हाईकोर्ट की तल्ख टिप्पणी, कहा- बाल संरक्षण गृह की स्थिति जेल से भी बदतर, यूपी सरकार के उदासीनता को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता

punjabkesari.in Saturday, Oct 21, 2023 - 07:56 AM (IST)

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुरुवार को प्रदेश में चाइल्ड केयर इंस्टीट्यूट्स के संचालन में कमियों के संबंध में एक स्वतः संज्ञान जनहित याचिका पर सुनवाई की। न्यायमूर्ति अजय भनोट द्वारा किए गए निरीक्षण में पूरे प्रदेश में चाइल्ड केयर इंस्टीट्यूट के संचालन में कई खामियां सामने आई जो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत बच्चों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती है।



राज्य सरकार की ओर से इस दिशा में उदासीनता को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता
मुख्य न्यायाधीश प्रितिंकर दिवाकर और न्यायमूर्ति अजय भनोट की खंडपीठ ने मामले में तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि ऑब्जरवेशन होम की स्थिति को देखते हुए यहां रहने वाले बच्चों के समग्र विकास में बांधा है, यहां की स्थितियां जेल से भी बदतर है। राज्य सरकार की ओर से इस दिशा में उदासीनता को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है। इन घरों में रहने वाले बच्चे समाज के सबसे कमजोर वर्गों में से हैं। राज्य उनका पितृ परिवार है। बच्चे तंग परिस्थितियों में रह रहे हैं जहां सूरज की रोशनी, ताजी हवा, खेल के मैदान या खुली जगह तक पहुंच बहुत कम है या बिल्कुल नहीं है। रहन-सहन की स्थितियाँ बच्चों के सर्वांगीण विकास में बाधक है। राज्य की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिलने के कारण कोर्ट ने निर्देश दिया कि अंतरिम उपाय के रूप में राज्य सरकार को प्राथमिकता के आधार पर इन बच्चों को बड़े और अधिक विशाल घरो में स्थानांतरित करन चाहिए जिनमें सुविधा हो।

शैक्षिक सुविधाओं को भी उन्नत करने और परिश्रमपूर्वक निगरानी करने की आवश्यकता
हाईकोर्ट ने आगे कहा कि कई मामलों में घरों का नेतृत्व विधिवत नियुक्त पर्यवेक्षकों द्वारा नहीं किया जा रहा है और अन्य स्टाफ सदस्यों को पर्याप्त रूप से प्रशिक्षित नहीं किया गया है। कर्मचारियों के साथ बच्चों का संपर्क उनके व्यक्तित्व को विकसित करता है और उनके मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव डालता है। खाद्य पदार्थों/ आहार और जीवन की अन्य आवश्यकताओं के लिए बजट आवंटन में कई वर्षों से संशोधन नहीं किया गया है। शैक्षिक सुविधाओं को भी उन्नत करने और परिश्रमपूर्वक निगरानी करने की आवश्यकता है। इन घरों में बच्चों के भावनात्मक विकास और शारीरिक गतिविधियों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। औपचारिक शिक्षा प्रणाली को भी पर्याप्त उन्नयन की आवश्यकता है।

लड़कियों का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए
हाईकोर्ट ने कहा कि बच्चों को दिये जाने वाले व्यावसायिक प्रशिक्षण को बाजार में नियोक्ताओं से जोड़ना होगा। लड़कियों का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए और बढ़ती उम्र के दौरान लड़कियों का मार्गदर्शन करने के लिए महिला परामर्शदाताओं को नियुक्त किया जाना चाहिए। राज्य सरकार बच्चों को उनके घरों के आसपास के प्रतिष्ठित स्कूलों में दाखिला दिलाने की कवायद करेगी। इन टिप्पणियों के साथ कोर्ट ने प्रमुख सचिव, महिला एवं बाल विकास विभाग, उत्तर प्रदेश लखनऊ से व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने को कहा है और निर्देश दिया है कि आदेश का अनुपालन न होने की स्थिति में कोर्ट अगली तारीख पर उचित कार्रवाई करने के लिए बाध्य होगी। मुकदमे की अगली तारीख 06.11.2023 को सूचीबद्ध किया गया है।

Content Writer

Ajay kumar