UP का पहला आभूषण शिक्षण संस्थान वाराणसी में शुरू, CM योगी ने किया उद्घाटन

punjabkesari.in Sunday, Jan 21, 2018 - 03:56 PM (IST)

वाराणसी(काशी नाथ शुक्ला): धर्म एवं संस्कृति की नगरी वाराणसी अपनी कला और हस्तशिल्प के लिए हमेशा ही मशहूर रहा है। चाहे बनारसी साड़ी हो या फिर लकड़ी के खिलौने। वहीं अब बनारसी शिल्पकारी का अद्भुत नमूना बनारसी गुलाबी मीनाकारी में भी देखने को मिल रहा है। विलुप्त होने के कगार पर पहुंची इस कला को एक बार फिर जीवंत करने के लिए एक निजी संस्था ने पहल की है।

इस कला को आधुनिक तरीके से जीवंत करने के लिए उत्तर प्रदेश का पहला आभूषण शिक्षण संस्थान वाराणसी में खोला गया। इस शिक्षण संस्थान का उद्घाटन यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने 20 जनवरी को अपने वाराणसी दौरे के दौरान किया।

आधुनिक तरीको से किया जाएगा प्रशिक्षित 
दरअसल भारतीय आभूषण पुरे विश्व में सबसे लोकप्रिय माना जाता है। भारत में आने वाले विदेशी सैलानी खासकर गुलाबी मीनाकारी के साथ भारत की प्राचीन कलाओं से बने आभूषणों को काफी पसंद करते हैं। ऐसे में उत्तर प्रदेश से विलुप्त होती इन कलाओं को एक बार फिर जीवंत करने के लिए वाराणसी में उत्तर प्रदेश का पहला शिक्षण संस्थान खोला गया। इस शिक्षण संस्था में छात्रों को गुलाबी मीनाकारी की कला के साथ भारत से विलुप्त होती कलाओं को आधुनिक तरीको से प्रशिक्षित किया जाएगा।

गुलाबी मीनाकारी को बौद्धिक संपदा अधिकार में किया गया शामिल 
अमित वर्मा जो कि गुलाबी मीनाकारी के प्रशिक्षक है। उन्होंने बताया कि वर्ष 2015 में गुलाबी मीनाकारी को बौद्धिक संपदा अधिकार में शामिल किया गया है। अब संस्थान में छात्रों को प्रशिक्षण से इसे बढ़ावा मिलेगा। संस्थान में ज्वेलरी डिजाइन, डायमंड ग्रेडिंग, ज्वेलरी मैनेजमेंट पर सर्टिफिकेट और डिग्री कोर्स पढ़ाए जाएंगे। यह कोर्स 3 माह से 3 साल तक की अवधि के होंगे। शिक्षण संस्थान ने मुंबई, दिल्ली, जयपुर में स्थानीय कलाओं को प्रोत्साहन के लिए अलग से कोर्स डिजाइन किए गए हैं। उसी तर्ज पर विशेषज्ञ वाराणसी में भी गुलाबी मीनाकारी का प्रशिक्षण देंगे।

इस कला को मिलेगा काफी प्रोत्साहन-प्रशिक्षक 
उनका कहना है कि यूं तो वाराणसी में गुलाबी मीनाकारी बड़े स्तर पर किया जाता था, लेकिन गुलाबी मीनाकारी का काम करने वाले परिवारों की संख्या अब बहुत कम रह गई है। 10 साल पहले 250 परिवार थे जिनकी संख्या अब 150 रह गई है। जिसकी वजह से यह कला अब विलुप्त होने के कगार पर थी, लेकिन अब कोर्स के माध्यम से जब इसका प्रक्षिशण दिया जाएगा तो इस कला को काफी प्रोत्साहन मिलेगा।

मुगलकाल के समय बनारस में गुलाबी मीनाकारी का शुरू हुआ थ प्रचलन 
इस संबंध में राम बाबू विश्वकर्मा कारीगर ने बताया कि मुगलकाल के समय बनारस में गुलाबी मीनाकारी का प्रचलन शुरू हुआ था। इसमें शिल्प का निर्माण 600 से 1200 डिग्री सेल्सियस तापमान पर किया जाता है। सोना और चांदी इसमें कच्चे माल के रूप में इस्तेमाल होते हैं। इसमें अपारदर्शी मीना पर गुलाबी पेटिंग की जाती है। इसी लिए इसे गुलाबी मीनाकारी कहते हैं। इसमें स्वर्ण भस्म, चंदन के तेल का उपयोग होता है। वाराणसी में कोर्स शुरू होने के बाद इसके हुनरमंद बढ़ेंगे, तब ज्यादा लोगों को रोजगार भी मिलेगा।