UP का अनोखा गांव: दशहरा पर आज भी की जाती है ‘रावण’ की पूजा… नहीं होता पुतला दहन-रामलीला !

punjabkesari.in Friday, Oct 15, 2021 - 02:29 PM (IST)

बागपत: आकाश से लेकर पाताल तक देवताओं से लेकर दानव तक दसों दिशाओं में रावण के बाहुबल का डंका बजता था। बड़े-बड़े योद्धा और धनुर्धर प्रखंड पंडित रावण के आगे नतमस्तक नजर आते थे, क्योंकि रावण को सृष्टि रचयिता ब्रह्मा जी से अमरत्व का वरदान मिला हुआ था। रावण का पाप बढ़ा तो भगवान का अवतार हुआ और भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया और तभी से हम बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व विजयादशमी मनाते आ रहे हैं।


इस दिन देश के हर कोने में रामलीला के मंचन होते हैं और फिर रावण के पुतले का दहन भी होता है। लेकिन राजधानी दिल्ली से महज 22 किलोमीटर दूर बागपत के रावण गांव पुर बड़ागांव में ना तो रामलीला होती है और ना ही रावण के पुतले का दहन होता है क्योंकि यहां रावण को लेकर लोगों के मन में आस्था है और लोग रावण को देवता के रूप में पूजते हैं।


बता दें कि बड़ागांव उर्फ रावण गांव के लोग रावण को क्यों पूजते हैं, उसके पुतले को क्यों नहीं जलाते हैं इसके पीछे एक रोचक तथ्य है। दरअसल, मनसा देवी के मंदिर में जिसने भी माथा टेका उसके संकट कट गए, उसकी हर इच्छा पूरी हो गई। क्योंकि आस्था की देवी मां मनसा देवी यहां खुद वास करती हैं। अब मनसा देवी मां के इस बागपत के बड़ागांव यानी रावण गांव में पहुंचने की कहानी बताते हैं। रावण ने सैकड़ों वर्षो तक आदि शक्ति की तपस्या की और देवी प्रसन्न हुई और रावण से कहा की वरदान मांगिए, रावण ने कहा कि मैं आपको लंका ले जा कर स्थापित करना चाहता हूं और देवी ने यह कहते हुए तथास्तु कहा कि मेरे रूप में तुम मेरी इस मूर्ति को जहां भी रख दोगे यह वहीं पर स्थापित हो जाएगी और फिर उसे वहां से कोई भी हटा नहीं पाएगा। इस वरदान के बाद देवलोक में अफरा तफरी मच गई और देवता भगवान विष्णु के पास त्राहि-त्राहि करते हुए पहुंचे।


भगवान विष्णु ने ग्वाले का वेश धर लिया और रावण को लघु शंका लगा दी। जंगल में ग्वाले को देखकर रावण ने आदिशक्ति की मूर्ति ग्वाले को थमा दी और ग्वाले के रूप में भगवान विष्णु ने इस मूर्ति को जमीन पर रख दिया और जब रावण ने मूर्ति को उठाया तो वह हिली तक नहीं और इस तरह बागपत के इसी बड़ागांव उर्फ रावण गांव में आदि मूर्ति की स्थापना हुई। रावण गांव में स्थापित इस मनसा देवी मंदिर की आस्था पूरे देश में है। मां को यहां लाने वाला लंकेश था और इसीलिए इस गांव का नाम रावण गांव रखा गया। रावण का सपना भले ही अधूरा रह गया हो लेकिन आदिशक्ति मां इस रावण गांव में विराजमान होकर श्रद्धालुओं के कष्ट हर रही हैं।

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Umakant yadav