उत्तराखंड से पलायन को शीतकालीन प्रवास मानती है केंद्र सरकार

punjabkesari.in Monday, May 07, 2018 - 04:43 PM (IST)

देहरादून: उत्तराखंड की सबसे बड़ी समस्या पलायन है। प्रदेश की सामाजिक और आर्थिक स्थिति के साथ ही सुरक्षा के लिहाज से भी यह अति संवेदनशील मामला बनता जा रहा है। गांव के गांव खाली होने के इस क्रम में प्रथम सुरक्षा पंक्ति ध्वस्त हो रही है। यह सुरक्षा पंक्ति उन ग्रामीणों से बनती है, जो उत्तराखंड में चीन और नेपाल की सीमा पर बसे हैं। सरहद पार होने वाली किसी हलचल को ये लोग सैनिकों से पहले भांप लेते हैं। उचित एजेंसी को इसकी सूचना देकर अपनी देशभक्ति दिखाते हैं। परंतु राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से बेहत गंभीर हो चुकी इस समस्या को लेकर केंद्र सरकार बेफिक्र है। खाली होते सीमा के जिस गांव को लेकर राज्य सरकार चिंतित है, केंद्र सरकार उसे पलायन मानने से ही इनकार कर रही है।

 

उत्तराखंड पलायन आयोग की रिपोर्ट कहती है कि प्रदेश की सीमा पर बसे 14 गांव खाली हो चुके हैं। छह गांव ऐसे हैं जिनकी आबादी पिछले दस वर्षों में पचास फीसदी से भी कम हो चुकी है। ये गांव चमोली, चम्पावत और पिथौरागढ़ जैसे सीमांत जनपद में स्थित हैं। सामरिक लिहाज से यह चिंता का विषय है। 29 नवंबर 2016 को संसद के शीतकालीन सत्र में पौड़ी के सांसद भुवन चंद्र खंडूड़ी ने केंद्रीय गृह मंत्रालय से पलायन को लेकर कुछ सवाल किए थे। सवाल था कि क्या उत्तराखंड, विशेष रूप से चीन की सीमा से सटे क्षेत्र के गांवों से बड़ी संख्या में लोग पलायन कर रहे हैं? उत्तराखंड के गांवों से लोगों के पलायन के कारण चीनी घुसपैठ के खतरे को देखते हुए भारत की सीमाएं असुरक्षित हो गई हैं?

 

केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री किरन रिजिजू ने इन सवालों के जवाब में कहा था कि उत्तराखंड के सीमावर्ती गांवों से पलायन नहीं हुआ है। वह वास्तव में शीत प्रवास है। सर्दियों में उच्च हिमालयी क्षेत्र के लोग बेहतर जीवन प्रत्याशा में पहाड़ से नीचे उतर आते हैं। सर्दी बाद अपने मूल गांवों को लौट जाते हैं। केंद्रीय गृह मंत्री ने इस संभावना से भी इनकार किया था कि पलायन के कारण चीन से सटी भारतीय सीमा असुरक्षित हो रही है। लगभग यही सवाल 8 जनवरी 2015 को संसद के शीतकालीन सत्र में सांसद बीसी खंडूड़ी और माला राज्यलक्ष्मी शाह समेत पांच सांसदों ने उठाया था। 

 

तब भी किरन रिजिजू ने यही जवाब दिया था। उत्तराखंड से हो रहे पलायन और इससे असुरक्षित हो रही सीमा को राज्य सरकार राष्ट्रीय समस्या नहीं साबित कर पाई। जाहिर है कि जब तक केंद्र सरकार इस समस्या को नहीं समझेगी, उचित मदद नहीं करेगी। इस संबंध में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का कहना है कि सीमांत गांवों से पलायन रोकने को कई योजनाएं बनाई गई हैं। सेना की मदद से वृक्षारोपण खासकर फलदार पौधों के रोपण का काम चल रहा है। गांव तक सड़कें, शिक्षा, स्वास्थ्य व रोजगार सुविधाएं पहुंचाई जा रही है।

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