बदहाल कुंओं के रखरखाव से हो सकता है जलसंकट का समाधान

punjabkesari.in Friday, Jun 14, 2019 - 04:07 PM (IST)

 

झांसीः भीषण गर्मी से झुलस रहे बुंदेलखंड में एक ओर पानी के लिए त्राहि त्राहि मची है वहीं दूसरी ओर सदियों से लोगों की प्यास बुझाने वाले प्राचीन कुंए आज अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहे हैं। प्राचीन काल में इस क्षेत्र के लोगों की प्यास बुझाने में सक्षम रहे कुंए देखरेख के अभाव में सूखते जा रहे हैं। यदि प्रशासन की ओर से इस ओर पहल की जाएं और लोग भी कुओं के महत्व को समझे तो इस क्षेत्र में व्याप्त जलसंकट की समस्या को काफी हद तक समाप्त किया जा सकता है। क्षेत्र में बने कुंओं का बरसों से मेंटीनेंस नहीं कराया गया जिसकी वजह से कुओं की हालत काफी खराब हो गई है।

मेंटीनेंस न होने से कुओ दीवारें टूट चुकी है तथा इनके आसपास कटीली झाड़ियां और गंदगी के ढेर लगे रहते हैं जबकि इनका नवीनीकरण कर जल संकट से निपटा जा सकता है। वर्षों से प्रशासन द्वारा ध्यान न देने व जल स्रोतों की कमी के चलते पीने के पानी की समस्या भी गंभीर होती जा रही हैं। गौरतलब हो कि गर्मी का मौसम शुरू होते ही ग्रामीण क्षेत्रों में पानी के संकट को लेकर लोगो मे हाहाकार मचने लगा है। प्रशासन का कोई जिम्मेदार अधिकारी इन पुराने कुओं की देखरेख करने को तैयार नहीं है। बरसों से यह प्राचीन कुएं घोर उपेक्षा के शिकार बने हुए।

लगभग दो दशक पूर्व ग्रामीण क्षेत्रों में कुओं का बहुत चलन था। उसके बाद धीरे-धीरे लोगों ने इनका प्रयोग कम कर दिया साथ ही कुओं में दवा डालना भी बंद कर दिया परिणाम स्वरूप कुओं के पानी में कीड़े पड़ने लगे ओर पानी प्रदूषित होने लगा। इस कारण लोगों ने कुओं से पानी भरना बंद कर दिया है।

इसके अलावा स्वच्छता के प्रति अधिक जागरूक होने के कारण भी लोगों ने पानी लेना बंद कर दिया। कम मेहनत में पानी की चाहत में लोगों ने हैंडपंप को प्रमुखता दी। जिसके कारण आज ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति यह है कि एक सैकड़ा गांव घूमने के बाद एक या दो कुएं ही सही सलामत देखने को मिलेंगे। जो लोगों के सूखे कंठ को अपने निर्मल और शीतल जल से तरोताजा करने की जिम्मेदारी निभाते थे आज वे ही खुद प्यासे रह रहे हैं। एक समय था कि हर जगह कुआं होता था लेकिन अब उनके स्थान पर हैंडपंप नजर आते हैं, जो कभी भी खराब होकर लोगों के सामने पीने के पानी की समस्या खड़ी कर देते हैं।

बुजुर्गों के मुताबिक कुओं का इतिहास बहुत पुराना है। प्राचीन समय में राजा महाराजाओं और जमीदार पानी की पूर्ति के लिए कुआं खुदवा देते साथ ही पुण्य कमाने के लिए जगह-जगह इनका निर्माण कराते थे। प्राचीन समय में बहुत से ऐसे लोग भी हुए जिन्होंने धर्मार्थ दर्जनों कुओं का निर्माण कराया। प्राचीन कुओं की बदहाली से बचाने के लिए जिला प्रशासन ग्राम पंचायतों और ग्रामीणों को मिलकर कुओ की साफ-सफाई और उनके रखरखाव की ओर ध्यान देना होगा तभी उन्हें सुरक्षित रखा जा सकता है और उनके सुरक्षित रहने से ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल संकट का समाधान आसानी से किया जा सकता है।

Tamanna Bhardwaj