स्टेशन पर लावारिस बच्चों को संकट में नहीं घिरने देगा रेलवे, लिया ये फैसला

punjabkesari.in Sunday, Jun 17, 2018 - 12:42 PM (IST)

सहारनपुर: अब इंडियन रेलवे मां-बाप से बिछुड़ने वाले बच्चों को विपत्ति में नहीं घिरने देगा। रेलवे ने ऐसे बच्चों के साथ खड़ा होने का फैसला किया है। प्रतिदिन करोड़ों यात्री ट्रेन में सफर करने वालों के बीच प्रति 5 मिनट में एक बच्चा लावारिस हालत में रेलवे स्टेशन पहुंचता है। वहां बच्चों के संकट में घिरने और उनका उत्पीड़न होने की संभावना होती है। ऐसे विषम हालात से बच्चों को उबारने के लिए ही वर्ष 2015 में रेलवे, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय और राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एन.सी.पी.सी.आर.) ने संयुक्त कार्य योजना तैयार की।

रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष अश्विनी लोहानी की ओर से आए निर्देश में कहा गया है कि भूले-भटके बच्चों के दुख-दर्द का सांझीदार रेलवे का हर कर्मचारी होगा। देश के 88 रेलवे स्टेशन पर योजना का क्रियान्वयन शुरू हुआ जिसके सार्थक परिणाम मिले। आर.पी.एफ. के अधिकारियों का दावा है कि उसके प्रयास से 4 साल में 35 हजार बच्चे गलत हाथों में जाने से बच गए। परिणाम अप्रत्याशित मानते हुए रेलवे ने योजना को और व्यापक रूप देने का खाका खींचा है।

बताया गया है कि रेलवे स्टेशन व इसके आसपास मिलने वाले बच्चों के गलत हाथ में जाने का खतरा होता है। यहां तक कि तस्करी होने का खतरा भी रहता है। ऐसे बच्चों को सुरक्षित हाथों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी रेलवे की है। बिछड़े बच्चों को दोबारा उनके मां-बाप से मिलाने व सुरक्षित हाथों तक पहुंचाने की जरूरत पर बल देते हुए बोर्ड अध्यक्ष ने समूचे देश में पिछले 8 जून से अभियान का शंखनाद किया है।

रेल कर्मचारियों के लिए लगेगी कार्यशाला
इस अभियान को गति देने के लिए रेलवे के कर्मचारी सिखा-पढ़ाकर दक्ष किए जाएंगे। बच्चों की सुरक्षा और अभियान की सफलता के लिए स्टेशन मास्टर/स्टेशन अधीक्षक टी.टी.ई., आर.पी.एफ., जी.आर.पी. और अन्य वाणिज्यिक और तकनीक से जुड़े रेल कर्मियों को कार्यशाला के जरिए प्रशिक्षित किया जाएगा।

Anil Kapoor