वाराणसी: इस महिला इंस्पेक्टर के पास हैं इतने मेडल, देख फटी रह जाएगी आंखें

punjabkesari.in Sunday, Mar 08, 2020 - 02:05 PM (IST)

वाराणसी: अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पूरी दुनिया में 8 मार्च को मनाया जाता है। इस वर्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने सभी सोशल मीडिया हैंडल 8 मार्च को चार सशक्त महिलाओं को एक दिन के लिए हैंडल करने की अनुमति देने की घोषणा की है। इसके पहले वाराणसी की एक महिला इंस्‍पेक्‍टर इन दिनों अपराधियों में खौफ बनी हुई है।

गीता राय 'सशक्त भारत की सशक्त माहिला'
बता दें कि इंटरनेशनल धावक और वाराणसी जंक्शन के जीआरपी थाने पर तैनात इंस्‍पेक्‍टर गीता कुमारी राय सशक्त भारत की सशक्त माहिला हैं, जिन्होंने अपने जज़्बे के बदौलत आज ये मुकाम पाया है। गीता कुमारी राय अब तक 150 पदक यूपी रिकार्ड के साथ और 22 नेशनल और इंटरनेशनल पदक अपने नाम कर चुकी हैं। पेश है महिला दिवस पर एक ख़ास रिपोर्ट।

लड़कों को देखकर हुआ दौड़ने का शौक
बिहार के बक्सर जनपद के हाकिमपुर गांव के रहने वाले धर्मदेव राय और बर्मादेवी राय के घर अंतिम संतान के रूप में जन्म लेने वाली गीता कुमारी राय देश का और यूपी पुलिस का नाम रौशन करेंगी ये शायद ही किसी ने सोचा होगा। तीन भाइयों और तीन बहनों में सबसे छोटी गीता कुमारी राय ने बताया कि जब होश संभाला तो बड़े भाई को सेना में देखा और गांव के लड़कों को सेना भर्ती के लिए दौड़ते देखा। उन्हें दौड़ता देख मेरा मन भी दौड़ने का किया और आज इस मुकाम पर हूं।

पिता जी की बात ले आयी पुलिस में
गीता राय ने नम आँखों से बताया कि मेरे पिता धर्मदेव जी का देहांत 2016 में हो गया। उन्ही की देन है कि आज मैं पुलिस में हूं। जब मैं दस साल की थी तो एक दिन मैंने पिता जी को मां से कहते सुना था कि चाहे जो हो जाए अपनी बेटी को अपने हाथ से कैप पहनाउंगा। इस बात को मैंने गांठ बाँध लिया और ठान लिया कि मुझे चाहे जैसे भी पुलिस की वर्दी पहनना है।

परदे को ख़त्म करने की थी मुहीम
इंस्पेक्टर गीता ने बताया कि जब मैंने प्रैक्टिस शुरू कि तो मैंने लोक लाज के भय से रात में और भोर में दौड़ना शुरू किया और पुलिस में भर्ती हुई। उसके बाद मैं जब भी घर जाती तो सुबह 7 बजे से लेकर 10 बजे तक दौड़ लगाती थी ताकि गांव की युवतियां मुझे देखकर मैदान में आएं और अपना करियर बनाये। आज जब घर जाती हूं तो बहुत ख़ुशी होती है ये देखकर कि मेरे गांव में लडकियां बेफि‍क्र होकर पुरुषों के साथ दौड़ की प्रैक्टिस करती हैं।

साल 1996 में मिली यूपी पुलिस में नौकरी
गीता राय ने बताया कि जब बड़ी हुई तो कई जनपदीय प्रतियोगिताओं के साथ प्रादेशिक प्रतियोगिताओं में भी मैडल जीते। उसी दौरान यूपी पुलिस का फार्म भरा और कांस्टेबल के पद पर चयनित हो गयी। उसके बाद पहली पोस्टिंग वाराणसी के थाना चेतगंज में बतौर कांस्टेबल हुई।

दो लोगों ने लगाए पैरों में पंख
गीता कुमारी राय ने बताया कि मेरे स्पॉर्ट्स बैकग्राउंड को देखते हुए अधिकारियों ने मेरे गेम को कंटीन्यू रखने को कहा। उसके बाद मैं यूपी पुलिस के लिए कई प्रतियोगिताओं में दौड़ी और एशियाड तक गयी। इसमें डीजी भर्ती एवं प्रोनन्ति बोर्ड रेणुका मिश्रा और उस समय के स्पोर्ट्स कंट्रोल बोर्ड के आईजी एस एन सिंह ने मेरी प्रतिभा को पंख लगाए और मैंने इस प्रतियोगिता में हिस्सा लेकर देश और यूपी पुलिस के लिए पदक जीता।

जानिए क्यों नहीं की शादी?
गीता राय ने शादी नहीं की, उनसे जब यह बात पूछी गई तो उन्होंने कहा कि मैं चाह रही थी कि देश और प्रदेश को खेल से कैसे आगे बढ़ाएं। शादी कर लेती तो बंधन में बंध जाती। उसके अलावा महिलाओं के साथ घट रही घटनाओं को रोकने के लिए प्रयास करने में कोई अड़चन न आये इसलिए ऐसा किया।

व्यवस्थाओं से दु:खी
बातचीत में गीता राय अपने ही डिपार्टमेंट से दु:खी भी दिखी। उन्होंने बताया कि साल 2009 में जब मै कनाडा से पदक लेकर आई तो हमारा सम्मान मौजूदा गृहमंत्री पी. चिदंबरम ने दिल्ली में किया और हमें 50 हज़ार का इनाम भी दिया। वहां उन्होंने हमसे पूछा कि इससे आप को वहां प्रमोशन तो मिलेगा न, हमने जब कहा कि पता नहीं तो उन्होंने यूपी पुलिस को एक लेटर मेरे लिए आउट ऑफ़ टर्न प्रमोशन का लिखा पर वो सरकारी बस्ते में बंद हो गया।

साल 2015 में छोड़ दिया ट्रैक
गीता राय ने बताया कि जब मेरा सब इंस्पेक्टर से इंस्पेक्टर के पद पर प्रोन्नति नहीं हुई तो मैंने 2015 में ट्रैक से दूरी बनायी और डिपार्टमेंट को प्रूफ किया कि सिर्फ ट्रैक में ही नहीं मै फिल्ड में भी काम कर सकती हूं और मैंने कई अपराधियों को जेल की हवा खिलाई। उसके बाद साल 2018 में पुलिस डिपार्टमेंट ने मेरे काम को देखते हुए मेरा प्रमोशन किया।

महिलाओं को दिया ये सन्देश
गीता राय ने महिलाओं को सन्देश देते हुए कहा कि दृढ संकल्प से आगे बढ़ें। उन्होंने महिलाओं से अपील की कि यदि कोई उन्हें सता रहा है, चाहे वो आम इंसान हो या पुलिस वाला उनकी हर संभव मदद मैं करुँगी। जहां चलना होगा तो चलूंगी पर कि‍सी महिला को आज के वक़्त में डरने की ज़रुरत नहीं है।

 

Tamanna Bhardwaj