UP: रोजी-रोटी के संकट से जूझ रहा ताजियों का गांव, दाने-दाने को मोहताज हुए हुनरमंद हाथ

punjabkesari.in Friday, Aug 20, 2021 - 01:36 PM (IST)

कौशांबी: यूं तो देश के विभिन्न शहरो व कस्बों में ताजिया बनाये जाते है, लेकिन कौशाम्बी जिले के कड़ा कसबे को ताज़िया की नायाब कारीगरी के कारण ताज़िया का गाव भी कहा जाता है। इस ताज़िया के गाव में विशालकाय ताज़िया और उस पर नायाब कारीगरी का लोहा देश के साथ-साथ विदेशों में भी विखरी हुई है। हजरत इमाम हुसैन के शहादत की याद में मनाया जाने वाले माहे मुहर्रम में ताज़िया का अहम स्थान होता है। लेकिन इस बार भी कोविड संक्रमण काल में हालात ऐसे बने हैं कि हुनरमंद हाथ निवाले के लिए मोहताज होने लगे हैं। बड़े ताजिया बनकर तैयार हैं लेकिन इसे लेने वाले खरीददार नही, इन्होंने अपनी जमा पूंजी इन ताजियों में लगा दी है अब इनकी चिंता बढ़ गई है कि अगर ये ताजिये नहीं बिके तो इनके परिवार का भरण पोषण कैसे होगा और ये त्योहार कैसे मना पाएंगे।

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ताजिया को खूबसूरती के साथ बनाने में 6 महीने का समय लगता है।
नायब हांथों की कारीगरी का हुनर ही कौशाम्बी के इस ताज़िया के जादूगर को नई पहचान देता है। पिछली चार पीढ़ी से इस परिवार के हांथो से बनी इको फेंडली ताजिया प्रदेश ही नहीं देश और दुनिया के ताज़िया के कद्रदानों को अपना मुरीद बनाये हुए है। हांथो और उगलियों के हुनर और कड़ी मेहनत से बनकर तैयार यह माहे मुहर्रम कि शान ताज़िया कौशाम्बी जैसे बेहद पिछड़े जिले को फर्श से अर्श पर पंहुचा देती है। तभी तो माहे मुहर्रम के शुरू होते ही ताज़िया के कद्रदान नायब कारीगरी का जादू खरीद कर अपने इमामबाड़े में रखते हैं। इसे कौशाम्बी के कारीगरों का हुनर ही कहेंगे जिसके कारण ताज़िया खरीदने के लिए प्रदेश और देश के कोने कोने से लोग यहाँ आते हैं। खुद ताजिया के बड़े कारीगरों में सुमार नियाज़ अली बताते हैं कि एक ताजिया को खूबसूरती के साथ बनाने में 6 महीने का समय लगता है। नियाज़ के परिवार की महिलायें भी मुहर्रम के शुरू होने से पहले रात दिन एक कर ताजिया को बनाती है।

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नीदरलैंड भारतीय कला की कारीगरी का जीता जगता उदहारण
कौशाम्बी की ऐतिहासिक विरासत को अपने में सजोह कर रखने वाली कड़ा गांव में बनने वाले आस्था का प्रतीक ताजिया की चमक देश के बिभिन्न प्रान्तों के आलावा सात समंदर पार तक फैली हुई  है। कड़ा के कारीगर असगर अली उर्फ़ बडकू का ताजिया चार साल  पहले  "नीदरलैंड" के "KITROPREN"  संग्रहालय में भारतीय कला की कारीगरी का जीता जगता उदहारण है।

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3 हज़ार परिवार की रोजी रोटी का जरिया है ताज़िया
मोहर्रम के दौरान अजादारी के लिए तैयार होने वाला ताज़िया कड़ा गांव के 3 हज़ार आबादी के रोजी रोटी का एक मात्र जरिया है। कारीगर नियाज ने बताया, वह चार पीढ़ियों से ताज़िया का काम करते चले आ रहे हैं। हुनर उन्होंने अपने बाप-दादा से सीखा। आज गांव की आधी आबादी ताज़िया बना अपना गुजर बसर कर रही है।

कोरोना ने खड़ा किया निवाले का संकट
महामारी काल में सार्वजानिक आयोजनों पर पूरी तरह से प्रतिबन्ध है। जुलूस मातम मजलिस आदि बंद है। ऐसे में ताज़िया के कद्रदान होने के बाद भी खरीददार नहीं मिल रहे है। हालात यह है कि दो जून की रोटी का भी संकट खड़ा है। कारीगर अनवर अली बताते है कि कोरोना की पहली लहर कर्ज भरते बीत गई। दूसरी लहर में हुनरमंद होने के बाद भी दुसरो की मजदूरी करनी पड़ी।


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Content Writer

Umakant yadav

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