OMG-मरीज जागता रहा और डॉक्टर ने कर दिया ऑपरेशन

punjabkesari.in Wednesday, Nov 27, 2019 - 01:40 PM (IST)

लखनऊः डॉक्टर्स को धरती का भगवान माना जाता है। चिकित्सक आए दिन अपने करामात और प्रयोगों से समाज में ऊंचा स्थान पाते जा रहे हैं। ऐसी ही एक घटना सामने आई है। जहां मरीज अब्दुल कलाम जागता रहा और डॉक्टरों ने उसके दिल के वॉल्व बदल दिए। यह संभव किया कॉर्डियो थोरेसिक वैस्कुलर सर्जन डॉ. देवनराज और उनकी टीम ने। इसके लिए वॉल्व रिप्लेसमेंट अवेक सर्जरी यानी मरीज के होश में रहते हुए ऑपरेशन की तकनीक अपनाई गई है। अब वह पूरी तरह से स्वस्थ है और अपनी दुकान खोलने की तैयारी में है। 

बता दें कि 28 वर्षीय अब्दुल कलाम गोंडा का रहने वाला है। जिसे एओर्टिक रेगरजिटेशन एलवी डिस्फ़ंक्शन की समस्या है। उसके एक वॉल्व ने काम करना बंद कर दिया है। जिससे अब्दुल कलाम को करीब दो साल से सांस लेने में दिक्कत हो रही थी। सीने में दर्द, अपच, भूख न लगने और वजन कम होने की समस्या थी। 

अपोलो मेडिकल सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल के डॉ. विजयंत देवनराज ने बताया कि अब्दुल की जांच करने पर मरीज और उसके परिवारजनों को सर्जरी के बारे में जानकारी दी गई। मरीज की काउंसलिंग के बाद वह अवेक सर्जरी के लिए तैयार हो गया। उसे वेंटीलेटर पर नहीं रखा गया। यह सर्जरी करीब दो घंटे चली।डॉ. विजयंत का दावा है कि उत्तर भारत में एओर्टिक वॉल्व रिप्लेसमेंट अवेक सर्जरी पहली बार हुई है। 2003 में पहली बार अवेक सर्जरी हुई थी। इसके बाद बंगलूरू सहित अन्य बड़े शहरों के हार्ट सेंटर में इस तकनीक को अपनाया गया और परिणाम बेहतर दिखे। डॉ. विजयंत ने आगे बताया कि अवेक सर्जरी में मरीज पूरे होशोहवास में रहता है। यह सर्जरी तकनीकी रूप से चुनौतीपूर्ण होती है, लेकिन सफलता दर अच्छी है। इसमें रोगी जागता रहता है और बात करता रहता है। उसे किसी भी प्रकार के दर्द का अहसास न हो, इसके लिए सर्जरी वाले स्थान को सुन्न किया जाता है। ऐसे में वह अपने आस-पास होने वाली गतिविधियों को जानता रहता है।

मरीज ने बताया कि उसे यह पता चल रहा था कि उसके सीने पर सर्जरी की जा रही है। वहीं हॉस्पिटल के मैनेजिंग डायरेक्टर व सीईओ डॉ. मयंक सोमानी ने बताया कि सर्जरी के लिए हृदय संबंधी कोई दवाएँ प्रयोग नहीं की गईं। उसे खून चढ़ाने की भी जरूरत नहीं पड़ी। इसमें करीब ढाई लाख रुपये खर्च हुए। मरीज को सप्ताह भर के बाद अस्पताल से घर भेज दिया गया। अब वह फॉलोअप में आ रहा है। भविष्य में भी इस तरह के प्रयोग किए जाएंगे। डॉ. देवनराज ने बताया कि 2003 में पहली बार अवेक सर्जरी हुई थी। इसके बाद बंगलूरू  सहित अन्य बड़े शहरों के हार्ट सेंटर में इस तकनीक को अपनाया गया और परिणाम बेहतर दिखे। इस मरीज के फेफड़े में भी समस्या थी। सांस लेने में लगातार दिक्कत हो रही थी। ऐसे में नए प्रयोग के तहत अवेक सर्जरी प्लान की गई। इस तरह की सर्जरी में मरीज के कोमा में जाने की स्थिति का तत्काल पता चल जाता है। उसके शरीर का कोई हिस्सा काम करना बंद कर रहा है तो भी पता चल जाता है।

Ajay kumar