UP Election 2022: प्रसपा के नेताओं को रास नहीं आ रहा है शिवपाल यादव का समर्पण, नाराजगी ऐसी की...

punjabkesari.in Monday, Feb 07, 2022 - 09:14 PM (IST)

इटावा: समाजवादी पार्टी (सपा) से गठबंधन कर मात्र एक सीट की हिस्सेदारी पर संतोष करने वाले शिवपाल सिंह यादव का समर्पित रवैया उनके ही दल प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (प्रसपा) के नेताओं और पदाधिकारियों को रास नहीं आ रहा है। विधानसभा चुनाव में सपा गठबंधन का हिस्सा बनने के बाद प्रसपा के सैकड़ों कार्यकर्ता और शिवपाल समर्थक पार्टी छोड़ कर अलग अलग दलों में शामिल हो चुके हैं। माना जाता है कि शिवपाल अपने किसी भी समर्थक को सपा से गठबंधन के जरिए टिकट नहीं दिला पाए हैं। इसी कारण उनके ज्यादातर समर्थकों ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सदस्यता ग्रहण कर ली हैं। कुछ समर्थक ऐसे भी हैं जिन्होंने कांग्रेसी और निर्दलीय बन कर किस्मत आजमाना मुनासिब समझा है। खुद प्रसपा अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव केवल एक सीट पर चुनाव मैदान में हैं। जसवंतनगर से शिवपाल सपा के चुनाव चिन्ह साइकिल के साथ मैदान में है।       

सपा और प्रसपा को नजदीक से जानने वाले राजनीतिक विश्लेषक की भी समझ में नहीं आ रहा है कि चुनाव से पहले 100 से अधिक सीटों की मांग करने वाले शिवपाल आखिरकार केवल एक सीट पर कैसे मान गए हैं, सिफर् इतना ही नहीं खुद शिवपाल की पार्टी पीएसपीएल के नेता और कार्यकर्ता भी सकते में हैं लेकिन कोई भी कुछ खुल कर बोल पाने की स्थिति में नहीं है। खुद पीएसपीएल प्रमुख शिवपाल भी अपने भतीजे सपा प्रमुख अखिलेश यादव को उत्तर प्रदेश का एक बार फिर से मुख्यमंत्री बनाने की बात कहते हुए दिखाई दे रहे हैं। केवल इतना ही नहीं उन्होंने अपने बड़े भाई और सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव के मुकाबले अखिलेश यादव को अब सपा का नया नेता भी मान लिया है। शिवपाल साफ़ तौर पर कई दफा यह बात भी कह चुके हैं कि अब सपा के नए नेता उनके भतीजे अखिलेश यादव हैं और उनका अखिलेश यादव को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाना एक मात्र लक्ष्य है।       

शिवपाल पहले भी कई बार कह चुके थे कि 2022 विधानसभा चुनाव में सरकार किसी भी दल की बने लेकिन वह सरकार का हिस्सा हर हाल में होंगे। यह कुछ ऐसे सवाल थे जिनको लेकर राजनीतिक हलकों में चर्चा होना लाजमी थी ही,कोई यह नहीं समझ पा रहा था कि शिवपाल के इन बयानों का आखिरकार क्या अर्थ है। शिवपाल अपने बयानों में इस बात को भी प्रभावी ढंग से रखते हुए दिखाई देते थे कि वह जब भी चाहते हैं तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से सीधे बात कर लेते हैं जबकि उनके भतीजे सपा प्रमुख अखिलेश यादव से उनकी बात नहीं हो पाती है। इससे एक बात साफ कही जा सकती है कि शिवपाल के रिश्ते सरकार मे बैठे राजनेताओ के अलावा मुख्यमंत्री से बहुत ही बेहतर है लेकिन इसके विपरीत मुख्य विपक्षी दल ओर उनके भतीजे सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से अनबन है।       

राजनीतिक हलकों में अब यह भी चर्चा है कि शिवपाल का अब दल केवल कहने भर को ही रह गया है,वास्तविकता में उन्होने सपा में अपने दल का विलय कर लिया है लेकिन इसकी कोई घोषणा अभी आधिकारिक तौर पर नहीं की गई है लेकिन उम्मीद यह जताई जा रही कि आने वके दिनों में सपा में विलय की प्रक्रिया हर हाल में अपना ली जाएगी। राजनीतिक टीकाकार उदयभान कहते हैं कि शिवपाल यादव ने तो अपने राजनीतिक गठबंधन से पहले ही कई सीटों पर प्रत्याशियों को चुनाव लड़ाने की न सिफर् हामी भरी थी बल्कि उनका टिकट तक फाइनल कर दिया था लेकिन जब समझौता सपा से हुआ तो शिवपाल की पार्टी से टिकट की चाह रखने वाले ऐसे कई बड़े-बड़े नेताओं का अब फिलहाल कोई राजनीतिक भविष्य नजर नहीं आ रहा है।      

प्रदेश की राजनीति को करीब से समझने वाले डा. शांतनु मौर्य कहते हैं कि शिवपाल ने तो अपने राजनीतिक गठबंधन से पहले ही कई सीटों पर प्रत्याशियों को चुनाव लड़ाने की न सिफर् हामी भरी थी बल्कि उनका टिकट तक फाइनल कर दिया था लेकिन जब समझौता सपा से हुआ तो शिवपाल की पार्टी से टिकट की चाह रखने वाले नेताओं को टिकट नही दिया गया है जिससे उनका राजनीतिक भविष्य अंधकार में हो गया है। मौर्य उदाहरण देकर कहते हैं कि इटावा की भरथना सीट पर शिवपाल ने सुशांत वर्मा को उम्मीदवार घोषित किया था चूंकि अब शिवपाल का सपा से गठबंधन है और सपा ने इसी भरथना सीट से राघवेंद्र गौतम को टिकट दे दिया है। यानी जिस सीट के लिए शिवपाल ने अपना प्रत्याशी घोषित किया, सपा ने उसको दरकिनार करके वहां अपना प्रत्याशी तय कर दिया। इसी तरीके से

पूर्व राज्यसभा सांसद वीरपाल यादव को शिवपाल ने गठबंधन से पहले बिथरी चौनपुर से प्रसपा का प्रत्याशी घोषित किया था लेकिन अखिलेश ने इस चुनाव में अगम मौर्य को उम्मीदवार बना दिया।        इसी तरह से शिवपाल ने इटावा सदर सीट से पीएसपीएल उपाध्यक्ष रघुराज सिंह शाक्य का टिकट घोषित किया था बावजूद इसके अखिलेश यादव ने सपा से रघुराज सिंह शाक्य मुकाबले सर्वेश शाक्य को टिकट देना मुनासिब समझा। आज लखनऊ मे उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और ज्वाइनिंग कमेटी के चैयरमैन लक्ष्मीकांत बाजपेई की मौजूदगी मे पीएसपीएल के उपाध्यक्ष रघुराज सिंह शाक्य ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर यादव बेल्ट मे भगवा झंडे को मजबूत करने का वादा किया है।      

फिरोजाबाद की सिरसागंज सीट से शिवपाल हरीओम यादव का टिकट चाहते थे लेकिन उनकी सपा मे इंट्री ही नही हो सकी। बदली हुई सूरत मे हरीओम को सिरसागंज से भाजपा ने टिकट दे चुनाव मैदान मे उतार दिया। ऐसा ही कुछ हाल शिवपाल की पाटर्ी से ताल्लुक रखने वाले पूर्व मंत्री शारदा प्रताप शुक्ला, शादाब फातिमा समेत कई बड़े-बड़े नेताओं का भी हुआ दिख रहा है क्योंकि किसी को टिकट नही दिया गया है। इसमे से शारदा प्रसाद शुक्ला ने तो भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली है और जो अब अखिलेश यादव को बर्बाद करने का खुलेआम ऐलान भी कर रहे है।       

शारदा प्रसाद शुक्ला से पहले शिवपाल कैंप के माने जाने वाले बिधूना से समाजवादी पार्टी के विधायक रहे प्रमोद गुप्ता एलएस ओर अखिलेश सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे शिवकुमार बेरिया ने भी भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली। फरूर्खाबाद जिले की भोजपुर सीट से फ़िलहाल कांग्रेस से अर्चना राठौर चुनाव लड़ रही है जो शिवपाल की ना केवल करीबी मानी जाती हैं बल्कि उनकी पार्टी प्रसपा की महिला सभा की राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रह चुकी है। वैसे शिवपाल सपा से गठबंधन से पहले उनका टिकट घोषित कर चुके थे लेकिन जब सपा का प्रसपा से गठबंधन हुआ तो अर्चना राठौर को टिकट नहीं मिल सका, ऐसे में अर्चना राठौर में कांग्रेस पार्टी से टिकट लेकर के चुनाव मैदान में उतरना मुनासिब समझा।       

प्रसपा के संस्थापक सदस्य रहे अमित जानी मेरठ जिले की सिवाल खास विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी में थे। गठबंधन में यह सीट सपा के खाते में गई और पूर्व विधायक गुलाम मोहम्मद को प्रत्याशी बनाया गया। टिकट न मिलने से नाराज अमित जानी ने प्रसपा छोड़ दी। उन्होंने आचार्य प्रमोद कृष्णम के समक्ष कांग्रेस ज्वाइन कर ली। कांग्रेस ने अमित जानी को टिकट नहीं दिया और सिवाल खास से जगदीश शर्मा को प्रत्याशी बना दिया। अब अमित जानी ने निर्दलीय के रूप में पर्चा भरा है।        

भले ही अपने समर्थको को टिकट ना मिलने पर शिवपाल को खामोश हो लेकिन भीतरी तौर पर आक्रोश बड़े स्तर पर अहसास करा रहा है जो कही ना कही कुछेक सीटे पर नुकसान की ओर इशारा कर रहा है।

Content Writer

Mamta Yadav