Navratri: 51 शक्तिपीठों में से एक है मां ललिता देवी मंदिर, यहीं गिरा था मां सती का हस्‍तांगुल... पांडवों ने किया था विश्राम

punjabkesari.in Wednesday, Oct 13, 2021 - 12:53 PM (IST)

प्रयागराज: शहर के दक्षिण दिशा में यमुना नदी के समीप मीरापुर मुहल्ले में देवी सती का प्राचीन मंदिर स्थित है, जिसे महाशक्ति पीठ के नाम से जाना जाता है। 51 शक्तिपीठों में से एक मां ललिता का विशेष महात्म्य है। पुराणों के अनुसार 88 हजार ऋषियों की तपोस्थली में स्थापित आदिशक्तित्रिपुर सुंदरी जगत जननी ललित माता का मंदिर एक सौ आठ शक्तिपीठों में माना जाता है। मान्यता है कि यहीं पर सती का हस्तांगुल गिरा था। शक्तिपीठ मंदिर के पास संकट मोचन हनुमान, राम, लक्ष्मण और सीता के साथ-साथ राधा-कृष्ण की भव्य मूर्तियां स्थापित हैं। मान्‍यता यह भी है कि पवित्र संगम में स्नान के पश्चात इस महाशक्तिपीठ में दर्शन-पूजन से भक्‍तों की मनोकामना पूरी होती है। यही कारण है कि अमावस्या एवं नवरात्र के अलावा आम दिनों में भी हजारों श्रद्धालु दर्शन-पूजन करने आते हैं। इस आदि शक्ति पीठ का वर्णन देवी पुराण से मिलता है।


शक्तिपीठ की कुल लम्बाई 108 फीट
बता दें कि प्रयागराज का ललित देवी धाम 51 शक्ति पीठों में से एक है। इस पूरे शक्ति पीठ में कुल 5 मन्दिर स्तिथ है। यहां सबसे आगे भोले नाथ का मन्दिर, हनुमान जी का एक मन्दिर, राम जी का मंदिर और बगल में माँ ललिता का शक्तिपीठ मौजूद है। इस शक्तिपीठ की कुल लम्बाई 108 फीट है। मन्दिर के अन्दर देवी के ललित रूप की एक मूर्ति मौजूद है। यह भगवती के 51 शक्तिपीठों में से एक है। मन्दिर के अन्दर एक पीपल का पेड़ है। पुराणों के अनुसार इसी पेड़ के नीचे पांडवो ने विश्राम किया था। यही पर पांडव कूप है जहा पांडवो ने पूजा की थी और जल पिया था। आज भी उस कुए को पांडव कूप के नाम से जाना जाता है। मन्दिर परिसर के अन्दर एक पीपल का पेड़ भी मौजूद है जहां अपनी मनोकामना पूरी होने के बाद भक्त पेड़ के चारो तरफ़ धागा बांधते हैं।


देवी पुराण से मिलता है शक्ति पीठ का वर्णन
इस आदि शक्ति पीठ का वर्णन देवी पुराण से मिलता है। पुराणों के अनुसार सती के शव के विभिन्न अंगों से 51 शक्तिपीठो का निर्माण हुआ था। इसके पीछे यह कथा यह है कि दक्ष प्रजापति ने कनखल (हरिद्वार) में `बृहस्पति सर्व' नामक यज्ञ रचाया। उस यज्ञ में ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र और अन्य देवी-देवताओं को आमंत्रित किया गया, लेकिन जान-बूझकर अपने जमाता भगवान शंकर को नहीं बुलाया। शंकरजी की पत्नी और दक्ष की पुत्री सती पिता द्वारा न बुलाए जाने पर और शंकरजी के रोकने पर भी यज्ञ में भाग लेने गयीं। यज्ञ-स्थल पर सती ने अपने पिता दक्ष से शंकर जी को आमंत्रित न करने का कारण पूछा और पिता से उग्र विरोध प्रकट किया। इस पर दक्ष प्रजापति ने भगवान शंकर को अपशब्द कहे। इस अपमान से पीड़ित हो, सती ने यज्ञ-अग्नि पुंड में कूदकर अपनी प्राणाहुति दे दी।


जब भगवान शंकर का खुला तीसरा नेत्र
भगवान शंकर को जब इस दुर्घटना का पता चला तो क्रोध से उनका तीसरा नेत्र खुल गया। भगवान शंकर के आदेश पर उनके गणों के उग्र कोप से भयभीत सारे देवता और रृषिगण यज्ञस्थल से भाग गये। भगवान शंकर ने यज्ञपुंड से सती के पार्थिव शरीर को निकाल कर कंधे पर उठा लिया और दुःखी हो इधर-उधर घूमने लगे। तदनन्तर जहाँ-जहाँ सती के शव के विभिन्न अंग और आभूषण गिरे, वहाँ 51 शक्ति पीठों का निर्माण हुआ। अगले जन्म में सती ने हिमवान राजा के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया और घोर तपस्या कर शिवजी को पुन पति रूप में प्राप्त किया। प्रयागराज का ललिता देवी का शक्ति पीठ उन्ही 51 शक्ति पीठो में से एक है। पुराणों मे यह वर्णन मिलता है की इसी स्थान पर देवी सती के धाहिने हाथ का पंजा गिरा था। माना जाता है की ललिता देवी के इस रूप के दर्शन मात्र से विजय श्री मिलती है।


लाक्षा गृह से बच निकलने के बाद पांडवों ने किया था विश्राम
इस धाम का वर्णन द्वापर युग में भी मिलता है। जब पांडव लाक्षा गृह से बच के निकल थे तो वह इलाहाबाद के इसी धाम में ही उन्होंने एक रात विश्राम किया था और इसी जगह पे देवी ललिता की अस्तुति की थी। आज भी यहाँ पांडव कुंड मौजूद है जहां रातभर पांडव रुके थे और इसी कुंड के पानी से उन्होंने स्नान किया था।


मंदिर के महंत शिव मूरत मिश्र का कहना है कि ललिता देवी के इस धाम में हर साल नवरात्र के मौके पर एक विशाल मेला लगता है। देवी के शक्ति पीठ के रूप में जाना जाने वाले इस धाम में नवरात्र के अलावा भी आम दिनों में लोग यहाँ गाजे-बजे के साथ आते हैं और रोज़ ही यहाँ शाम को एक विशेष आरती होती है।


देवी  जागरण  तो  यहाँ  का नियमित  हिस्सा है जिसमें शामिल  होकर श्रद्धालु आस्था के सागर में गोते लगाते हैं। मन्दिर के बाहर पूरे साल मेले जैसा माहौल रहता है। चारों तरफ़ दुकाने सजी रहती हैं।

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Umakant yadav