VIDEO: कब और कैसे शुरू हुई होली खेलने की परंपरा?, हिरण्यकश्यप की राजधानी से होली की कहानी, देखिए पूरी कहानी

punjabkesari.in Monday, Mar 06, 2023 - 04:25 PM (IST)

होली का त्‍योहार 8 मार्च को मनाया जाएगा….हर कोई रंगों से सराबोर होने की तैयारी में है…हर साल आप भी होली का त्योहार धूम धाम से मनाते है,लेकिन क्या आपको पता है कि इस रंग-बिरंगे उत्सव की शुरुआत कहां से और कैसे हुई थी...शायद ही 99 प्रतिशत लोगों को नहीं पता होगा..लेकिन आज हम आपको बताएंगे होली की शुरूआत कहां से और कैसे हुई.... होली की त्योहार की शुरुआत रानी लक्ष्मीबाई के शहर झांसी से हुई थी... सबसे पहली बार होलिका दहन झांसी के प्राचीन नगर एरच में ही हुआ था.... झांसी में एक ऊंचे पहाड़ पर वह जगह आज भी बकायदा मौजूद है, जहां होलिका दहन हुआ था... इस नगर को भक्त प्रह्लाद की नगरी के नाम से जाना जाता है।

पुराणों के आधार पर होली मनाए जाने के पीछे की घटना भक्त प्रहलाद से जुड़ी हुई है....सतयुग में हिरण्यकश्यप राक्षसों का राज था. हिरण्यकश्यप का भारत में एक छत्र राज चलता था... झांसी के एरच को हिरण्यकश्यप ने अपनी राजधानी बनाया था.....जो घोर तपस्या के बाद उसे ब्रह्मा से अमर होने का वरदान मिल गया.. इससे वह अभिमानी हो गया वह खुद को देवता मानने लगा और उसने प्रजा को अपनी पूजा कराने से मजबूर कर दिया,लेकिन हिरण्यकश्यप की यह बात उसके ही पुत्र भक्त प्रहलाद ने नहीं मानी और उसकी पूजा करने से इनकार कर दिया..लेकिन हिरण कश्यप का पुत्र भक्त प्रहलाद भगवान विष्‍णु की पूजा-अर्चना करने लगा... इससे हिरण्यकश्यप क्षुब्ध हो गया.... उसने प्रहलाद को मारने का षड़यंत्र रचना शुरू कर दिया....हिरण्यकश्यप ने अपने ही पुत्र भक्त प्रहलाद को मारने की कोशिश की...उसने प्रहलाद को हाथी से कुचलवाया,, उंचे पहाड़ से बेतवा नदी में धक्का दिया, लेकिन प्रहलाद बच गए... जहां प्रहलाद नदी में गिरे, वह जगह भी मौजूद है.... कहा जाता है कि हिरण्यकश्यप ने भक्त प्रहलाद को जिस जगह बेतवा नदी में फेंका था, उस जगह पाताल जैसी गहराई है...आज तक उस जगह की गहराई की कोई नाप नहीं सकें।

यहां पहाड़ पर स्थित नर सिंह भगवान की गुफा में तपस्या करने वाले जागेश्वर महाराज बताते हैं कि कई प्रयास विफल होने के बाद हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका के साथ षड़यंत्र रचा,होलिका हिरण्यकश्यप की बहन थी...उसे वरदान था कि उसे अग्नि नहीं जला सकता, यह भी था कि जब होलिका अकेली अग्नि में प्रवेश करेगी, तभी अग्नि उसे नुकसान नहीं पहुंचायेगी...वहीं, हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से भक्त प्रहलाद को लेकर अग्नि में प्रवेश करने को कहा.. वह अपने वरदान के बारे में भूल गई कि यदि किसी और के साथ जाएगी तो खुद ही जल जाएगी और हिरण्यकश्यप की बातों में आ गई, फिर क्या था एरच के ग्राम ढिकौली में बने उंचे पहाड़ पर अग्नि जलाई गई... होलिका भक्त प्रहलाद को लेकर इसी अग्नि में प्रवेश कर गई.... चूंकि, होलिका को वरदान था कि वह अकेली जाएगी, तभी बचेगी। फिर भी वह भक्त प्रहलाद को लेकर आग में कूद गई... इससे वह उस आग में जलकर खाक हो गई, जबकि भगवान विष्णु ने भक्त प्रहलाद को अग्नि से बचा लिया.. इससे बौखलाए हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र भक्त प्रहलाद को झांसी के एरच में स्थित इसी पहाड़ जहां उसकी बहन होलिका जली,पर एक अग्नि से तपे हुए खम्भे से बांध कर मारना चाहा,,खडग से उस पर प्रहार किया…तभी भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लिया और हिरण्यकश्यप का वध कर डाला।

हिरण्यकश्यप के मरने से पहले ही होलिका के रूप में बुराई जल गई और अच्छाई के रूप में भक्त प्रहलाद बच गए..उसी दिन से होली को जलाने और भक्त प्रहलाद के बचने की खुशी में अगले दिन रंग गुलाल लगाए जाने की शुरुआत हो गई...झांसी जिले के गजेटियर में इस बात का उल्लेख है कि एरच कस्बा एक ऐतिहासिक नगर है, जहां से होली की शुरुआत हुई थी। इतिहासकार बताते हैं कि एरच को भक्त प्रहलाद की नगरी के रूप में ही जाना जाता है.. स्थानीय लोगों से जानकारी लेने के बाद हमारी टीम उस बेतवा नदी में पहुंची जिसमें हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र भक्त प्रहलाद को मारने के लिए धक्का दिया था।

Content Editor

Anil Kapoor