हाईकोर्ट के जज ने PM को लिखा पत्र, कहा- जजों की नियुक्ति वंशवाद और जातिवाद से ग्रसित

punjabkesari.in Wednesday, Jul 03, 2019 - 12:56 PM (IST)

लखनऊः यूपी की इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिसऔर पूर्व प्रमुख सचिव न्याय रंगनाथ पांडेय ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर न्यायपालिका में व्याप्त विसंगतियों से अवगत कराया है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तीन पेज का पत्र लिखा है। इसमें उन्होंने कहा है कि कोर्ट में न्यायधीशों की नियुक्तियों में कोई निश्चित मापदंड नहीं। प्रचलित कसौटी केवल परिवारवाद व जातिवाद से ग्रसित है।

'न्यायपालिका वंशवाद व जातिवाद से बुरी तरह ग्रस्त'
उन्होंने पत्र में लिखा कि 'न्यायपालिका दुर्भाग्यवश वंशवाद व जातिवाद से बुरी तरह ग्रस्त है। यहां न्यायधीशों के परिवार का सदस्य होना ही अगला न्यायधीश होना सुनिश्चित करता है। अधीनस्थ न्यायालय के न्यायधीशों को भी अपनी योग्यता सिद्ध कर ही चयनित होने का अवसर मिलता है। लेकिन, उच्च न्यायालय तथा सर्वोच्च न्यायालय के न्यायधीशों की नियुक्ति का हमारे पास कोई निश्चित मापदंड नहीं। प्रचलित कसौटी है तो केवल परिवारवाद और जातिवाद।'

हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट के जजों का विधिक ज्ञान संतोषजनक नहीं- पांडेय
जस्टिस पांडेय ने कहा कि 34 साल के सेवाकाल में उन्हें कई बार हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट के जजों को देखने का अवसर मिला। उनका विधिक ज्ञान संतोषजनक नहीं है। जब सरकार द्वारा राष्ट्रीय न्यायिक चयन आयोग की स्थापना का प्रयास किया गया तो सुप्रीम कोर्ट ने इसे अपने अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप मानते हुए असंवैधानिक घोषित कर दिया था।' उन्होंने बीते साल में हुए सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के विवाद व अन्य मामलों का हवाला देते हुए पीएम से गुजारिश की है कि न्यायपालिका की गरिमा को पुर्नस्थापित करने के लिए न्याय संगत कठोर निर्णय लिए जाएं।

'योग्यता के आधार पर न्यायाधीश नहीं होती नियुक्ती'
उन्होंने आगे लिखा कि 'कई न्यायधीशों के पास सामान्य विधिक ज्ञान व अध्ययन तक उपलब्ध नहीं। कई अधिवक्ताओं (वकीलों) के पास न्याय प्रक्रिया की संतोषजनक जानकारी तक नहीं। कोलेजियम के सदस्यों के पसंदीदा होने की योग्यता के आधार पर न्यायाधीश नियुक्त कर दिए जाते हैं। यह स्थिति बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।'

पैरवी और पसंदीदा होने के आधार पर होता है चयन-जस्टिस
साथ ही लिखा कि, 'हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों का चयन बंद कमरों में चाय की दावत पर वरिष्ठ न्यायाधीशों की पैरवी और पसंदीदा होने के आधार पर किया जाता रहा है। इस प्रक्रिया में गोपनीयता का पूरा ध्यान रखा जाता है। प्रक्रिया को गुप्त रखने की परंपरा पारदर्शिता के सिद्धांत को झूठा करने जैसी है।'

Tamanna Bhardwaj