‘कुरान और संविधान की मूल भावना के विपरीत बने कानून को मंजूर नहीं करेंगे’

punjabkesari.in Wednesday, Dec 27, 2017 - 05:27 PM (IST)

लखनऊः संसद में तीन तलाक विरोधी विधेयक पेश होने से रोकने की ऑल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) की अपील के बीच मुस्लिम महिला संगठनों ने कहा है कि अगर यह विधेयक कुरान की रोशनी और संविधान के दस्तूर पर आधारित नहीं होगा तो इसे कतई स्वीकार नहीं किया जाएगा। ऑल इण्डिया वूमेन पर्सनल लॉ बोर्ड की अध्यक्ष शाइस्ता अम्बर ने बुधवार कहा कि निकाह एक अनुबंध है, जो भी इसे तोड़े, उसे सजा दी जानी चाहिए। हालांकि केन्द्र सरकार द्वारा बनाया जाने वाला कानून अगर कुरान की रोशनी और संविधान के दस्तूर के मुताबिक नहीं होगा तो देश की कोई भी मुस्लिम औरत उसे कुबूल नहीं करेगी।

शाइस्ता ने कहा कि उन्होंने विधि आयोग को एक पत्र लिखकर गुजारिश की थी कि आयोग जो विधेयक संसद में भेजना चाहता है, उस पर एक बार ऑल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, ऑल इण्डिया मुस्लिम वूमेन पर्सनल लॉ बोर्ड, जमात-ए- इस्लामी, जमीयत उलमा-ए-हिन्द और तलाकशुदा महिलाओं पर काम कर रही संस्थाओं से चर्चा की जाए। इस पर जवाब मिला था कि अगर जरूरत पड़ेगी तो इन सभी को बुलाकर चर्चा की जाएगी। मगर ऐसा नहीं हुआ। 

गौरतलब है कि एआईएमपीएलबी ने तीन तलाक को लेकर केन्द्र के प्रस्तावित विधेयक को संविधान, शरीयत और महिला अधिकारों के खिलाफ करार देते हुए इसे वापस लेने की मांग की है। बोर्ड के अध्यक्ष मौलाना राबे हसनी नदवी ने इस सिलसिले में कल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र भी लिखा था। बहरहाल, इस विधेयक को कल संसद में पेश किये जाने की संभवना है।

मुस्लिम वूमेन लीग की अध्यक्ष नाइश हसन ने भी कहा है कि भारत की महिलाओं ने कभी पुरुष विरोधी कानून बनाने की मांग नहीं की थी। कानून इंसाफ के लिए होता है, किसी को सबक सिखाने के लिए नहीं। हमेशा समझौते की गुंजाइश होनी चाहिए। सजा जरूर हो, लेकिन उसकी मीयाद कम होनी चाहिए। बोर्ड ने केंद्र के प्रस्तावित विधेयक को संवैधानिक सिद्धांतों तथा तीन तलाक के खिलाफ गत 22 अगस्त को उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले की मंशा के भी विरुद्ध करार देते हुए कहा था कि केंद्र सरकार उससे काफी आगे बढ़ गई है।

एआईएमपीएलबी ने कहा था कि विधेयक के मसौदे में यह भी कहा गया है कि तीन तलाक यानी तलाक ए बिद्दत के अलावा तलाक की अन्य शक्लों पर भी प्रतिबंध लगा दिया जाएगा। बोर्ड ने केंद्र सरकार से गुजारिश की है कि वह अभी इस विधेयक को संसद में पेश न करे। अगर सरकार को यह बहुत जरूरी लगता है तो वह उससे पहले मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड तथा मुस्लिम महिला संगठनों से बात कर ले।