BHU की अनोखी पहलः गर्भ में पल रहे शिशु सीखेंगे संस्कार, बुराइयों का चक्रव्यहू तोड़ेंगे भविष्य के अभिमन्यु

punjabkesari.in Tuesday, Nov 03, 2020 - 02:42 PM (IST)

वाराणसीः काशी हिंदू विश्वविद्यालय के आयुर्वेद विज्ञान विभाग ने गर्भ संस्कार थेरेपी की एक अनोखी शुरुआत की है। इस थेरेपी के माध्यम से माताओं के पेट में पल रहे शिशुओं को जन्म से पहले ही अच्छे संस्कार दिए जा जायेंगे। इस अनोखी थेरेपी के अंतगर्त गर्भवती महिलाओं को आध्यात्मिक संगीत थेरेपी, वेद थेरेपी, ध्यान थेरेपी, और पूजापाठ थेरेपी के जरिये गर्भ में पलने वाले शिशुओं का पालन पोषण किया जाएगा।

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के सर सुंदर लाल अस्पताल के मेडिकल सुपरिटेंडेंट एस.के.माथुर ने बताया कि आयुर्वेद विज्ञान में ये क्रिया बहुत पहले से चली आ रही है, लेकिन आधुनिक अस्पतालों ने इसे बन्द कर दिया। अब इसे एक बार फिर से हम शुरू कर रहे हैं। मेडिकल उपचार में गर्भवती महिलाओं के लिए ये जरूरी होता है। विज्ञान के अनुसार गर्भ में पल रहा बच्चा 3 महीने बाद हलचल करना शुरू कर देता है।

आयुर्वेद विभाग के प्रसूति तंत्र विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. सुनीता सुमन बताती हैं कि इन थेरेपियों के अंतर्गत यहां आने वाली महिलाओं को वेद पढ़ने के लिए दिए जा रहे है इसके साथ ही उन्हें पूजापाठ के करने की सलाह दी जा रही है। इसके अलावा अस्पतालों में एडमिट गर्भवती महिलाओं को भजन संगीत सुनाया जा रहा । गर्भवती महिलाओं को महापुरुषों के आचरण के विषय में किताबे पढ़ कर सुनाई जाती है । ऐसे में उन माताओं को सनातन धार्मिक ग्रंथो का पठन- पाठन, महापुरषो के प्रेरक प्रसंग के साथ -साथ मंत्रोच्चार, ध्यान, प्राणायाम, योग आदि  का भी अभ्यास कराया जाता है।

आयुर्वेद विभाग के इस गर्भ संस्कार थेरेपी की शुरुआत यहाँ आने वाली महिलाओं में उत्साह और प्रसन्नता है। मंत्रोच्चार के बीच अल्ट्रासाउंड, भर्ती होने के दौरान पूजापाठ और वेद  पठन पाठन ये सब महिलाएं अपने शिशु के लिए ध्यानपूर्वक धारण कर रही हैं । उनका कहना है कि इस थेरेपी के जरिये आने वाले शिशु के एक अच्छा संस्कार मिलेगा। बड़ा होकर वो देश समाज के लिए कुछ बेहतर योगदान दे सकेगा।

भारतीय आयुर्वेद शास्त्र में गर्भ थेरेपी कोई नई बात नही है। महाभारत काल में अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु इस बात का प्रमाण है कि गर्भ में ही शिशु सीखना शुरू कर देते हैं, लेकिन आधुनिकता ने इस थेरपी को भारतीय चिकित्सा पद्धति से काफी दूर कर दिया । एक बार फिर से बीएचयू द्वारा शुरू की गई ये थेरेपी आज के इस कालखंड में बच्चों को संस्कारित करने, समाज के नैतिक पतन को रोकने और आने वाली पीढ़ियों में महापुरुषो  जैसा  आचरण का बीज रोपने के साथ एक स्वस्थ समाज के निर्माण में सहायक होगी।


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Moulshree Tripathi

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