‘‘अब तक शिकायतें हैं दिल ए बद नसीब से, इक दिन किसी को देख लिया था करीब से’’

punjabkesari.in Thursday, Apr 19, 2018 - 06:12 PM (IST)

लखनऊः आसान अल्‍फाज के जरिए सीधे दिल में उतरने वाले मशहूर शायर और गीतकार शकील बदायूंनी के बगैर रूमानी फिल्‍मों की कहानियां अधूरी हैं। मगर, मकबूल शायर होने के बावजूद उन्‍हें वह जगह नहीं मिली जिसके वह हकदार थे।  ‘मुगल-ए-आजम’ और ‘मदर इण्डिया’ जैसी कालजयी फिल्‍मों और ‘मेरे महबूब’, ‘गंगा-जमुना’ और ‘घराना’ जैसी अपने दौर की सुपरहिट फिल्‍मों को अपने नग्‍मों से सजाने वाले शकील में उर्दू अदब की खिदमत करने का बेहतरीन जज्‍बा था। आज मशहूर शायर की पुणयतिथि पर उनके जीवन पर थोड़ा से प्रकाश डालते हैं। 

शकील थे क्‍लासिकल शायर
शायर मुनव्‍वर राना ने शकील के बारे में अपने ख्‍यालात का इजहार करते हुए कहा कि शकील बदायूंनी फिल्‍म जगत के ऐसे शायर थे, जिनके बगैर रूमानी फिल्‍मों की कहानियां अधूरी रहती थीं। उनकी शायरी में सबसे बड़ी खासियत यह थी कि उसमें इंसान की वह जिंदगी पूरे तौर पर मौजूद होती थी, जो ख्‍वाबों में दिखती है।  उन्‍होंने कहा कि शकील क्‍लासिकल शायर थे। उनकी शायरी में उर्दू जबान का पूरा लुत्‍फ और मामलाबंदी मौजूद रहती थी। सबसे बड़ी बात यह है कि उनके मिसरे अवाम तक आसानी से पहुंच जाते थे। वह ऐसा जमाना था जब अरबी और फारसी के हवाले करके उर्दू को इतना मुश्किल कर दिया गया था कि वह आम लोगों तक नहीं पहुंच पाती थी, जबकि शायरी की आम तारीफ यही है कि हम कहें और आपके दिल तक पहुंच जाए।  

शकील का था अवाम से ज्‍यादा ताल्‍लुक  
राना ने कहा कि यह विडम्‍बना रही कि शायरों को भी अलग-अलग दर्जों में बांट दिया गया। फिल्‍मी गीत लिखने वाले कमजोर शायर माने जाते थे और जो कव्‍वाली लिखते हैं, वे शायर ही नहीं माने जाते। शकील भी कुछ हद तक इसके शिकार हुए। वह फिल्‍मी शायर के बजाय फिल्‍मी गीतकार कहलाते थे।  उन्‍होंने कहा कि शकील अपने जमाने के मकबूल शायर और गीतकार जरूर थे, लेकिन आज उनके नाम से कोई तामीरी काम नजर नहीं आता। यह हैरतअंगेज बात है कि उनकी जयन्‍ती और पुण्‍यतिथि पर उन्‍हें याद करने के लिए बिरले ही कोई कार्यक्रम आयोजित होता है। यह अफसोसनाक पहलू है कि अपने अहद के मकबूलतरीन शायर शकील के बारे हमारी नई पीढ़ी की जानकारी बेहद कम है।  मशहूर शायर गक़ानफऱ अली ने शकील की खुसूसियात पर रोशनी डालते हुए कहा कि हमारी फिल्‍में किसी शायर के लिए अवाम में बने रहने का अहम जरिया हैं, लिहाजा एक शायर और गीतकार के रूप में शकील का अवाम से ज्‍यादा ताल्‍लुक था। 

साहिर और शकील दोनों थे लगभग समकालीन
शकील ने फिल्‍मों में जो गाने लिखे उनमें उर्दू अदब से कोई समझौता नहीं किया। इसीलिए उनके गाने अवाम और समाज दोनों में मकबूल हुए। उन्‍होंने कहा कि शकील का अपना एक नजरिया था, साहिर और शकील दोनों लगभग समकालीन थे। दोनों का ताल्‍लुक फिल्‍मों से रहा। साहिर ने अपने शेर में कहा कि एक शहंशाह ने दौलत का सहारा लेकर हम गरीबों की मुहब्‍बत का उड़ाया है मजाक।’’ वहीं, शकील ने कहा कि एक शहंशाह ने बनवाके हसीं ताजमहल सारी दुनिया को मुहब्‍बत की निशानी दी है।’’ इससे जाहिर होता है कि शकील का नुक्‍ता-ए-नजर कहीं ज्‍यादा व्‍यापक है।  

Ruby