उत्तराखंड: 171 करोड़ पर विधायकों की ''कुंडली''

punjabkesari.in Tuesday, Feb 20, 2018 - 03:49 PM (IST)

देहरादून/ब्यूरो। विकास कार्यों की ढोल पीट रहा सत्ता पक्ष और इसी मुद्दे पर सरकार को घेरने में लगा विपक्ष। कुछ करने की बारी जब आती है तो दोनों औंधे मुंह गिरते हैं। विधायक निधि इसका ताजा उदाहरण है। इस निधि पर जनता का हक है। इस निधि से जनता के लिए विकास कार्य होने हैं।

 

परंतु विधायकों को ऐसा लग रहा है कि मानो यह धन उनकी निजी कमाई का हिस्सा है। यही कारण है कि मौजूदा वित्तीय वर्ष खत्म होने में अब कुछ दिन शेष है और विधायक निधि के 171 करोड़ रुपये यानी लगभग 90 प्रतिशत फंड विधायकों ने खर्च ही नहीं किये।

इस हकीकत के बावजूद राज्य सरकार ने न केवल विधायक निधि में एक करोड़ रुपये का इजाफा कर दिया है बल्कि यह भी फैसला लिया है कि विधायक निधि के पैसे अब लैप्स नहीं होंगे।

यह चौंकाने वाला खुलासा हआ है आरटीआई के तहत मिली जानकारी में। काशीपुर के सूचना अधिकार कार्यकर्ता नदीम उद्दीन ने उत्तराखंड के ग्राम्य विकास आयुक्त कार्यालय से विधायक निधि खर्च सम्बन्धी सूचना मांगी थी। जिसके उत्तर में लोक सूचना अधिकारी आयुक्त ग्राम्य प्रशासन डा0जी0एम0खाती द्वारा वर्ष 2017-18 के विधायक निधि में दिसम्बर 2017 तक हुए खर्च का ब्यौरा दिया गया है।

 

इस सूचना के अनुसार उत्तराखंड के 71 विधायकों को 275 लाख रूपये प्रति विधायक की दर से 19525 लाख रुपये की विधायक निधि वित्तीय वर्ष 2017-18 में उपलब्ध करायी गयी। दिसम्बर 2017 तक इसमें से केवल 2329.78 लाख की धनराशि ही खर्च हुई। 17195.22 लाख की धनराशि खर्च होने को शेष है। दी गयी सूचना का सबसे चौंकाने वाला पक्ष यह है कि 71 विधायकों में 21 विधायक ऐसे है जिनका पूरे वर्ष 2017 में विधायक निधि का एक भी रुपया खर्च नहीं हुआ। इसके अतिरिक्त 7 विधायकों की केवल 1 प्रतिशत, 2 विधायकों की 2 प्रतिशत, 2 विधायकों की 3 प्रतिशत, 2 विधायकों की 4 प्रतिशत, 3 विधायकों की 5 प्रतिशत, 7 विधायकों की 6 से 10 प्रतिशत ही विधायक निधि खर्च हो सकी है। 12 विधायकों की 11 से 20 प्रतिशत, 6 विधायकों की 21 से 30 प्रतिशत, 1 विधायकों की 31 से 40 प्रतिशत, 6 विधायकों की 41 से 50 प्रतिशत तथा केवल 2 विधायकों की 50 प्रतिशत से अधिक विधायक निधि खर्च हुई है। सर्वाधिक विधायक निधि खर्च करने वाले विधायकों में 64 प्रतिशत विधायक निधि खर्च वाले नामित विधायक जी.आई. जीन तथा 63 प्रतिशत खर्च वाले पुरौला विधायक राज कुमार है।
        
छह विधायकों का एक भी काम स्वीकृत नहीं

 

जिन 21 विधायकों की विधायक निधि का एक भी रुपया 2017 में खर्च नहीं हुआ है उनमें से 6 विधायक ऐसे है जिन्होंने विधायक निधि से कोई कार्य ही स्वीकृत नहीं कराया है। इन विधायकों में टिहरी जिले के शक्ति लाल शाह, रूद्रप्रयाग जिले के दोनों विधायक मनोज रावत, भरत सिंह चैधरी, अल्मोड़ा जिले के रेखा आर्य, करन मेहरा, उधमसिंह नगर जिले के आदेश कुमार चौहान शामिल हैं।

 

रुद्रप्रयाग जिले के विधायक फिसड्डी 

 

विधायक निधि खर्च के मामले में रूद्रप्रयाग जिले के विधायक सबसे पीछे रहे हैं। जिनकी कोई धनराशि खर्च नहीं हुई है। इसके बाद 2 प्रतिशत खर्च वाला अल्मोड़ा फिर 3 प्रतिशत खर्च वाला चमोली जिला है। अन्य जिलों के विधायकों की विधायक निधि में पिथौरागढ़ की 4 प्रतिशत, नैनीताल की 5 प्रतिशत, पौड़ी व उधमसिंह नगर जिले की 6.6 प्रतिशत, टिहरी व हरिद्वार जिले की 9.9 प्रतिशतए बागेश्वर की 18 प्रतिशत, चम्पावत की 19 प्रतिशत, उत्तरकाशी की 29 प्रतिशत तथा देहरादून की सर्वाधिक 34 प्रतिशत विधायक निधि दिसम्बर 2017 तक खर्च हुई है।

 

मंत्रियों को भी नहीं है सुध

 

मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत की 50 प्रतिशत विधायक निधि खर्च हुई है जबकि नेता प्रतिपक्ष इन्दिरा ह्रदयेश की विधायक निधि का दिसम्बर 2017 तक एक भी रुपया खर्च नहीं हुआ है। सिंचाई मंत्री सतपाल महाराज की 10 प्रतिशत, संसदीय कार्य मंत्री प्रकाश पंत 1 प्रतिशत, वन एवं पर्यावरण मंत्री डा0 हरक सिंह रावत 14 प्रतिशत, शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक की 8 प्रतिशत, परिवहन व समाज कल्याण मंत्री यशपाल आर्य की 5 प्रतिशत, शिक्षा मंत्री अरविन्द पाण्डेय की 6 प्रतिशत, कृषि मंत्री सुबोध उनियाल की 6 प्रतिशत विधायक निधि खर्च हुई है जबकि राज्य मंत्री रेखा आर्य तथा डा0 धन सिंह रावत की विधायक निधि का एक भी रुपया दिसम्बर 2017 तक खर्च नहीं हुआ है।
               

 

...तो इसलिये कैबिनेट ने बदल दिया नियम

 

पहले विधायक निधि से खर्च के लिए सलाना पौने तीन करोड़ मिलते थे। विधायकों ने इसे नाकाफी बताया तो 13 जनवरी को हुई कैबिनेट की बैठक में विधायक निधी को एक करोड़ रुपये और बढ़ा दिया गया। यानी अब 375 लाख रुपये सलाना मिला करेंगे। सवाल यह है कि यदि विधायक निधि के विकास कार्य होने ही नहीं हैं तो इसे बढ़ाने का क्या मतलब। इतना ही नहीं पहले संबंधित वर्ष में विधायक निधि खर्च नहीं होने पर इसे लैप्स मान लिया जाता था। पर 13 जनवरी को कैबिनेट ने फैसला लिया कि अब यह निधि लैप्स नहीं होगी। यानी जब मन करे तब इसे खर्च किया जा सकता है। सूत्रों का कहना है कि लैप्स वाली बात जानबूझकर हटायी गयी है। ताकि पैसे बचाकर रखे जाएं और ऐन चुनाव के वक्त इसका इस्तेमाल किया जाए।