देश की पहली महिला CM सुचेता कृपलानीः जिनके प्यार में रोड़ा बने 'बापू', लेकिन 'चाचा' ने बनाई बात

punjabkesari.in Friday, May 04, 2018 - 02:14 PM (IST)

यूपी डेस्क(रूबी): श्रीमती सुचेता कृपलानी किसी पहचान की मोहताज नहीं हैं। कृपलानी को देश का ही नहीं बल्कि किसी प्रदेश का भी पहली महिला मुख्यमंत्री होने का गौरव प्राप्त है। और हां ये उपल्ब्धि उन्हें आसानी से नहीं मिली इसके लिए उन्हें जेल तक की हवा खानी पड़ी है। जी हां, स्वतंत्रता आन्दोलन से जुड़ी सुचेता कई बार जेल गईं हैं। इतना ही नहीं देश का राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम् को भी पहली बार गाने का रिकार्ड सुचेता के नाम दर्ज है। ऐसी ही उनके जीवन से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें हम आपको बताने जा रहे हैं जो काफी दिलचस्प हैं-

जन्म व शिक्षा
सुचेता कृपलानी का जन्म 25 जून, 1908 को भारत के हरियाणा राज्य के अम्बाला शहर में हुआ। उनकी शिक्षा लाहौर और दिल्ली में हुई थी। दिल्ली के इन्द्रप्रस्थ कॉलेज और बाद में पंजाब विश्वविद्यालय से पढ़ीं। जिसके बाद कृपलानी बनारस हिन्दू विश्विद्यालय में संवैधानिक इतिहास की प्राध्यापक बनीं।

राजनीतिक जीवन
स्वतंत्रता आन्दोलन से जुड़ी सुचेता कई बार जेल भी गईं। सन 1946 में वह संविधान सभा की सदस्य चुनी गईं और 15 अगस्त 1947 को संविधान सभा में वन्देमातरम् भी गाया। सन 1958 से लेकर सन 1960 तक वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की महासचिव भी रहीं। 1963 से 1967 तक वह उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं। आजादी के आंदोलन में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेने वाली सुचेता कृपलानी न सिर्फ उत्तर प्रदेश बल्कि पूरे देश में किसी भी राज्य की पहली महिला मुख्य मंत्री थीं। 2 अक्टूबर 1963 से लेकर 14 मार्च 1967 तक वह उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री रहीं। इससे पहले वह दो बार लोकसभा के लिए भी चुनी गईं थीं।
महात्मा गांधी की बेहद कऱीबी 
सुचेता देश के बंटवारे की त्रासदी में महात्मा गांधी के बेहद कऱीब रहीं। सुचेता उन चंद महिलाओं में शामिल थीं, जिन्होंने बापू के कऱीब रहकर देश की आज़ादी की नींव रखी। वह नोवाखली यात्रा में बापू के साथ थीं। वर्ष 1963 में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनने से पहले वह लगातार दो बार लोकसभा के लिए चुनी गईं। सुचेता दिल की कोमल तो थीं, लेकिन प्रशासनिक फैसले लेते समय वह दिल की नहीं, दिमाग की सुनती थीं। उनके मुख्यमंत्री काल के दौरान राज्य के कर्मचारियों ने लगातार 62 दिनों तक हड़ताल जारी रखी, लेकिन वह कर्मचारी नेताओं से सुलह को तभी तैयार हुईं, जब उनके रुख़ में नरमी आई। जबकि सुचेता के पति आचार्य कृपलानी खुद समाजवादी थे। 
प्रेम और फिर शादी  
जे.बी. कृपलानी बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में इतिहास के प्रोफेसर बनकर आए, हालांकि वह यहां एक ही साल रहे, लेकिन वो एक साल ही उस विश्वविद्यालय पर उनका प्रभाव छोडऩे के लिए काफी था। इसके कुछ साल बाद बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग में सुचेता मजुमदार प्रोफेसर बनकर आईं। उनके कानों में अक्सर आचार्य कृपलानी की बातें सुनाई पड़ती थीं। खासकर उनके जीनियस टीचर होने की और फिर उनके गांधी जी के खास सहयोगी बन जाने की।

बीएचयू में दोनों की हुई मुलाकात
उन्हीं दिनों कृपलानी जब कभी बनारस आते तो बीएचयू के इतिहास विभाग जरूर जाते। उसी दौरान उनकी मुलाकात सुचेता से हुई, जिनमें एक प्रखरता भी थी और आज़ादी आंदोलन से जुडऩे की तीव्रता भी। कहा जा सकता है कि कृपलानी कहीं न कहीं इस बंगाली युवती से प्रभावित हो गए थे। दोनों में काफी बातें होने लगीं। जब कुछ मुलाकातों के बाद सुचेता ने उनसे गांधीजी से जुडऩे की इच्छा जाहिर की तो कृपलानी इसमें सहायक भी बने।

इस तरह दोनों में पनपा प्यार 
समय के साथ जब दोनों का काफी समय एक दूसरे के साथ बीतने लगा तो वो करीब आने लगे, हालांकि किसी को भी अंदाज़ा नहीं था कि कृपलानी जैसे शख्स के जीवन में भी प्रेम दस्तक दे सकता है और दबे पांव उनके मन के घर पर कब्जा कर सकता है। दोनों जब एक दूसरे के प्यार में पड़े तो उन्हें कभी उम्र का लंबा फासला अपने बीच महसूस नहीं हुआ, हां जब उन्होंने आपस में शादी करने की इच्छा अपने परिवारों के सामने जाहिर की तो तूफान आ गया। 

गांधी बने इनके प्रेम में बाधा
सुचेता ने अपनी किताब 'सुचेता एन अनफिनिश्ड ऑटो बॉयोग्राफी' में लिखा है कि गांधी जी ने उनके विवाह का विरोध किया था, उन्हें लगता था कि पारिवारिक जिम्मेदारियां उन्हें आज़ादी की लड़ाई से विमुख कर देंगी। सुचेता अपनी बॉयोग्राफी में लिखती हैं, गांधी चाहते थे कि वह किसी और से शादी कर लें। उन्होंने इसके लिए दबाव भी डाला। मैंने इसे एक सिरे से खारिज कर दिया। मैंने उनसे कहा, जो प्रस्ताव वह दे रहे हैं वो अन्यायपूर्ण भी है और अनैतिक भी। इसमें उन्होंने लिखा, जब गांधी ने मेरे सामने ऐसा प्रस्ताव रखा तो मैं उनकी ओर पलटी, उनसे कहा कि जो वो कह रहे हैं वह गलत है। गांधी के पास इसका कोई जवाब नहीं था। हमारी बात वहीं खत्म हो गई। जवाहरलाल नेहरू की सहानुभूति हमारे साथ थी। उन्होंने गांधी से हमारी शादी के बारे में बात की। अप्रैल 1936 में सुचेता और आचार्य कृपलानी ने शादी कर ली। उस समय कृपलानी 48 साल के थे तो सुचेता मात्र 28 साल की थीं।

दोनों विरोधी दलों में शामिल हो गए
बाद में हालात ने ऐसी करवट ली कि दोनों विरोधी दलों में शामिल हो गए। आचार्य कृपलानी अक्सर मजाक में कहा करते थे कि कांग्रेसी इतने बदमाश हैं कि वो मेरी पत्नी ही भगा ले गए। बेशक दोनों पति-पत्नी थे लेकिन उनमें दोस्ती का भाव ज्यादा था। सुचेता आज़ादी के आंदोलन में शामिल उन तीन बांग्ला महिलाओं में थीं, जो उच्च शिक्षित थीं और जिन्होंने पूरे जोर-शोर आज़ादी की लड़ाई में हिस्सा लिया और तीनों ने अपना कार्यक्षेत्र उत्तर प्रदेश को बनाया। तीनों ने धर्म जाति की परवाह नहीं करते हुए अपने जीवन साथी चुने। वर्ष 1971 में राजनीति से रिटायर होने के बाद वह आचार्य कृपलानी के साथ दिल्ली के अपने बंगले में रहने लगीं। एक पत्नी के नाते उन्होंने अपने पति का पूरा ख्याल रखा।

Ruby