‘क्यूं नहीं लेता हमारी तू ख़बर ऐ बेख़बर, क्या तेरे आशिक़ हुए थे दर्द-ओ-ग़म खाने को हम’

punjabkesari.in Monday, Jan 22, 2018 - 04:16 PM (IST)

आगरा: बसंत की आहट के साथ ही आ जाती है उस अजीम शायर की याद, जिसने शायरी को आम आदमी में पहचान दिला दी। जी हां, हम बात कर रहे हैं उर्दू अदब के अजीम शायर नजीर अकबराबादी की। जिसने अपनी शायरी में आम जनमानस की बात कही। लेकिन ये महान शायर आज अपने शहर में ही बेगाने से है।

ताज के पहलू में खुश थे नजीर अकबराबादी
वो दौर जब शायरी दरबारों की शान थी, नवाबों की वाह-वाह के लिए लिखी जाती थी। उस समय के एक जनता शायर था। ऐसा शायर जिसे पहचानने, सुनने, समझने में हिंदुस्तान को 100 साल लग गए। वो नाम है नजीर अकबराबादी। नजीर अकबराबादी एक ऐसे शायर थे जिसे शाही अंजुमन की तलब नहीं थी। ऊंचे वजीफों की हसरत नहीं थी। वो बस ताज के पहलू में खुश था और जनता के नगमें बुनता था। 

22 वर्ष की उम्र में आए थे आगरा 
नजीर अकबराबादी का जन्म दिल्ली में सन् 1735 में हुआ। दिल्ली में ही उनका बचपन बीता और करीब 22 वर्ष की उम्र में आगरा आए। कुछ समय उन्होंने नूरी दरवाजा में किराए पर रहकर बिताया। उसके बाद वो ताज के साए में ताजगंज की मल्को गली में रहने आ गए और फिर वहीं के होकर रह गए।

नजीर को आम आदमी का भी कहा जाता है शायर
नजीर को ताज से बहुत ज्यादा प्यार था। नजीर पहले शायर है जिसने उर्दू-हिंदी में ताजमहल पर अपना पहला कलाम ताज बीबी का रोज़ा लिखा। नजीर को आम आदमी का शायर भी कहा जाता है। नजीर नें रोटी, चपाती, फलों, जानवरों पर कई कलाम लिखे। साथ ही उन्होंने सभी धर्मों के देवताओं पर कई दोहे और शायरी लिखी। बंजारानामा, मुफलिसी और ऋतुओं भी पर नजीर ने कई कलाम लिखे।

इस हाल में है शायर की मजार
आगरा के ताजगंज की मल्को गली में नजीर अकबराबादी की एक मात्र मज़ार है। इस मज़ार पर आवारा पशुओं का जमावड़ा लगा रहता है और चारों ओर गंदगी का आलम है। इस मज़ार की पहचान के लिए यहां पर एक बोर्ड नगर निगम द्वारा लगवाया गया लेकिन वक्त के साथ वो भी धुंधला पड़ गया है, जिसको पढ़ने में शायद आपके आखों के नंबर भी कम पड़ जाएं। मल्को गली में रहने वाले लोगों का कहना है कि इतने बड़े शायर की मजार की हालत को देख उनका मन भी उदास हो जाता है।

सर्वधर्म के रह चुके शायर
आशिक कहो, असीर कहो, आगरे का है...मुल्ला कहो, दबीर कहो, आगरे का है...मुफलिस कहो, फकीर कहो, आगरे का है...शायर कहो, नजीर कहो, आगरे का है...नजीर ने ऐसे कई नज्म लिखी और कही है। जिसको आज भी कई शायर और गजल गायक अपनी आवाज देते रहते हैं। उनकी गजलों में भी नजीर की छाप दिखाई देती है। वो कहते है कि नजीर जनकवि थे। उन्होंने हमेशा ही आम जनता की बात कही है। वो किसी एक धर्म के नहीं थे वे सर्वधर्म के शायर रहे है। वो भी नजीर की मजार की हालत को देख दुखी होते है। 

आगरा में बनाए एक कल्चर सेंटर
लोगों का कहना है कि आगरे ने देश को कई अजीम शायर और कवि दिए है लेकिन आगरा में इनके नाम पर कोई भी स्मारक नहीं है और न ही सरकार द्वारा कोई कार्यक्रम ही इनके नाम पर कराया जाता है। हम चाहते हैं कि हमारी सरकारें इनके नाम से आगरा में एक कल्चर सेंटर बनाए तभी हम इन महान शख्सियत को एक सच्ची श्रृद्धांजलि दे सकेंगे। 

क्या कहना है लोगों का 
वहीं स्थानीय लोगों क कहना है कि आगरा की जमीन की यह खासियत है कि यहां ग़ालिब पैदा हुए तो मीर तकी मीर , नजीर अकबराबादी , सूरदास ने भी आगरा का नाम अपनी लेखनी से अमर कर दिया। लेकिन अफ़सोस है कि वोटो की राजनीति करने वाले तमाम दल जहां अरबो की धनराशि अपने वोट पक्के करने में सरकारी खजाने से खर्च कर देते हैं। वहीं दूसरी तरफ ऐसी तमाम विरासतें अपने हालत पर शर्मिंदा है। 

आज नज़ीर की इस जयंती पर यह प्रश्न एक बार से फिर सोचने-विचारने का है कि आखिर क्यों ? अपने ही शहर में अजनबी है शायर नजीर अकबराबादी।