जजमानों के 500 पीढ़ियों से अधिक का लेखा-जोखा रखते हैं पुरोहित
punjabkesari.in Wednesday, Jan 09, 2019 - 02:45 PM (IST)
प्रयागराजः विरले ही होंगे जिन्हें अपनी तीन पीढ़ी के पहले के लोगों के नाम याद रहता होगा लेकिन दुनिया के सबसे बड़े आध्यात्मिक और सांस्कृतिक समागम कुंभ में पुरोहितों के पास अपने जजमानों के 500 पीढियों से अधिक का लेखा-जोखा मौजूद है।
पुरोहितों को केवल जजमान अपना नाम और स्थान का पता बताने की देरी होती है बस, शेष काम उनका होता है। वह आधे घंटे के अन्दर कई पीढियों का लेखा-जोखा सामने रख देते हैं। लाखों लोगों के ब्यौरे के संकलित करने का यह तरीका इतना वैज्ञानिक और प्रमाणिक है कि पुरातत्ववेत्ता और संग्रहालयों के अधिकारी भी इससे सीख ले सकते हैं।
अत्याधुनिक दौर में भी पुरोहित अपने जजमानों राजा-महाराजाओं और मुस्लिम शासकों से लेकर देश भर के अनगिनत लोगों की पाच सौ वर्षों से अधिक की वंशावलियों के ब्यौरे बही खातों में पूरी तरह सम्भाल कर रखते हैं। तीर्थराज प्रयाग में करीब 1000 तीर्थ पुरोहितों की झोली में रखे बही-खाते बहुत सारे परिवारों, कुनबों और खानदानों के इतिहास का ऐसा दुर्लभ संकलन हैं जिससे कई बार उसी परिवार का व्यक्ति ही पूरी तरह वाकिफ नहीं होता है।
तीर्थपुरोहितों का कहना है कि राजपूत युग के पश्चात यवन काल, गुलाम वंश, खिलजी सम्राट के समय भी इन तीर्थ पुरोहितों की महिमा बरकरार रखी गई थी। अलाउद्दीन खिलजी द्वारा दिया गया माफीनामा का फरमान प्रयाग के तीर्थ पुरोहितों के पास यहां मौजूद है।
उनका कहना है इन पुरोहितों के खाता-बही में यजमानों का वंशवार विवरण वास्तव में वर्णमाला के व्यवस्थित क्रम में आज भी संजो कर रखा हुआ है। पहले यह खाता-बही मोर पंख बाद में नरकट फिर जी-निब वाले होल्डर और अब अच्छी स्याही वाले पेनों से लिखे जाते हैं। वैसे मूल बहियों को लिखने में कई तीर्थ पुरोहित जी-निब का ही प्रयोग करते हैं। टिकाऊ होने की वजह से सामान्यतया काली स्याही उपयोग में लाई जाती है। मूल बही का कवर मोटे कागज का होता है। जिसे समय-समय पर बदला जाता है। बही को मोड़ कर मजबूत लाल धागे से बांध दिया जाता है।