UP: इस जिले में डाकू जगजीवन ने खेली थी खूनी होली, लोगों के दिलों में आज भी है जिसका दर्द

punjabkesari.in Tuesday, Feb 27, 2018 - 12:04 PM (IST)

इटावा: उत्तर प्रदेश के इटावा में चंबल क्षेत्र के खूंखार दस्यु सरगना जगजीवन परिहार ने आज से 12 साल पहले होली के दिन अपने गांव मे ऐसी खूनी होली खेली थी जिसको आज भी गांव वाले भूल नहीं पाए हैं। इटावा में बिठौली के चौरला गांव में 16 मार्च 2005 को तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव अपने गांव सैफई आए हुए थे। चंबल के खूखांर डाकुओ में सुमार रहे जगजीवन परिहार के गांव चौरैला के आसपास के कई गांव में खासी दहशत और आतंक था। जगजीवन के अलावा उसके गिरोह के दूसरे डाकुओं का खात्मा हो जाने के बाद आसपास के गांव के लोगों में भय समाप्त हो गया था।

जानकारी के अनुसार 16 मार्च 2005 को होली की रात जगजीवन गिरोह के डकैतों ने आतंक मचाते हुए चौरैला गांव में अपनी ही जाति के जनवेद सिंह को जिंदा होली में जला दिया और उसे जलाने के बाद ललुपुरा गांव में चढ़ाई कर दी थी। वहां करन सिंह को बातचीत के नाम पर गांव में बने तालाब के पास बुलाया और मौत के घाट उतार दिया था। इतने में भी डाकुओं को सुकुन नहीं मिला तो पुरा रामप्रसाद में सो रहे दलित महेश को गोली मार कर मौत की नींद मे सुला दिया था। इन सभी को मुखबिरी के शक में डाकुओं ने मौत के घाट उतार दिया था।

इस लोमहर्षक घटना की गूंज पूरे देश मे सुनाई दी। इससे पहले चंबल इलाके में होली पर कभी भी ऐसा खूनी खेल नहीं खेला गया था। इस कांड की वजह से सरकारी स्कूलों में पुलिस और पीएसी के जवानों को कैंप कराना पड़ा था। क्षेत्र के सरकारी स्कूल अब डाकुओं के आतंक से पूरी तरह से मुक्ति पा चुके हैं। इलाके में अब कई प्राथमिक स्कूल खुल चुके हैं। इसके साथ ही कई जूनियर हाईस्कूल भी खोले जा रहे है। जिनमें गांव के मासूम बच्चे पढ़ने के लिए आते हैं और पूरे समय रहकर शिक्षकों से सीख लेते है।

ललूपुरा गांव के बृजेश कुमार बताते हैं कि जगजीवन के मारे जाने के बाद पूरी तरह से सुकुन महसूस हो रहा है। उस समय गांव में कोई रिश्तेदार नहीं आता था। लोग अपने घरो के बजाए दूसरे घरों में रात बैठ करके काटा करते थे। उस समय डाकुओं का इतना आतंक था कि लोगों की नींद ही उड़ गई थी। पहले किसान खेत पर जाकर रखवाली करने में भी डरते थे। आज वे अपनी फसलों की भी रखवाली आसानी से करते हैं।

स्कूल में पढ़ने वाले लड़के को आज न तो डाकुओं के बारे में कोई जानकारी है और न ही उनके परिजन उनको डाकुओं के बारे में कुछ भी बताना चाह रहे हैं। इसी कारण गांव में मासूम बच्चे पूरी तरह से डाकुओं से अनजान भी हैं और हमेशा अनजान ही रहना चाह रहे है। कक्षा 5वीं का छात्र हरिशचंद्र से बातचीत में एक बात साफ हुई कि उसके माता पिता या फिर गांव वालों ने उसे कभी डाकुओं के बारे में नहीं बताया । इसी कारण उसे किसी भी डाकू के नाम का पता नहीं है।