इंसान को गुनाह से बचने की कुव्वत का एहसास कराता है रमजान

punjabkesari.in Wednesday, May 16, 2018 - 05:03 PM (IST)

लखनऊ: रूह को पाक करके अल्लाह के करीब जाने का मौका देने वाला रमजान का मुक़द्दस (पवित्र) महीना हर इंसान को अपनी जिंदगी सही राह पर लाने का पैगाम देता है। भूख-प्यास की तड़प के बीच जबान से रूह तक पहुंचने वाली खुदा की इबादत हर मोमिन को उसका खास बना देती है। हर साल चांद के दीदार के साथ शुरू होने वाले माह-ए-रमजान की शुरुआत इस साल 18 मई से होगी। खुद को हर बुराई से बचाकर अल्लाह के नजदीक ले जाने की यह सख्त कवायद हर मुसलमान के लिये खुद को पाक-साफ करने का सुनहरा मौका होती है।

ऑल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता मौलाना खलील-उर-रहमान सज्जाद नोमानी ने रमजान की फक़ाीलत पर रोशनी डालते हुए बताया कि रमजान का मकसद खुद को गलत काम करने से रोकने की ताकत पैदा करना या उसे पुनर्जीवित करना है। शरीयत की जबान में इस ताकत को ‘तकवा’ कहा जाता है। उन्होंने कहा कि रोजे में इंसान खुद को रोक लेता है। उसके सामने पानी होता है, लेकिन सख्त प्यास लगी होने के बावजूद रोजेदार उसे नहीं पीता। गलत बात होने के बावजूद खुद को गुस्सा होने से रोकता है। झूठ बोलने और बदनिगाही से परहेज करता है। जिंदगी में सारे गुनाह इसीलिये होते हैं, क्योंकि इंसान खुद को गलत काम करने से रोक नहीं पाता। सिर्फ जानकारी की कमी की वजह से अपराध नहीं होते, बल्कि जानकारी होने के बावजूद खुद पर काबू नहीं रख पाने की वजह से उससे गुनाह हो जाते हैं।

मौलाना नोमानी ने कहा कि रमजान में 30 दिन तक इस बात की मश्क (अभ्यास) कराई जाती है कि जो काम तुम्हारे लिये जायज है, उसके लिए भी तुम खुद को रोक लो। तब इंसान यह महसूस करने लगता है कि जब मैं हलाल कमाई से हासिल किया गया खाना और पानी इस्तेमाल करने से खुद को रोक सकता हूं तो गलत काम करने से क्यों नहीं रोक सकता हूं। इंसान अक्सर यह सोचता है कि वह चाहकर भी खुद को गुनाह करने से रोक नहीं पाता, मगर यह उसकी गलतफहमी है। रमजान उसे इसका एहसास कराता है।

Tamanna Bhardwaj