हुनरमंद कर्मियों के दूसरी कंपनियों में जाने की ऊंची दर एमएसएमई क्षेत्र के लिए परेशानी का सबब : सर्वे
punjabkesari.in Wednesday, Apr 05, 2023 - 02:36 PM (IST)

लखनऊ, पांच अप्रैल (भाषा) कोविड-19 महामारी के कारण लागू राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के बाद छोटी एवं मंझोली प्रौद्योगिकी कंपनियां अपने कर्मचारियों द्वारा हुनर प्राप्त करने के बाद दूसरी फर्म में चले जाने की ऊंची दर (एट्रिशन रेट) की वजह से अबतक सामान्य स्थिति में नहीं आ सकी हैं।
एमएसएमई एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल (एमएसएमई ईपीसी) द्वारा पूरे देश के विभिन्न क्षेत्रों से जुड़ी 700 इकाइयों को लेकर किये गये एक ताजा सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है।
सर्वेक्षण के मुताबिक, लॉकडाउन के बाद लघु और मध्यम क्षेत्र की प्रौद्योगिकी कंपनियों में हुनरमंद कर्मचारियों के ज्यादा वेतन के लिये कंपनी छोड़कर जाने की दर यानी एट्रिशन रेट सबसे ज्यादा 35 प्रतिशत देखा जा रहा है। इसके बाद सेवा क्षेत्र में यह दर 27 प्रतिशत है। इससे इन क्षेत्रों में महामारी के बाद सामान्य स्थिति में लौटने की उम्मीदों को खासा धक्का लग रहा है।
एमएसएमई-ईपीसी के अध्यक्ष डी एस रावत ने यहां इस सर्वे की रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि एमएसएमई क्षेत्र की प्रौद्योगिकी कंपनियों में बड़ी संख्या में कर्मचारी काम सीखने के बाद ज्यादा वेतन के लालच में दूसरी कंपनियों में जा रहे हैं। इससे ये कंपनियां लॉकडाउन के झटके से अबतक उबर नहीं पा रही हैं। प्रौद्योगिकी क्षेत्र से जुडी कंपनियां अपने कर्मचारियों को प्रशिक्षण देने के लिये बड़े पैमाने पर संसाधन और समय खर्च करती हैं लेकिन कर्मचारी प्रशिक्षण लेने के बाद अधिक वेतन के लिये दूसरी जगह चले जाते हैं।
उन्होंने कहा कि ऊंची एट्रिशन दर को बढ़ने से रोकने के लिये सरकारी और निजी क्षेत्र में ज्यादा से ज्यादा संख्या में क्षमता निर्माण केंद्र खोले जाने की जरूरत है। इससे कार्यकुशल श्रमशक्ति बढ़ेगी, जिसकी वजह से एक कंपनी छोड़कर दूसरी फर्म में जाने का सिलसिला भी कम होगा।
रावत ने कहा कि औद्योगिक क्षेत्र में एट्रिशन की दर कुछ कम है मगर प्रौद्योगिकी क्षेत्र से जुड़ी कंपनियां अपने कर्मचारियों को रोकने के लिये अब भी संघर्ष कर रही हैं। इसके अलावा विनिर्माण क्षेत्र में एट्रिशन दर 20 प्रतिशत, सेवा क्षेत्र खासकर वित्तीय क्षेत्र में 27 प्रतिशत, ई-कॉमर्स क्षेत्र में 26 प्रतिशत और फार्मा क्षेत्र में 25 प्रतिशत है।
सर्वे के मुताबिक, एमएसएमई क्षेत्र की प्रौद्योगिकी कंपनियों को बड़ी और बहुराष्ट्रीय कंपनियों से कड़ी टक्कर मिल रही है। ऐसे में एक प्रशिक्षित कर्मचारी को खोने से उनपर दबाव और बढ़ रहा है, जो अंतत: उनके कारोबार के लिये खतरा है। सबसे ज्यादा दबाव उन पर है जो ‘आउटसोर्सिंग’ का काम करते हैं या फिर एक निर्धारित वक्त के अंदर काम पूरा करके देने के पेशे में हैं।
सर्वे के अनुसार, ज्यादा से ज्यादा एमएसएमई उद्योग घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने बाजार को विस्तार देने के लिये डिजिटल अर्थव्यवस्था की तरफ बढ़ रहा हैं। ऐसे में कर्मचारियों के कंपनी छोड़कर जाने की ऊंची दर के कारण इस क्षेत्र की पूरी कारोबारी योजना ध्वस्त होती जा रही है।
यह आर्टिकल पंजाब केसरी टीम द्वारा संपादित नहीं है, इसे एजेंसी फीड से ऑटो-अपलोड किया गया है।
एमएसएमई एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल (एमएसएमई ईपीसी) द्वारा पूरे देश के विभिन्न क्षेत्रों से जुड़ी 700 इकाइयों को लेकर किये गये एक ताजा सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है।
सर्वेक्षण के मुताबिक, लॉकडाउन के बाद लघु और मध्यम क्षेत्र की प्रौद्योगिकी कंपनियों में हुनरमंद कर्मचारियों के ज्यादा वेतन के लिये कंपनी छोड़कर जाने की दर यानी एट्रिशन रेट सबसे ज्यादा 35 प्रतिशत देखा जा रहा है। इसके बाद सेवा क्षेत्र में यह दर 27 प्रतिशत है। इससे इन क्षेत्रों में महामारी के बाद सामान्य स्थिति में लौटने की उम्मीदों को खासा धक्का लग रहा है।
एमएसएमई-ईपीसी के अध्यक्ष डी एस रावत ने यहां इस सर्वे की रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि एमएसएमई क्षेत्र की प्रौद्योगिकी कंपनियों में बड़ी संख्या में कर्मचारी काम सीखने के बाद ज्यादा वेतन के लालच में दूसरी कंपनियों में जा रहे हैं। इससे ये कंपनियां लॉकडाउन के झटके से अबतक उबर नहीं पा रही हैं। प्रौद्योगिकी क्षेत्र से जुडी कंपनियां अपने कर्मचारियों को प्रशिक्षण देने के लिये बड़े पैमाने पर संसाधन और समय खर्च करती हैं लेकिन कर्मचारी प्रशिक्षण लेने के बाद अधिक वेतन के लिये दूसरी जगह चले जाते हैं।
उन्होंने कहा कि ऊंची एट्रिशन दर को बढ़ने से रोकने के लिये सरकारी और निजी क्षेत्र में ज्यादा से ज्यादा संख्या में क्षमता निर्माण केंद्र खोले जाने की जरूरत है। इससे कार्यकुशल श्रमशक्ति बढ़ेगी, जिसकी वजह से एक कंपनी छोड़कर दूसरी फर्म में जाने का सिलसिला भी कम होगा।
रावत ने कहा कि औद्योगिक क्षेत्र में एट्रिशन की दर कुछ कम है मगर प्रौद्योगिकी क्षेत्र से जुड़ी कंपनियां अपने कर्मचारियों को रोकने के लिये अब भी संघर्ष कर रही हैं। इसके अलावा विनिर्माण क्षेत्र में एट्रिशन दर 20 प्रतिशत, सेवा क्षेत्र खासकर वित्तीय क्षेत्र में 27 प्रतिशत, ई-कॉमर्स क्षेत्र में 26 प्रतिशत और फार्मा क्षेत्र में 25 प्रतिशत है।
सर्वे के मुताबिक, एमएसएमई क्षेत्र की प्रौद्योगिकी कंपनियों को बड़ी और बहुराष्ट्रीय कंपनियों से कड़ी टक्कर मिल रही है। ऐसे में एक प्रशिक्षित कर्मचारी को खोने से उनपर दबाव और बढ़ रहा है, जो अंतत: उनके कारोबार के लिये खतरा है। सबसे ज्यादा दबाव उन पर है जो ‘आउटसोर्सिंग’ का काम करते हैं या फिर एक निर्धारित वक्त के अंदर काम पूरा करके देने के पेशे में हैं।
सर्वे के अनुसार, ज्यादा से ज्यादा एमएसएमई उद्योग घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने बाजार को विस्तार देने के लिये डिजिटल अर्थव्यवस्था की तरफ बढ़ रहा हैं। ऐसे में कर्मचारियों के कंपनी छोड़कर जाने की ऊंची दर के कारण इस क्षेत्र की पूरी कारोबारी योजना ध्वस्त होती जा रही है।
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