जानिए, दूसरे चरण की आधी सीटों पर मुस्लिम वोटर्स BJP के लिए क्यों नहीं हैं चुनौती

punjabkesari.in Thursday, Apr 04, 2019 - 05:14 PM (IST)

लखनऊः देश की राजनीति में उत्तर प्रदेश की अहम भूमिका मानी जाती है। यहां से चुनाव लड़ने वाले नेताओं की वजह से उत्तर प्रदेश को हमेशा से राजनीति का गढ़ माना जाता रहा है। जब से लोकसभा चुनाव का बिगुल बजा है तब से राजनीतिक दल चुनावी रणनीतियां तैयार करने में जुटे हुए हैं। इस बार लोकसभा चुनाव 7 चरणों में संपन्न होंगे, जिसमें यूपी की भागीदारी शुरू से लेकर अंत तक है। अंजाम की बेहतरी के लिए बीजेपी अच्छे आगाज की चाहत में जुटी हुई है।

पहले चरण में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की गाजियाबाद, मुजफ्फरनगर, गौतमबुद्धनगर, बागपत, सहारनपुर, मेरठ, कैराना और बिजनौर में 11 अप्रैल को वोट डाले जाएंगे। सत्तारूढ़ बीजेपी को जहां पहले चरण में अपना किला बचाए रखने के लिए कांग्रेस तथा सपा-बसपा गठबंधन की चुनौती को पार पाना होगा, वहीं दूसरी तरफ दूसरे चरण की आधी सीटों पर मुस्लिम वोटर्स बीजेपी के लिए चुनौती नहीं है। हालांकि, पिछले चुनावों की तरह इस बार भी विकास की बजाय जातीय समीकरणों के यहां हावी रहने के आसार हैं।

पहले चरण में जहां चुनाव होना है वहां 'अल्पसंख्यक फैक्टर' काफी महत्वपूर्ण है। इसके अलावा यहां प्रभावशाली जाट और ओबीसी का खासा असर है, जबकि दूसरे चरण में चुनाव प्रक्रिया को प्रभावित करने वाला कोई बड़ा फैक्टर नहीं है। 2014 के चुनावों में बीजेपी ने दूसरे चरण की सभी 8 सीटों आगरा, फतेहपुर सीकरी, मथुरा, अलीगढ़, हाथरस, अमरोहा, बुलंदशहर और नगीना पर जीत हासिल की थी। अलीगढ़ में 27 फीसदी अगड़े हिंदू वोटर, 24 फीसदी अन्य पिछड़ा वर्ग और 12 फीसदी सबसे पिछड़ा वर्ग हैं। यहां वोटों का झुकाव आम तौर पर बीजेपी के पक्ष में ही रहा है।
बता दें कि, बीजेपी 1991 से अब तक यहां 2009 में केवल एक बार चुनाव हारी है। यादव और जाट का ज्यादा झुकाव गठबंधन की पार्टियों के प्रति हैं, लेकिन वह जनसंख्या में इतने भी नहीं है कि परिणामों पर इसका प्रभाव पड़े। जिसके चलते बीजेपी के लिए यहां से जीतना आसान हो जाता है।

Deepika Rajput