दो पक्षकारों की दोस्ती की अमिट कहानीः जिंदगी भर लड़ा मंदिर-मस्जिद का मुकदमा, लेकिन नहीं छोड़ी दोस्ती

punjabkesari.in Thursday, Nov 14, 2019 - 02:44 PM (IST)

फैजाबादः 500 साल पुराने मामले का आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने हल निकाल ही दिया। ऐसे में प्रशासन मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए आपसी सौहार्द की अपील करता नजर आया, तो वही दोनों पक्षों से जुड़े समाजसेवी भी इस घड़ी में आपसी भाईचारा कायम करने के लिए प्रयासरत रहे। इन सब के बीच राम मंदिर आंदोलन के प्रमुख संत महंत परमहंस रामचंद्र दास और बाबरी मस्जिद के मुद्दई हाशिम अंसारी वो दो शख्स हैं जिनकी दोस्ती की कहानी आज सुनाई जानी जरूरी है। अपने धर्म के लिए समर्पित ये दो शख्स भारत की धार्मिक एकता की मिसाल हैं। जिन्होंने अपनी-अपनी विचारधारा को लेकर मुकदमा तो लड़ा, लेकिन मरते दम तक दोस्ती पर आंच नहीं आने दी।

परमहंस-हाशिम की दोस्ती की चर्चा का विषय
फैसले के बाद सबसे बड़े विवाद के दो विपरीत पक्षकार रहे दिवंगत रामचंद्रदास परमहंस और हाशिम अंसारी की दोस्ती की चर्चा हर किसी की जुबान पर है। यही दोनों शख्स थे, जो पहली बार मुकदमा दायर करने कचहरी गए। दशकों तक मुकदमा लड़े, पर उनकी दोस्ती भी हिमालय की तरह अडिग रही। जब भी कचहरी जाते, एक ही रिक्शा अथवा तांगा का इस्तेमाल करते। कचहरी में अपने वकीलों से मिल कर पेशी निपटाते, फिर वापस भी साथ ही लौटते।

एक ही तांगे पर बैठकर जाते थे कोर्ट
बता दें कि 22/23 दिसंबर 1949 को विवादित ढांचे में रामलला की मूर्ति प्रकट होने का मामला हाशिम अंसारी ही फैजाबाद कोर्ट लेकर गए थे। उनके खिलाफ हिंदू पक्ष के पैरोकार दिगंबर अखाड़ा के महंत रामचंद्र दास परमहंस थे, लेकिन इनके आपसी रिश्ते में कभी तल्खी नहीं आई। पेशी पर हमेशा एक ही रिक्शे पर बैठ कर जाते थे। कचहरी जाने के लिए तांगा का प्रयोग किया तो भी एक ही।

कोर्ट में तीखी बहस के बाद भी नहीं विचलित नहीं हुई उनकी दोस्ती
परमहंस के पास कार हो गई तो वह भी बिना हाशिम को साथ लिए कचहरी नहीं गए। अदालत की तीखी बहस उनकी दोस्ती को कभी विचलित नहीं करती। कचहरी के बाहर जब भी सामने होते पूरे उत्साह से मिलते,साथ-साथ चाय भी पीते थे। अखाड़े में बैठकर दोनों लोग देर शाम तक ताश भी खेलते।

परमहंस की मौत होने पर पूरे रात शव के पास बैठे रहे थे हाशिम
जानकारों की मानें तो महंत रामचंद्र परमहंस की मौत की खबर ने हाशिम अंसारी को अंदर तक हिला दिया और वे पूरी रात उनके शव के पास ही बैठे रहे और दूसरे दिन अंतिम संस्कार के बाद ही अपने घर गए। उन्होंने परमहंस को सदैव अपना मित्र माना और जीवन के अंत में तो यहां तक कहने लगे कि रामलला का अब टेंट में रहना उनसे भी देखा नहीं जाता।














 

Tamanna Bhardwaj