उत्तर प्रदेश विधान परिषद : संख्या बल कम होने की वजह से सपा ने गंवाया नेता प्रतिपक्ष का पद

punjabkesari.in Saturday, Jul 09, 2022 - 09:17 AM (IST)

लखनऊ, आठ जुलाई (भाषा) उत्तर प्रदेश विधानपरिषद के 12 सदस्यों का कार्यकाल सात जुलाई को समाप्त होने के बाद समाजवादी पार्टी के सदस्यों की संख्या राज्य विधायिका के उच्च सदन में घटकर 10 के नीचे आ गई है। इसकी वजह से पार्टी को सदन में नेता प्रतिपक्ष का पद गंवाना पड़ा है।

उत्तर प्रदेश विधानपरिषद के प्रमुख सचिव राजेश सिंह द्वारा बृहस्पतिवार को जारी एक बयान के मुताबिक,‘‘ 27 मई को विधान परिषद में सपा 11 सदस्यों के साथ सबसे बड़ी पार्टी थी और साथ ही गणपूर्ति (कोरम)हेतु भी सक्षम थी। इसकी वजह से पार्टी के सदस्य लाल बिहारी यादव को नेता प्रतिपक्ष के तौर पर मान्यता प्रदान की गई थी।’’
सिंह ने बताया, ‘‘ सात जुलाई को विधान परिषद में सपा के सदस्यों की संख्या घटकर नौ रह गई, जो 100 सदस्यीय विधान परिषद की प्रक्रिया तथा कार्य-संचालन नियमावली के अनुसार गणपूर्ति की संख्या-10 से कम है। इसलिए विधान परिषद के सभापति ने मुख्य विरोधी दल सपा के लाल बिहारी यादव को नेता प्रतिपक्ष के तौर पर मिली मान्यता तत्काल प्रभाव से समाप्त कर दी है।हालांकि, उनकी सदन में सपा के नेता के तौर पर मान्यता बरकरार रहेगी।’’
विधान परिषद में सपा के नेता लाल बिहारी यादव ने शुक्रवार को सभापति के फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, ‘‘विधान परिषद के सभापति द्वारा नेता प्रतिपक्ष की मान्यता समाप्त करना गैर कानूनी, नियमों के विपरीत और असंवैधानिक है।’’
यहां जारी एक बयान में यादव ने नियमों का हवाला देते हुए सभापति के फैसले को गलत ठहराते हुए कहा कि ''''नेता प्रतिपक्ष सदन में संपूर्ण विपक्ष का नेता होता है। समाजवादी पार्टी बड़ी पार्टी है; लेकिन नियमों का गलत हवाला देकर नेता प्रतिपक्ष की मान्यता समाप्त करना लोकतंत्र को कमजोर एवं कलंकित करने वाला कदम है।''''
उन्होंने आरोप लगाया कि ‘‘यह सदन में विपक्ष की आवाज को दबाने और कमजोर करने की साजिश है। सभापति जी का यह फैसला लोकतंत्र की हत्या और नियम कानूनों की धज्जियां उड़ाने वाला प्रतीत होता है।''''
इस बारे में विधान परिषद के पूर्व नेता प्रतिपक्ष और सपा नेता संजय लाठर ने कहा, ‘‘ सदन में सबसे बड़ी पार्टी के नेता को नेता प्रतिपक्ष बनाया जाता है, चूंकि समाजवादी पार्टी सबसे बड़ी पार्टी हैं; इसलिए उसे नेता प्रतिपक्ष का पद दिया जाना चाहिए।’’ उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी इस मामले पर अदालत का दरवाजा खटखटायेगी।

लाठर ने कहा कि सदन में विपक्ष का नेता नियुक्त करने के लिए सीटों के न्यूनतम प्रतिशत की जरूरत नहीं होती। उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘भाजपा ने लोकतंत्र की हत्या की है।’’
उल्लेखनीय है कि बृहस्पतिवार को विधान परिषद के 12 सदस्यों का कार्यकाल पूरा हो गया। इसके साथ ही नेता प्रतिपक्ष का पद भी समाप्त कर दिया गया। विधान परिषद के विशेष सचिव ने बृहस्पतिवार को इस संबंध में आदेश जारी कर दिया है।

कार्यकाल पूरा करने वाले सदस्यों में जगजीवन प्रसाद, बलराम यादव, डॉ. कमलेश कुमार पाठक, रणविजय सिंह, राम सुंदर दास निषाद, शतरुद्र प्रकाश, अतर सिंह राव, दिनेश चंद्रा, सुरेश कुमार कश्यप और दीपक सिंह शामिल हैं। इनका स्थान सात जुलाई से रिक्त घोषित कर दिया गया है। विधान परिषद के कुल 12 सदस्यों का कार्यकाल खत्म हो गया है। इनमें उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और मंत्री चौधरी भूपेंद्र सिंह भी शामिल हैं, लेकिन इन दोनों की हाल में हुए विधान परिषद के चुनाव में जीत के बाद सदन में वापसी हुई है।

इसके अलावा समाजवादी पार्टी (सपा) के छह, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के तीन तथा कांग्रेस के एकमात्र सदस्य का कार्यकाल बुधवार को खत्म हो गया।

विधान परिषद की आधिकारिक वेबसाइट पर दी गयी जानकारी के मुताबिक राज्य विधान परिषद का गठन पांच जनवरी 1887 को हुआ था और उसकी पहली बैठक आठ जनवरी 1887 को तत्कालीन इलाहाबाद (अब प्रयागराज)स्थित थार्नहिल मेमोरियल हाल में हुई थी। वर्ष 1935 में पहली बार गवर्नमेंट ऑफ इण्डिया ऐक्ट के जरिये विधान परिषद को राज्य विधानमंडल के दूसरे सदन के तौर पर मान्यता मिली थी।
वेबसाइट के मुताबिक शुरुआत में इस सदन में सिर्फ नौ सदस्य हुआ करते थे। मगर वर्ष 1909 में इंडियन काउंसिल एक्ट के प्रावधानों के तहत विधान परिषद के सदस्यों की संख्या बढ़कर 46 हो गयी। उसके बाद यह और बढ़कर 100 हो गयी। फरवरी 1909 में कांग्रेस नेता मोतीलाल नेहरू इस सदन के सदस्य बने थे। उन्हें विधान परिषद में कांग्रेस का पहला सदस्य माना जाता है।
प्रदेश की 100 सदस्यीय विधान परिषद में मौजूदा समय में भाजपा के 72 सदस्य हैं। इसके अलावा मुख्य विपक्षी सपा के नौ सदस्य हैं। सदन में बहुमत का आंकड़ा 51 सीटों का है।



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