अॉफ दि रिकार्ड- मायावती : कठोर खिलाड़ी

punjabkesari.in Sunday, May 13, 2018 - 10:23 AM (IST)

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में बसपा सुप्रीमो मायावती और समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव के बीच हुए राजनीतिक गठबंधन की शर्तों और नियमों की परतें अब खुलने लगी हैं जिससे सभी के लिए परेशानियां पैदा हो गई हैं। दोनों नेता इस बात पर राजी हुए हैं कि यह गठबंधन केवल मई, 2019 के संसदीय चुनावों तक ही सीमित है, यह 2022 में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए नहीं है। मायावती की पार्टी लोकसभा की 45 और सपा 35 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। उचित समय पर निर्वाचन क्षेत्रों का फैसला किया जाएगा मगर संख्या पर अब कोई बातचीत नहीं होगी।

अखिलेश ने ‘बुआ जी’ से अनुरोध किया है कि संचार व्यवस्था खुली रहनी चाहिए मगर मायावती ने इस पर न कह दिया। मायावती अब बातचीत के लिए उपलब्ध नहीं और वह वार्ताकारों के जरिए ही बात कर रही हैं। जब कैराना लोकसभा सीट के लिए संयुक्त विपक्षी उम्मीदवार खड़ा करने का प्रश्न उठा तो मायावती ने मुलाकात करने से इंकार कर दिया। रालोद नेता जयंत चौधरी इस सीट पर चुनाव लड़ना चाहती हैं।

अखिलेश ने उन्हें मामले को सुलझाने के लिए लखनऊ में आमंत्रित किया। मायावती ने उनसे मुलाकात करने की बजाय एक संदेश भेजा कि यह टिकट एक महिला मुस्लिम नेता को दी जाए जो रालोद के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ सकती है। कैराना निर्वाचन क्षेत्र में जाटों का दबदबा है और वे मुसलमानों को वोट नहीं देते इसलिए यह जाटों में रालोद की लोकप्रियता की परीक्षा होगी। उन्हें यह संदेश वार्ताकारों के जरिए भेजा गया।

अगर रालोद की मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव जीत जाती है तो यह साबित होगा कि जाटों ने रालोद के उम्मीदवार को वोट दिया है। इसका कोई और विकल्प नहीं था। रालोद ने इस शर्त को स्वीकार कर लिया क्योंकि भाजपा का रालोद के साथ कोई भी संबंध बनाए रखने का प्रश्न नहीं उठता क्योंकि दोनों परम्परागत सीटें कैराना और बागपत 2014 में भाजपा ने जीती थीं।

Anil Kapoor