना पत्र दाखिल करके पुलिस द्वारा भेजे गए अंतिम रिपोर्ट को निरस्त करने और आरोपियों को विचारण के लिए तलब करने का अनुरोध किया था।

वादी के अधिवक्ता के तर्कों को सुनने तथा पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्यों का अवलोकन करने के बाद सीजेएम ने पाया कि मजिस्ट्रेटियल जांच में अपर जिलाधिकारी ने आरोपियों को अवैधानिक तरीके से हिरासत में लिए जाने तथा पुलिसकर्मियों की लापरवाही उपेक्षा के कारण उसके शरीर में तार जैसी वस्तु जाने का दोषी पाया। वहीं विभागीय जांच में अपर पुलिस अधीक्षक ने आरोपियों को लापरवाही व उदासीनता का दोषी पाया। सीजेएम ने अपने आदेश में लिखा कि विवेचना अधिकारी ने मजिस्ट्रेटियल जांच और विभागीय जांच में दोषी पाए जाने के बावजूद इसका उल्लेख नहीं किया न ही इस पर ध्यान दिया। विवेचकगण बंशीधर मिश्रा और अरशद जमाल सिद्दीकी द्वारा अभियुक्तगण को बचाने के उद्देश्य से पक्षपातपूर्ण व त्रुटिपूर्ण ढंग से विवेचना की गई है। साक्ष्य संकलन में घोर उपेक्षा व लापरवाही बरती गई है।

अपराध का संज्ञान लेने के लिए पर्याप्त साक्ष्य है। आदेश में लिखा गया है कि धारा 197 सीआरपीसी के तहत समुचित सरकार की अनुमति आवश्यक होती है। लेकिन इस मामले में ज्ञानेश राय किसी मुकदमे में न तो वांछित था और न ही उसके विरुद्ध कोई मुकदमा पंजीकृत था। इसके बावजूद अभियुक्तगणों द्वारा उसे पुलिस अभिरक्षा में लिया गया तथा उसे प्रताड़ित कर उसके मुंह में अवांछित पदार्थ खिलाया जाना विधि द्वारा प्राधिकृत कार्य नहीं किया जा सकता है न ही ऐसा कार्य विहित कार्य की श्रेणी में आता है। इसलिए अभियुक्तगण को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 197 के तहत संरक्षण प्राप्त नहीं होगा। अभियुक्तगण पर इस मामले में अभियोजन चलाने हेतु समुचित सरकार की अनुमति की आवश्यकता नहीं है। ऐसे मामले में बिना समुचित सरकार की अनुमति के अपराध का संज्ञान लिया जा सकता है।

 

Ajay kumar