RK. चौधरी ने Mayawati पर साधा निशाना, कहा- कांशीराम की नीतियों से भटक गई BSP

punjabkesari.in Sunday, May 28, 2023 - 03:54 PM (IST)

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में पिछले साल के विधानसभा चुनाव से लेकर हालिया नगर निकाय चुनाव तक बहुजन समाज पार्टी (बसपा) Mayawati के जनाधार में आई लगातार गिरावट का कारण आलोचकों ने पार्टी संस्थापक कांशीराम की नीतियों से भटकाव को बताया है। चार बार सत्ता में रही बसपा का ‘सोशल इंजीनियरिंग' फॉर्मूला वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में काम नहीं आया और हाल ही में हुए नगर निकाय चुनाव, खासकर महापौर की सीट पर व्यापक स्तर पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारे जाने के बावजूद पार्टी एक भी सीट नहीं जीत सकी। उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री और बसपा के संस्थापक सदस्य आर. के. चौधरी ने बातचीत में बसपा प्रमुख मायावती को इस बात के लिए जिम्मेदार ठहराया कि वह कांशीराम के सूत्र ‘‘जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी'' से भटककर ‘‘जिसकी जितनी तैयारी'' पर केन्द्रित हो गयीं। उन्होंने कहा कि उच्च वर्ग तो हमेशा तैयार रहेगा।

‘वर्ण व्यवस्था' और भेदभाव पैदा करने वाले को मायावती ने दिया प्रतिनिधित्व
चौधरी ने कहा,मायावती उन लोगों को अधिक प्रतिनिधित्व दिया जिनके पूर्वजों ने समाज में ‘वर्ण व्यवस्था' और भेदभाव पैदा किया था।'' चौधरी ने दावा किया कि भले ही पार्टी भविष्य के विधानसभा चुनावों में अपनी सीट संख्या बढ़ाने में कामयाब हो जाए, लेकिन इसके मूल समर्थकों के बीच इसकी पकड़ और लोकप्रियता कम होती रहेगी। उत्तर प्रदेश में वर्ष 1995 में समाजवादी पार्टी से गठबंधन टूटने के बाद भारतीय जनता पार्टी के समर्थन से मायावती पहली बार मुख्यमंत्री बनी थीं। चार बार की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने सिर्फ 15 साल पहले 206 विधायकों के साथ राज्य में बहुमत की सरकार बनाई और 30 प्रतिशत से अधिक वोट हासिल किये। इसके सापेक्ष बसपा को 2022 के विधानसभा चुनाव में लगभग 12 प्रतिशत वोट मिले और सिर्फ एक सीट पर विजय मिली। बसपा से बेहतर प्रदर्शन कांग्रेस और नयी पार्टी जनसत्ता दल (लोकतांत्रिक) का रहा, जिनको दो-दो सीट पर जीत मिली।

दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक को एकजुट रखने के लिए कोई काम नहीं की मायावती
बसपा ने 2017 के विधानसभा चुनाव में 19 सीट जीती थी और 21 प्रतिशत से अधिक वोट हासिल किया था, लेकिन पांच साल बाद उसको मिला वोट प्रतिशत 1996 के बाद सबसे कम था। वहीं, नगर निकाय के पिछले चुनाव में महापौर की दो (अलीगढ़ और मेरठ) सीट जीतने वाली बसपा हाल के निकाय चुनाव में महापौर की एक भी सीट नहीं जीत सकी। मायावती ने महापौर पद के लिए मुस्लिम कार्ड खेलते हुए अल्पसंख्यक समुदाय के उम्मीदवारों को 64 फीसदी टिकट दिए थे, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। पार्टी ने नगर निगम की 17 महापौर सीट में से 11 सीट पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे। हाल ही में पार्टी से नाता तोड़ने वाले एक नेता ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा, ‘‘जब बसपा ने अपनी पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी तब उसने अपने दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक वोट बैंक को एकजुट रखने के लिए कोई काम नहीं किया, इसलिए इन मतदाताओं ने भी बसपा से दूरी बना ली है।'' उन्होंने कहा, ‘‘उस दौर में जब राष्ट्रीय राजनीति में मंथन चल रहा था और समाज का ध्रुवीकरण शुरू हो गया था तो भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने ना केवल इसका फायदा उठाया, बल्कि पार्टी के अधिकतर मतदाताओं पर अपनी पकड़ सफलतापूर्वक मजबूत कर ली।'

 बसपा भाजपा की ‘‘बी'' टीम बनकर रह गई
' उन्होंने कहा कि आज स्थिति यह है कि बसपा भाजपा की एक ‘‘बी'' टीम बनकर रह गई है। उन्होंने कहा कि बसपा के लिए बेहतर होता अगर वह खुले तौर पर भाजपा से हाथ मिला लेती। कभी मायावती के करीबी माने जाने वाले पूर्व मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने स्थानीय निकाय चुनाव में बसपा द्वारा खेले गए मुस्लिम कार्ड को केवल ‘‘छलावा'' करार देते हुए कहा कि उनकी कथनी और करनी अलग-अलग है। नसीमुद्दीन ने कहा कि सभी अलग-अलग मुद्दों पर भाजपा के खिलाफ हैं, लेकिन नये संसद भवन के उद्घाटन जैसे मुद्दों की बात आती है तो वह (मायावती) इसका पक्ष लेती हैं। उन्होंने कहा, ‘‘बसपा को कांशीराम की मेहनत से ही ताकत मिली थी। लोग एक मिशन के साथ आए थे, एक ऐसे समाज की स्थापना के लिए जिसे बेचा नहीं जा सकता... जिन लोगों ने पैसा लेकर वोट नहीं दिया। लेकिन अब पार्टी में बिल्कुल उल्टा हो रहा है।

अपने कर्तव्य को केवल ट्वीट तक सीमित रखती मायावती
मायावती के मुख्यमंत्री रहने के दौरान उनके करीबी माने जाने वाले एक सेवानिवृत्त नौकरशाह ने कहा कि बसपा के पास ‘‘बहुजन समाज'' को एक साथ लाने का कोई कार्यक्रम नहीं है। उन्होंने कहा, ‘‘अफसोस की बात है कि बसपा प्रमुख अपने कार्यालय और घर तक ही सीमित हो गई हैं और वह सभी महत्वपूर्ण मुद्दों पर अपने कर्तव्य को केवल ट्वीट तक सीमित रखती हैं, जनता से जुड़ने का कोई प्रयास नहीं हो रहा है।'' ऐसे समय में जब सभी विपक्षी पार्टियां अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के मद्देनजर एक-दूसरे के करीब आती दिख रही हैं, तब मायावती अपने पार्टी कार्यकर्ताओं से अकेले चुनाव लड़ने की तैयारी करने को कह रही हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में बसपा ने समाजवादी पार्टी (सपा) के साथ गठबंधन किया था और उत्तर प्रदेश की 80 सीट में 10 सीट जीती थीं, लेकिन सपा से दोबारा हुआ उनकी पार्टी का गठबंधन जल्द टूट भी गया। तब सपा ने सिर्फ पांच सीटों पर जीत दर्ज की थी। हाल के नगर निकाय चुनाव में पार्टी के प्रदर्शन की समीक्षा करने के लिए एक बैठक में मायावती ने भाजपा पर आधिकारिक मशीनरी का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया था और दावा किया था कि महापौर के चुनावों को छोड़कर भाजपा अन्‍य पदों पर सफल नहीं हुई।

उन्होंने निर्वाचन आयोग से सत्ताधारी दल द्वारा आधिकारिक मशीनरी के दुरुपयोग पर प्रभावी रोक लगाने के साथ-साथ राजनीति में धर्म के प्रभाव को रोकने का भी आग्रह किया था। मायावती ने कहा था, ‘‘अगर महापौर का चुनाव भी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) की जगह मतपत्र से होता तो निश्चित रूप से नतीजे कुछ और होते।'' चार मई और 11 मई को हुए दो चरणों के नगर निकाय चुनाव में भाजपा ने सभी 17 नगर निगमों में महापौर की सीट जीतीं और नगरसेवकों के 1,420 पदों में से 813 पर जीत हासिल की। सपा ने नगरसेवकों के 191 पदों पर जीत हासिल की और बसपा ने 85 सीट पर जीत हासिल की। बसपा और सपा एक भी महापौर पद पर जीत हासिल नहीं कर सकीं।
 


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Content Writer

Ramkesh

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