उत्तराखंड: निकाय चुनाव में देरी से पूरी हुई प्रदेश सरकार की मुराद

punjabkesari.in Thursday, Apr 05, 2018 - 05:32 PM (IST)

देहरादून: निकाय चुनाव का मामला कोर्ट में जाने के बाद यह तय हो चुका है कि अब आयोग की तमाम कोशिशों के बावजूद चार मई से पहले चुनाव संभव नहीं है। साथ ही यह भी तय हो गया है कि मौजूदा हालात में सभी निकाय बोर्डों में प्रशासक तैनात किए जाएंगे। इसका मतलब यह है कि चुनाव की तैयारी को लेकर सरकार को अब पूरा वक्त मिल गया है। ऐसे में सरकार को उन योजनाओं को लागू करने में भी कोई दिक्कत नहीं होगी, जिसकी हाल ही में सीएम ने घोषणा की थी। बजट सत्र का समापन होने के ठीक एक दिन बाद 27 मार्च को मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने रायपुर क्षेत्र के विकास कार्यों के शिलान्यास के दौरान सरकारी मंच से निकाय चुनाव में भाजपा के प्रत्याशियों को वोट देने की अपील की थी।

 

उन्होंने इस मंच से जहां निकायों के सीमा विस्तार को जायज ठहराने का प्रयास किया था, वहीं उन गांवों के लोगों को दस साल तक हाउस टैक्स से मुक्त रखने की घोषणा की थी, जो परिसीमन से प्रभावित हुए हैं। इसके साथ ही सीएम ने नगर निकायों में दो हजार पदों पर नई भर्तियों की घोषणा की। नए निकायों के भवन निर्माण के लिए 20 करोड़ की धनराशि जारी करने का वादा किया। इन वादों से इतर विधानसभा सत्र से पहले हुई कैबिनेट की बैठक में राज्य सरकार ने नगर निकायों के विकास के लिए अलग से धनराशि जारी करने का प्रावधान किया था। यानी सरकार की निकाय क्षेत्रों पर अचानक मेहरबानी दिखाई देने लगी थी।

 

शासन के सूत्रों का कहना है कि इस मेहरबानी का एकमात्र कारण यह था, ताकि निकाय क्षेत्र के मतदाताओं में सरकार के प्रति किसी प्रकार की उपेक्षा या असंतोष का भाव न रहे। इससे चुनाव के दौरान भाजपा प्रत्याशी को लाभ मिल सकता है। रायपुर क्षेत्र में विकास कार्यों के शिलान्यास के दौरान मुख्यमंत्री ने खुलेआम भाजपा प्रत्याशियों को वोट देने की अपील कर सरकार की मंशा साफ कर दी थी। हालांकि इन तमाम वादों को हकीकत में बदलने के लिए सरकार के पास समय का अभाव था, क्योंकि जिन दिनों इस काम को अमल में लाया जाना था, उन दिनों हाईकोर्ट के आदेश के बाद परिसीमन मामले में पेंच फंस गया और 42 नगर निकायों में परिसीमन की तस्वीर धुंधली हो गई। 

 

कोर्ट के आदेश पर इन 42 में से 27 निकायों में फिर से आपत्तियों का निस्तारण का काम शुरू करना पड़ा। चूंकि परिसीमन और आरक्षण को लेकर स्थिति साफ नहीं हो पाई, इस कारण सरकार को अपनी योजनाओं के क्रियान्वयन का समय नहीं मिला। अब निकाय चुनाव का मामला कोर्ट में चला गया है। तय है कि तय समय पर चुनाव नहीं होंगे। तय समय पर चुनाव नहीं होने का मतलब यह है कि अब आचार संहिता का झमेला भी नहीं रहा। इस तरह भाजपा सरकार को अपनी उन घोषणाओं को लागू करने का वक्त मिल गया है, जिसके दम पर चुनाव जीतने की रणनीति बनाई गई है।

 

यही कारण है कि कांग्रेस सरकार पर चुनाव में संभावित हार से भयभीत होने का आरोप लगा रही है। पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता हरीश रावत ने सरकार पर आरोप लगाया है कि निकाय चुनाव में भाजपा सरकार ने हर वो काम किया जिससे चुनाव को टाला जा सकता है। भाजपा ने जानबूझ एक संवैधानिक संस्था का अपमान किया है। इसमें उसका निजी हित छिपा हुआ है। हरीश रावत के आरोपों में चाहे जितनी सच्चाई हो, इतना तो सच है कि सरकार को अपना एजेंडा लागू करने का वक्त मिल गया है। इस संबंध में शहरी विकास मंत्री और शासकीय प्रवक्ता मदन कौशिक का कहना है कि सरकार आज भी निकाय चुनाव को लेकर तैयार है। परिसीमन को लेकर कोर्ट के आदेशों का पालन करते हुए कुछ औपचारिकताएं समय से पूरी नहीं हो सकीं। इससे सरकार की मंशा पर सवाल खड़े करना जायज नहीं है।

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