सपा-कांग्रेस गठबंधन से बदली BSP-BJP की रणनीति

punjabkesari.in Wednesday, Feb 08, 2017 - 11:15 AM (IST)

लखनऊ:समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच हुए गठबंधन के कारण भाजपा और बसपा की मुश्किलें तो बढ़ी हीं साथ ही इन्हें अपनी रणनीतियों में परिवर्तन भी करना पड़ रहा है। मुस्लिम बहुल पश्चिम उत्तर प्रदेश की 140 विधानसभा सीटों पर पहले चरण में 73 जगहों पर 11 फरवरी को, तो दूसरे चरण में 15 फरवरी वोट डाले जाने हैं। इस बीच बसपा और भाजपा की रणनीति बदलती दिखाई पड़ रही है क्योंकि अब इन दोनों को ऐसा लगने लगा है कि सपा-कांग्रेस गठबंधन के कारण यहां टक्कर कांटे की होती जा रही है।

पूर्व में भाजपा के साथ मिलकर राज्य में 3 बार सरकार बना चुकी है बसपा
प्रदेश के सबसे ताकतवर यादव परिवार में झगड़े की वजह से अपनी राह को बहुत आसान मानकर चल रही बसपा के लिए सपा और कांग्रेस का गठबंधन होना एक झटके की तरह है। बसपा खुद को भाजपा के खिलाफ सबसे मजबूत ताकत के रूप में पेश कर रही है लेकिन सपा और कांग्रेस के गठबंधन के रूप में मुस्लिमों के सामने एक और विकल्प आ गया है। बसपा के खिलाफ एक और बात भी जाती है। वह पूर्व में भाजपा के साथ मिलकर राज्य में 3 बार सरकार बना चुकी है, जबकि सपा प्रमुख अखिलेश यादव और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी का ऐसा कोई रिकार्ड नहीं है। मुस्लिम बहुल सीटें जीतने के लिए बसपा ने पहले दो चरणों में जिन सीटों के लिए मतदान होना हैं उनमें से करीब 50 पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं। उसे भरोसा है कि दलित वोटों के साथ मुस्लिम मतदाता भी उसी के पक्ष में मतदान करेंगे, जिससे उसके उम्मीदवारों की नैया पार हो जाएगी।

बसपा ने मुस्लिम धर्मगुरुओं के दरवाजों पर दस्तक देना शुरू कर दिया
बहरहाल, सपा और कांग्रेस के साथ आने से मुसलमानों के सामने बसपा के मुकाबले एक और मजबूत विकल्प आ गया है। इसके बाद बसपा ने मुस्लिम धर्मगुरुओं के दरवाजों पर दस्तक देना शुरू कर दिया है और उनमें से कुछ ने उसे समर्थन देने का एलान भी कर दिया है। बसपा की ही तरह सपा ने भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 140 में से 42 सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं।  बसपा प्रमुख मायावती जहां सपा के ‘गुंडाराज’ को निशाना बना रही हैं, वहीं सपा-कांग्रेस गठबंधन भी बसपा के इतिहास के पन्ने उलटने में कोई गुरेज नहीं कर रहा है। यह गठबंधन मतदाताओं को बसपा द्वारा उसी भाजपा के साथ मिलकर 3 बार सरकार बनाने की बात याद दिला रही है, जिसके खिलाफ मायावती अपनी पार्टी को सबसे मजबूत प्रतिद्वंद्वी के तौर पर पेश कर रही हैं।

बेटे को उसके पिता से बेहतर कौन जान सकेगा-मुलायम
सपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि क्या मुसलमान इस बात को भुला पाएंगे कि मायावती के ही मुख्यमंत्रित्वकाल में सबसे ज्यादा 43 मुस्लिम नौजवानों को आतंकवाद के झूठे आरोपों में फंसाया गया था। ‘टैरर पालिटिक्स’ खेलने के लिए मायावती को मुस्लिम कौम कैसे माफ कर सकती है। दूसरी ओर बसपा भी सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव द्वारा अपने मुख्यमंत्री पुत्र अखिलेश यादव को ‘मुस्लिम विरोधी’ बताए जाने को भुनाने में जुटी है। बसपा में हाल में शामिल हुए तत्कालीन कौमी एकता दल के अध्यक्ष अफजाल अंसारी ने मुलायम के इस बयान को दोहराते हुए कहा कि बेटे को उसके पिता से बेहतर कौन जान सकेगा।सम्भवत: मुस्लिम मतों के महत्व को देखते हुए ही सपा ने जाट जनाधार रखने वाले चौधरी अजित सिंह की अगुआई के राष्ट्रीय लोकदल से गठबंधन करने में बहुत कम दिलचस्पी दिखाई थी। वर्ष 2013 में मुजफ्फरनगर दंगों में जाटों और मुसलमानों के बीच ही खूनी संघर्ष हुआ था।