मिशन 2017: BSP का मुसलमानों पर बड़ा दांव

punjabkesari.in Wednesday, Jan 11, 2017 - 10:56 AM (IST)

लखनऊ: अपने मजबूत इलाके वेस्ट यूपी में मायावती ने 50 मुसलमानों को टिकट देकर सबको चौंकाया है। इस इलाके की 149 सीटों पर लगभग तिहाई मुस्लिम प्रत्याशी उतारकर मायावती ने बड़ा पासा फेंका है। इसके अलावा अयोध्या में तमाम परंपराओं को तोड़ते हुए मायावती ने बजमी सिद्दीकी नामक नए चेहरे को टिकट दे दिया है। 80 के दशक में शुरू हुए रामजन्मभूमि विवाद के बाद से किसी पार्टी ने यहां मुस्लिम कैंडिडेट उतारने की हिम्मत नहीं की थी। इसी प्रकार विश्व प्रसिद्ध मदरसे के लिए मशहूर सहारनपुर के देवबंद से भी बसपा ने 1993 के बाद पहली बार मुस्लिम प्रत्याशी (मजीद अली) को उतारा है। हालांकि बसपा ने अयोध्या सीट कभी नहीं जीती है लेकिन 2002 व 2007 में बसपा ने देवबंद में जीत हासिल की थी।

बसपा को यहां अपनी जीत साफ नजर आ रही
राजेंद्र सिंह राणा व मनोज चौधरी ने यहां जीत का स्वाद चखा था। फिलहाल देवबंद में मुस्लिम विधायक हैं। कांग्रेस के टिकट पर उपचुनाव में मावी अली ने पिछले साल फरवरी में जीत हासिल की थी। सपा के विधायक राजेंद्र सिंह राणा के निधन के कारण यह सीट खाली हुई थी। अयोध्या की बात करें तो 1991 के बाद से लगातार 21 साल से यहां भाजपा का बोलबाला रहा है। 2012 में सपा के पवन पांडेय ने यहां भाजपा के लल्लू सिंह को हराकर भाजपा को झटका दिया था। 3 लाख वोटरों वाली अयोध्या सीट पर 50 हजार से ज्यादा मुस्लिम वोट हैं और 60 हजार के करीब दलित वोटर हैं। ऐसे में बसपा को यहां अपनी जीत साफ नजर आ रही है। बसपा प्रत्याशी सिद्दीकी कहते हैं कि अयोध्या के लोग शांतिप्रिय हैं और भाजपा की सांप्रदायिकता की राजनीति यहां लोगों मे द्वेष भरती है।

6 विधानसभा सीटों में से 3 पर बसपा ने उतारे मुस्लिम प्रत्याशी
वेस्ट यूपी के मुजफ्फरनगर में छह विधानसभा सीटों में से तीन पर बसपा ने मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं। 2012 में दो प्रत्याशी (मीरापुर व चरथावल) थे और दोनों ही जीते थे। इस बार बसपा ने मीरापुर से नवाजिश आलम (2012 में बुढ़ाना से सपा विधायक), बुढ़ाना से सैयदा बेगम (बसपा के पूर्व सांसद कादिर राणा की पत्नी) व चरथावल से सिटिंग विधायक नूरसलीम राणा (कादिर राणा के भाई) को टिकट दिया है। 2013 में हुए सांप्रदायिक दंगों के बाद से मुजफ्फरनगर की फिजा बदली है। यहां तमाम हिंदू वोट भाजपा की ओर आकर्षित हुए हैं। इसी वजह से बसपा ने यहां मुस्लिमों की पहली पसंद बनने के लिए कमर कस ली है। कादिर राणा पर दंगों के समय आरोप लगे थे कि उन्होंने मुसलमानों को भड़काने के लिए उत्तेजक भाषण दिया था।

बसपा ने मुसलमानों पर खेला दांव
मुजफ्फरनगर से अलग होकर 2011 में शामली जिला बना था। इसके गठन में तत्कालीन मायावती सरकार का योगदान था। मुजफ्फरनगर की तीन सीटें शामली जिले में चली गई थीं। वहां की दो सीटों पर भी बसपा ने मुसलमानों पर दांव खेला है। थानाभवन से राव वारिस व शामली से मो. इस्लाम को प्रत्याशी बनाया गया है।  मुजफ्फरनगर जिले की सीमा से लगते बिजनौर जिले में भी बसपा ने मुस्लिम कार्ड चला है। यहां की सभी छह अनारक्षित सीटों पर मायावती ने मुस्लिमों को टिकट दिए हैं। यहां नजीबाबाद से जमील अहमद अंसारी, बढ़ापुर से फहद यजदानी, धामपुर से मो. गाजी, बिजनौर से रसीद अहमद, चांदपुर से मो. इकबाल व नूरपुर से गौहर इकबाल को टिकट दिया गया है।

गिरता वोट शेयर चिंता का सबब
दरअसल बसपा का वोट शेयर तेजी से नीचे गिरा है। 2009 के लोकसभा चुनाव के मुकाबले 2014 में बसपा का वोट शेयर 33 प्रतिशत से गिरकर 23 प्रतिशत पर आ गया है। जबकि दंगा प्रभावित इलाकों में भाजपा ने 59 प्रतिशत वोट हासिल किए। यही बसपा के लिए सिरदर्द बन रहा था। बसपा ने अपने चुनाव प्रचार में सपा व भाजपा पर सांप्रदायिकता की राजनीति करने के आरोप भी लगाए हैं। बसपा के कद्दावर मुस्लिम नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी कहते रहे हैं कि बसपा के कार्यकाल में यूपी में कहीं भी दंगे नहीं हुए थे। वेस्ट यूपी के रामपुर, संभल, मुरादाबाद और बदायूं जिलों में आधे से अधिक टिकट बसपा ने मुसलमानों को दिए हैं। बुंदेलखंड की 19 सीटों में से किसी पर बसपा का मुस्लिम प्रत्याशी नहीं है। पूर्वी यूपी में गोंडा, बहराईच, बलरामपुर और सिद्धार्थनगर के अलावा तराई के इलाके में भी बसपा ने काफी मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं।