समर्थकों को उम्मीद, सपा-बसपा जुगलबंदी का 2019 में मिलेगा फायदा

punjabkesari.in Monday, Mar 05, 2018 - 06:11 PM (IST)

इटावाः बसपा अध्यक्ष मायावती के गोरखपुर और फूलपुर के संसदीय उपचुनाव में सपा प्रत्याशी को समर्थन देने से सपा-बसपा समर्थक उत्साहित है। उनका मानना है कि दोनो दलो को कांग्रेस के साथ 2019 के संसदीय चुनाव मे सांप्रदायिक शक्तियों के खिलाफ मोर्चाबंदी की सख्त जरूरत है। बसपा संस्थापक कांशीराम के बेहद करीब रहे कौमी तहफुज्ज कमेटी के संयोजक खादिम अब्बास का कहना है कि बसपा सुप्रीमो मायावती ने एक अच्छा संदेश दिया है। यह काम उनको काफी पहले कर लेना था लेकिन जब भी किया तभी उसको बेहतर माना जाएगा। मायावती का फैसला आज के राजनीतिक माहौल मे सूझबूझ भरा माना जाएगा। 

सांप्रदायिक शक्तियो के खिलाफ मोर्चेबंदी के लिए अमूल्य कार्य 
अब्बास बताते है कि कांशीराम ने देश से सांप्रदायिक शक्तियों को कुचलने के लिए जो हथियार बनाए है, उसको अब उठाने की आवश्यकता है। बसपा के एक अन्य समर्थक जतिन प्रसाद ने कहा कि मायावती के इस फैसले से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जुमलावादी कार्यक्रम स्वत: समाप्त हो जाएगा। जुमलावादी कार्यक्रम नौजवानों की प्रगित मे बाधक है। कांशीराम के साथ एक वक्त काम कर चुके नरेश प्रताप सिंह धनगर बताते है कि समाजवादी पार्टी का सहयोग का निर्णय कर बसपा सुप्रीमो मायावती ने सांप्रदायिक शक्तियो के खिलाफ मोर्चेबंदी के लिए अमूल्य कार्य किया है। मायावती का यह कदम निश्चित ही दलित पिछडी जातियों के लिए बेहद मददगार तो होगा, साथ ही सविंधान की रक्षा के लिए भी इसको कारगर हथियार माना जाएगा। 

सहयोग निश्चित ही सेकुलर मोर्चे को देगा जनादेश
धनगर का मानना है कि मायावती ने सपा का सहयोग करने का जो निर्णय लिया है उसके दूरगामी परिणाम निश्चित तौर पर आने वाले वक्त मे देखने को मिलेगे। मायावती का यह सहयोग निश्चित ही सेकुलर मोर्चे को जनादेश देगा। जो दल दलितो और पिछडो के खिलाफ दुष्प्रचार करते है उनको इसका जबाब भी मिलेगा। 2019 के संसदीय चुनाव के लिए सपा,बसपा और काग्रेंस तीनो का एक होकर चुनाव लडना संप्रदायिक शक्तियो को कमजोर करने मे सहायक होगा।  मुलायम सिंह यादव के गृह जिले इटावा के लोगों ने कांशीराम को एक ऐसा मुकाम हासिल कराया जिसकी कांशीराम को एक अर्से से तलाश थी। 1991 के आम चुनाव मे इटावा मे जबरदस्त हिंसा के बाद पूरे जिले में चुनाव को दोबारा कराया गया था। दोबारा हुए चुनाव मे बसपा के तत्कालीन सुप्रीमो कांशीराम ने खुद संसदीय चुनाव मे उतरे। 

मिले मुलायम कांशीराम, हवा में उड गए जयश्री राम
उन्होंने कहा कि मुलायम सिंह यादव ने समय की नब्ज को समझा और कांशीराम की मदद की जिसके एवज मे कांशीराम ने बसपा से कोई प्रत्याशी मुलायम सिंह यादव के लिए जसवंतनगर विधानसभा से नही उतारा जबकि जिले की हर विधानसभा से बसपा ने अपने प्रत्याशी उतरे थे।  इटावा ने पहली बार कांशीराम को 1991 में सांसद बनवाकर संसद पहुचाया था। 1992 में कांशीराम के चुनाव प्रभारी और वफादार रहे खादिम अब्बास ने एक नारे को जन्म दिया--मिले मुलायम कांशीराम, हवा में उड गए जयश्री राम। इस नारे ने सारे देश मे चमत्कार कर दिया।

कांशीराम ने समाजवादी पार्टी गठन करवाया
बसपा के पुराने नेता खादिम अब्बास बताते है कि 1992 मे मैनपुरी मे हुई एक सभा मे जब बोलने के लिए वे मंच पर आए तो अचानक यह नारा मुंह से सामने आया जो बाद मे पूरे देश मे गूंजा। खादिम बताते है कि कांशीराम मुलायम सिंह के बीच हुए समझौते के तहत कांशीराम ने अपने लोगो से उपर का वोट हाथी और नीचे का वोट हलधर किसान चिंह के सामने देने के लिए कह दिया था।  विवादित बाबरी मस्जिद टूट चुकी थी ऐसे मे इस नारे ने काफी राजनीतिक माहौल बना दिया था। खादिम अब्बास की माने तो कांशीराम ने अपने शर्ताे के अनुरूप मुलायम सिंह यादव से खुद की पार्टी यानि समाजवादी पार्टी गठन करवाया और तालमेल किया। 

सपा-बसपा की जुगलबंदी भाजपा के लिए मुसीबत बनने वाला 
1991 मे कांशीराम की इटावा से जीत के दौरान मुलायम का कांशीराम के प्रति यह आदर अचानक उभर कर सामने आया था जिसमें मुलायम ने अपने खास की पराजय करने में कोई गुरेज नहीं किया था,इस हार के बाद रामसिंह शाक्य और मुलायम के बीच मनुमुटाव भी हुआ लेकिन मामला फायदे नुकसान के चलते शांत हो गया।  कांशीराम की इस जीत के बाद उत्तर प्रदेश में मुलायम और कांशीराम की जो जुगलबंदी शुरू हुई इसका लाभ उत्तर प्रदेश में 1995 में मुलायम सिंह यादव की सरकार काबिज होकर मिला लेकिन 2 जून 1995 को हुये गेस्ट हाउस कांड के बाद सपा बसपा के बीच बढी तकरार इस कदर हावी हो गई कि दोनों दल एक दूसरे को खत्म करने पर अमादा हो गए, लेकिन गोरखपुर और फूलपुर संसदीय सीट के उपचुनाव को लेकर दोनों दलों के एक बार फिर से करीब आने के बाद सत्तारूढ भारतीय जनता पार्टी के नेताओं और मंत्रियो के आ रहे बयान यह बातने के लिए काफी मानें जाएंगे कि दोनों दलों की जुगलबंदी आने वाले वक्त मे भाजपा के लिए मुसीबत बनने वाला है।