उत्तराखंड: ‘स्कूल चलें हम’ का नारा बदला ‘स्कूल बंद करें हम’ में

punjabkesari.in Wednesday, Apr 25, 2018 - 06:38 PM (IST)

देहरादून/वीरेंद्र डंगवाल पार्थ: देश भर के बच्चों को शिक्षित करने के लिए केंद्र सरकार ने सर्व शिक्षा अभियान शुरू किया था। इसके तहत एक कार्यक्रम चलाया गया। नारा था स्कूल चलें हम। यह नारा बहुत लोकप्रिय हुआ और आम आदमी और बच्चों की जुबान पर चढ़ गया। दूरदर्शन के लेकर तमाम टीवी चैनलों और समाचार पत्रों में इसका प्रचार-प्रसार जमकर हुआ है। केंद्र सरकार ने राज्यों को इस अभियान के तहत उन क्षेत्रों में स्कूल खोलने के लिए ग्रांट भी दी, जहां बच्चों की संख्या तो पर्याप्त है, लेकिन आर्थिक, सामाजिक या दूसरे कारणों से वह स्कूली शिक्षा से वंचित हैं। 

 

उत्तराखंड को भी  इसकी ग्रांट मिली। वर्ष 2002 से लेकर 2017 तक इस अभियान के तहत लगातार स्कूल खोले जाते रहे। इसी बीच राज्य के शिक्षा मंत्रियों, शिक्षा सचिवों और शिक्षा विभाग में काम कर रहे अधिकारियों ने तमाम ऐसी जगह भी स्कूल खोल दिए, जहां छात्रों की शिक्षा पर्याप्त नहीं थी या फिर जहां स्कूलों की जरूरत ही नहीं थी। अब तमाम स्कूल बंद करने की नौबत आ रही है। एक स्कूल की लागत बीस लाख रुपये आती है। 

 

सिर्फ देहरादून जनपद में ही वर्ष 2002-03 से 2013, 14, 15 के बीच 167 प्राथमिक विद्यालय, 118 नए प्राथमिक विद्यालय खोले गए। उस समय भी यह आरोप लगने शुरू हो गए थे कि जिन इलाकों में आबादी बहुत कम थी, वहां भी स्कूल खोले जा रहे हैं, जो भविष्य में बंद हो सकते हैं। तत्कालीन सरकारों और नौकरशाहों ने इस पर ध्यान नहीं दिया। शिक्षा विभाग के अधिकारी तो वैसे कान में तेल डाले रहते हैं। अब कुपरिणाम सामने आ रहे हैं। 

 

चकराता, कालसी, विकास नगर, सहसपुर और डोईवाला विकास खंडों में 31 राजकीय प्राथमिक विद्यालय छात्र न होने के कारण बंद हो चुके हैं। 18 राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालयों पर छात्र न होने के कारण ताला लटक गया है। जब एक जनपद की स्थिति यह है, तो पूरे उत्तराखंड की स्थिति कितनी भयावह होगी, इसकी कल्पना की जा सकती है। जिस दौर में यह स्कूल खुले, उस बीच कांग्रेस और भाजपा की सरकारें राज्य में सत्तासीन रहीं। 

 

कांग्रेस सरकार के दौर में नरेंद्र सिंह भंडारी और मंत्री प्रसाद नैथानी मंत्री रहे, तो भाजपा की सरकार में मदन कौशिश और गोविंद सिंह बिष्ट मंत्री पद निर्वहन करते रहे। इस दौर में एके माहेश्वरी, डॉ. राकेश कुमार, मनीषा पवार और राधिका झा ने शिक्षा विभाग के सचिव का दायित्व का निर्वहन किया। क्या यह मंत्री, नौकरशाह और संबंधित विभाग के तमाम अधिकारियों ने अपने कर्तव्य का निर्वहन करते हुए केंद्र सरकार से मिल रहे बच्चों को शिक्षित करने के फंड का उपयोग ईमानदारी से करने और कराने पर ध्यान दिया और अपनी जिम्मेदारियों को संविधान के तहत ली गई शपथ के तहत निभाया। 

 

अगर निभाया, तो परिणाम ऐसे क्यों? यह चिंतन और मनन करने का अवसर है। इस मामले को एक टेस्ट केस के तौर पर लेकर अगर वर्तमान सरकार चाहे, तो भावी योजनाएं तैयार कर सकती है। ताकि बच्चों की शिक्षा जैसे पवित्रतम कार्य के लिए आए धन का सदुपयोग हो और राज्य के साथ ही इसके नौनिहाल भविष्य के कर्णधार बनें। इस संबंध में जिला शिक्षा अधिकारी बेसिक हेमलता भट्टा का कहना है कि छात्र संख्या शून्य होने के कारण कई विद्यालय बंद हुए हैं। इन विद्यालयों की स्थापना मेरे कार्यकाल से बहुत पहले हो गई थी। लेकिन, निस्संदेह विद्यालय मानक के अनुसार ही खोले गए होंगे।

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