रक्षाबंधन के मौके पर चंपावत में खेली गई विश्व प्रसिद्ध पत्थरमार युद्ध बग्वाल, हजारों लोग बने साक्षी

punjabkesari.in Friday, Aug 16, 2019 - 12:36 PM (IST)

नैनीतालः देश गुरुवार को जहां एक तरफ स्वतंत्रता दिवस के पावन पर्व और भाई बहन के प्रेम के अटूट बंधन में बंधा रहा, वहीं उत्तराखंड का एक हिस्सा इससे अलग पत्थरमार युद्ध बग्वाल खेलने में जुटा रहा।

जानकारी के अनुसार, कुमाऊं के चंपावत में होने वाले इस अछ्वुत खेल के हजारों लोग साक्षी बने। बग्वाल को देखने के लिए देश के विभिन्न कोनों से श्रद्धालु देवीधुरा पहुंचे थे। देवीधुरा के असाड़ी कौतिक में गुरुवार को बरसात के बावजूद खूब भीड़ थी। बग्वाल को देखने के लिए उत्तराखंड और अन्य राज्यों के हजारों श्रद्धालु देवीधुरा पहुंचे थे। ऐतिहासिक खोलीखांण दूबाचौड़ मैदान में गुरुवार सुबह से भीड़ जुटनी शुरू हो गई थी। दोपहर तक भारी भीड़ एकत्र हो गई। बग्वाल दोपहर 2 बजकर 6 मिनट से शुरू हुई और 2 बजकर 15 मिनट पर खत्म हो गई। इस बार ऐतिहासकि बग्वाल मात्र 15 मिनट ही खेली गई।

बग्वाल शुरू होते ही चारों खामों लमगड़िया, बालिग, गहड़वाल और चमियाल खामों के रणबांकुरों ने सबसे पहले मंदिर तथा मैदान की परिक्रमा की। इसके बाद शुरू हुआ असाड़ी कौतिक का सबसे लोकप्रिय खेल बग्वाल। दोनों ओर से पहलेपहल फलों की बरसात हुई। लोगों ने पहले पत्थरों की जगह फलों से बग्वाल की शुरूआत की। बग्वाल के लिए आयोजकों की ओर से नाशपाती की व्यवस्था की गई थी। धीरे-धीरे बग्वाल जब अपने चरम पर पहुंची तो पत्थरों की बरसात होने लगी। दोनों ओर से आखिरी समय में पत्थर हवा में लहराने लगे। दोनों पक्ष के रणबांकुरों ने जमकर बग्वाल खेली। मैदान में डटे कुछ रणबांकुरे इस दौरान साथ लाए छतरों की ढाल से अपनी सुरक्षा करते हुए दिखे। इस दौरान कुल 122 रणबांकुरे घायल हो गए, जिनको पास ही लगे स्वास्थ्य विभाग के कैम्प में मेडिकल सुविधा प्रदान की गई। हजारों श्रद्धालुआ ने मां बाराही के दर्शन किए।

वहीं पंडित कीर्ति वल्लभ जोशी ने बताया कि शुक्रवार को शोभायात्रा सम्पन्न होने के साथ ही असाड़ी कौतिक का समापन हो जाएगा। पौराणिक मान्यता है कि मां काली के गणों को खुश करने के लिए यहां नर बलि की प्रथा थी। बाद में परंपरा बदली और अपनी आराध्या को खुश करने के लिए बग्वाल खेली जाने लगी। ऐसी मान्यता है कि जब तक एक आदमी के बराबर खून न गिर जाए तब तक बग्वाल खेली जाती है।


 

Nitika